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अक्टूबर में YKA पर इन 10 मुद्दों पर आपने बेझिझक कही अपनी बात

विज्ञान और सामाजिक बदलाव में कोई एक नियम समान रूप से काम करती है तो वो है न्यूटना का तिसरा नियम। यानि कि जब तक आप कोई एक्शन नहीं करेंगे तब तक कोई रिएक्शन नहीं होगा। सीधी सी बात ये कि जबतक आप बदलाव लाएंगे नहीं तब तक कुछ बदलने वाला नहीं है।

Youth Ki Awaaz पर हर महीने आपलोगों के आर्टिकल्स से हिम्मत बढ़ती है क्योंकि उसमें उम्मीद होती है बदलाव की जिसकी शुरूआत की बात ज़्यादातर यूज़र्स  निजी स्तर से ही करते हैं। अक्टूबर महीने की ऐसी ही 10 स्टोरीज़ हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं

1) कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना

सफलता की कहानियां अक्सर हिम्मत बढ़ाने वाली होती हैं, और अगर कोई इंसान हाशिए पर धकेले गए समाज से उठकर कामयाबी की कहानी लिखे तो वो एक सुखद अनुभव भी बन जाता है। विनीता राव ने अपने जीवन की कहानी जिस तरह से लिखी है वो वाकई प्रेरणा देने वाली है। विनीता दिल्ली की एक झुग्गी इंदिरा कॉलोनी से आती हैं, बचपन में जब पढ़ना चाहा तो आसपास के लोगों ने गरीबी का वास्ता देकर हरबार हिम्मत तोड़ने का काम किया। विनीता आगे बताती हैं कि कैसे कॉलेज या स्कूल से लेट अपने झुग्गी लौटने पर लोगों ने उनका चरित्र हनन तक किया लेकिन वो कहते हैं ना कि लोगों का काम है कहना। विनीता अपने सपनों की तरफ हर दिन बढ़ती रहीं और आज दिल्ली विश्वविद्यालय में एक रिसर्च स्कॉलर हैं।

एक लड़की होते हुए स्लम में रहकर मेरा पढ़ाई करना आसान नहीं था

मैं दिल्ली के एक छोटे कस्बे जिसे आम तौर पर स्लम एरिया के नाम से जाना जाता है वहां से हूं। मेरी कॉलोनी का नाम इन्दिरा कॉलोनी है जो पंजाबी बाग एरिया में है। स्लम में रहने की बात को आज जितनी आसानी से स्वीकार करती हूं, सालों पहले ये

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अगर आपके पास भी है कोई ऐसी ही इंस्पायरिंग कहानी तो YKA के साथ ज़रूर शेयर करें।

2) #MeeToo: भारत की भीड़ का महिलाओं के प्रति रवैय्या

महिलाओं को एकतरफ देवी का दर्जा देना और दूसरी तरफ घर, सड़क,शहर, गांव, ऑफिस, कॉलेज, स्कूल हर जगह उनका शोषण करना हमारे देश का एक ऐसा दोहरा चरित्र है जो शायद ही किसी से छुपा है। और यही चरित्र इस देश की भीड़ में घिनौना रूप ले लेता है।

अपने लेख में हमारे समाज के इसी डराने वाले सच को लिखा है अन्नू सिंह ने। अन्नू ने अपना और अपने दोस्तों का अनुभव साझा करते हुए बताया है कि कैसे हमारे समाज में अलग-अलग जगहों पर महिलाओं को अलग-अलग तरीके से सेक्शुअल वायलेंस का सामना करना पड़ता है। और यकीन करिए ये हकीकत काफी परेशान करने वाला है।

भीड़ के बहाने मेरे हिप्स और स्तन को छूने वाला ये भारत महान नहीं हो सकता

कुछ ‘अनचाहे अनुभव’ जब तक हम किसी से बांटते नहीं हैं, तब तक हमें ऐसा लगता है कि वो सिर्फ हमारे साथ हुए हैं। फिर जब उसे हम किसी अपने के साथ बांटते है, उस पर सहजता से बात करना शुरू करते हैं, तब हमें यह पता चलता है कि

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3) चुनावी किसान बनाम खेतिहर किसान

‘हिंदू हो कि मुसलमान हो या कि सिर्फ किसान हो?’ ये एक पंक्ति ही अपने आप में स्पष्ट कर देती है कि कृषि प्रधान देश की प्राथमिकता कहीं से भी किसान नहीं है। किसान तभी तक ज़रूरी है जबतक उसके लहलहाते या सूखे खेत में वोटों की खेती हो सके।

हमारे यूज़र और छत्तीसगढ़ काँग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ भाजपा सरकार की किसानों के प्रति उदासीनता का विश्लेषण करते हुए कुछ बेहद ही महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं। भूपेश बघेल का कहना है कि रमन सरकार की नीतियां कहीं से भी किसानों के लिए कोई राहत नहीं ला रही है उल्टा अब मुआवज़े भी नहीं दिए जा रहे हैं। भूपेश बघेल ने अपने लेख में राज्य सरकार को अपने चुनावी वादे याद दिलाएं और पूछा है कि किसानों के अच्छे दिन कब आएंगे?

छत्तीसगढ़ सरकार का किसानों के लिए ‘बोनस तिहार’ पर भूपेश बघेल का विश्लेषण

छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए किसान का मतलब सिर्फ वोट होता है। किसान खुदकुशी कर रहे हैं और भाजपा सरकार मानती भी नहीं कि क़र्ज़ की कोई समस्या है। खुदकुशी करने वाले किसानों के परिजनों को मुआवज़ा भी नहीं देती, दुख बांटने तक की ज़हमत नहीं उठाती। सूखे से किसान

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4) इंटरनेट सुरक्षा है ज़रूरी

मानव इतिहास में इंटरनेट शायद सबसे बड़ी क्रांती में से एक है। इंटरनेट आपको ताकत देता है कुछ भी कर सकने की, अपनी एक अलग पहचान बनाने की। अाप यहां अपने ओपिनियन्स अपने विचार किसी से भी साझा कर सकते हैं, दुनिया में किसी के साथ भी बात कर सकने की। इंटरनेट वो जगह है जहां आप चाहें तो पूरे समाज के लिए कुछ बेहतरीन कर सकते हैं लेकिन ये भी एक दुखद सच्चाई है कि बहुत सारे लोग बस नफरत फैलाने और लोगों को ट्रोल करने के लिए अपनी पहचान छुपाकर इसका इस्तेमाल करते हैं।

इंटरनेट को एक सुरक्षित बनाने के facebook इंडिया और YKA के साझा मुहिम #NoPlace4Hate के तहत The Egoist Poststructuralist ने अपनी गे मर्द होने की पहचान ज़ाहिर करने पर इंटरनेट पर नफरत और ऑनलाइन अब्यूज़ का सामना करने की निजी कहानी शेयर की है। अपनी स्टोरी में उन्होंने ये भी लिखा है कि बिना अभद्रता किये हुए उन्होंने कैसे इसका सामना किया।

The Abuse I’ve Faced Online As A Queer Person In The Name Of ‘Free Speech’

Editor’s Note: With #NoPlace4Hate, Youth Ki Awaaz and Facebook have joined hands to help make the Internet a safer space for all. Watch this space for powerful stories of how young people are mobilising support and speaking out against online bullying. The internet is a magical space.

The Egoist Poststructuralist को YKA पर फॉलो करें। इंटरनेट अब्यूज़ और उसका सामना कैसे करें, इस मुद्दे पर आप भी अपनी स्टोरी लिखें।

5) अपनी लत से जूझ रही महिलाओं को मिलने वाला सामाजिक शर्म

हमारा समाज हमेशा किसी भी लत को मानसिक स्वास्थ्य से जड़ी परेशानी के तौर पर नहीं देख पाता। और अगर आप महिला हैं फिर कब आपकी लत समाज के लिए आपके चरित्र हनन का ज़रिया बन जाता है ये समझ से परे हैं।

अपने लेख में नंदिनी मजूमदार ने बेहद ही सख्त शब्दों में इसका विश्लेषण किया है कि कैसे एक महिला को शराब-सिगरेट पीने और ड्रग की लत के लिए कलंकित किया जाता है।

A Woman With A Drug Addiction Deserves Help, Not A ‘Bigdi Hui’ Tag

Editor’s note: This post is a part of #BHL, a campaign by BBC Media Action and Youth Ki Awaaz to redefine and own the label of what a ‘bigda hua ladka or ladki’ really is. If you believe in making your own choices and smashing this stereotype, share your story.

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नंदिनी का यह पोस्ट समाज की गैरज़रूरी टिपण्णियों के खिलाफ YKA और BBC मीडिया एक्शन के साझा अभियान #BigdiHuiLadki/#BigdaHuaLadke का हिस्सा है। आप भी इस अभियान से जुड़ें और अपनी बात मज़बूती से रखें।

6) गोरखपुर के बच्चे जिन्हें हम अब भूल गए

ऑक्सिजन की कमी से गोरखपुर के अस्पताल में हुए 60 बच्चों की मौत की घटना को अब दो महीने से ज़्यादा का वक्त हो चुका है। घटना के बाद आरोप प्रत्यारोप के दौर में यह घटना कितनी आसानी से लोगों के ज़हन और बहस के मुद्दों से गायब हो गया ये हमारे स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

कनाडा के डलहौज़ी विश्वविद्यालय के शिक्षक और The Hindu अखबार में लेखक, निस्सिम मन्नाठुक्करण अपने लेख के ज़रिये बता रहे हैं कि क्यों इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाना हमारी नैतिकता और बेहतर स्वास्थ्य सेवा के लिए ज़रूरी है।

When Gorakhpur Is Forgotten

” The tyranny of a prince in an oligarchy is not so dangerous to the public welfare as the apathy of a citizen in a democracy.” – Charles-Louis Montesquieu (The Spirit of the Laws, 1748). It is almost two months since the Gorakhpur tragedy in which over 60 children died in a hospital allegedly due to lack of oxygen supply.

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7) मेंटल हेल्थ है सबके लिए

हर साल हम 10 अक्टूबर को लोगों में जागरूकता फैलाने, और उन्हें शिक्षित करने के लिए, वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे मनाते हैं। लेकिन भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बद से बद्तर है। और ऐसे में हमें शायद एक नए नज़रिए और अप्रोच की ज़रूरत हैै।

झिलमिल ब्रेकेनरिज अपने आर्टिकल में बता रही हैं कि क्यों हमें मेंटल हेल्थ को नॉर्मल और एबनॉर्मल के नज़रिए से देखना बंद करना होगा।

Why Every Day Should Be World Mental Health Day

This story is a part of Youth Ki Awaaz’s weekly topic #WorldMentalHealthDay to create a conversation about mental health in India. Share your personal stories of coping with a mental illness, trying to access mental healthcare or any experience with mental health here.

झिलमिल को YKA पर फॉलो करें।

8) #MeToo: मुद्दों से भटकती बहस

#MeToo कैंपेन के बाद से सोशल मीडिया पर बहुत लोगों ने खुल कर अपनी  बात सामने रखी। इस कैंपेन से एकबार फिर ये बात साबित हुई कि महिलाओं के साथ यौन हिंसा एक विश्वव्यापी समस्या है।

अपने अनुभव साझा करते हुए सुचेतना सिन्हा ने लिखा है कि कैसे जो मीम उन्होंने शेयर किया था(कृष्ण का महिलाओं का वस्त्र चुराते हुए) उसकी वजह से ना सिर्फ उन्हें ट्रोल किया गया बल्कि पूरी बहस भी यौन हिंसा से धर्म पर आ गई।

#MeToo: It’s Not Harassment If The Lord Does It, Right?

Editor’s Note: With #NoPlace4Hate, Youth Ki Awaaz and Facebook have joined hands to help make the Internet a safer space for all. Watch this space for powerful stories of how young people are mobilising support and speaking out against online bullying.

सुचेतना को YKA पर फॉलो करें

9) एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट- लेकिन फिल्में समाज का भी तो आइना है

फिल्मों की या बॉलीवुड की खबरें हमारे लिए मसाला न्यूज़ बनकर रह गई है। और मार्केट कंज़ंप्शन के मुताबिक ही फिल्मी खबर दिखाने वाले सोर्स भी बस गॉसिप पर ही फोकस्ड हैं, मसलन ब्रेकअप-पैचअप, फिल्मी पार्टीज़, स्टार वॉर। तो क्या इसका मतलब यह है कि फिल्में समाज का आइना है वाली कहावत भूल जाएं? बिल्कुल नहीं, हमारे यूज़र सैयद तौहीद ने अक्टूबर के महीने में बॉलीवुड से जुड़े मुद्दों पर कई ऐसे आर्टिकल्स लिखें जो हम सबको पढ़नी-पढ़ानी चाहिए।

कहानी यश चोपड़ा और अमिताभ बच्चन की जिनके साथ ने बॉलीवुड को दिया एंग्री यंग मैन

अमिताभ बच्चन ने यश चोपड़ा के साथ पहली बार ‘दीवार’ (1975) और अंतिम बार ‘सिलसिला’ (1981) में काम किया। 1975 से 1981 के बीच अमिताभ और यश चोपड़ा की जोड़ी ने दीवार, कभी कभी, त्रिशूल, काला पत्थर और सिलसिला जैसी सफल फिल्में दी। ऋषिकेश मुखर्जी की तरह यश चोपड़ा ने

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आप भी लिखना चाहें फिल्मों या बॉलीवुड से जुड़ी कुछ ऐसी ही बहुत इंट्रेस्टिंग बातें तो ज़रूर लिखें।

10) रेप में अपवाद जैसे शब्द की गुंजाइश नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने रेप संबंधित कानून के उस अपवाद पर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया जिसमें नाबालिग पत्नियों के साथ शारीरिक संबंध बनाना रेप नहीं माना जाता था। Independent Thought नामक एक NGO के द्वारा IPC की धारा 375(2) के बाबात दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी नाबालिग लड़की की शादी हो गई है तो इसे शारीरिक संबंध बनाने की स्विकृती का आधार नहीं माना जा सकता है। रचना प्रियदर्शिनी ने अपने लेख में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को काफी आसानी से बताते हुए इसे बाल विवाह पर भी जल्द ही पूरी तरह से नकेल कसने के लिए ज़रूरी बताया है।

अब 18 साल से कम उम्र की पत्नी की ना का मतलब भी ‘ना’ ही होगा

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इंडिपेंडेंट थॉट (Independent Thought) नामक एक NGO द्वारा दायर की गई याचिका के मद्देनज़र अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी भी व्यक्ति द्वारा, नाबालिग पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने को रेप माना जाएगा। इस NGO ने अपनी याचिका में आइपीसी की धारा-375

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अगर आपके पास भी है किसी ऐसे फैसले पर अपना ओपिनियन तो बेझिझक लिखें YKA पर

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