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साल-दर-साल कंट्री कैपिटल से क्राइम कैपिटल बनती जा रही है दिल्ली

30 नवंबर, 2017 को भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा भारत में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2016 के आंकड़ों को जारी किया गया। अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप इसमें आपराधिक घटनाओं की गणना के लिए ‘मुख्य अपराध’ के नियमों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया। ‘मुख्य अपराध’ का मतलब वो अपराध जिन्हें नियंत्रित करने की दिशा में गंभीर प्रयास किए जाने की ज़रूरत है। पहली बार इन आंकड़ों में 19 मेट्रोपॉलिटन शहरों (जिनकी जनसंख्या 2 मिलियन से कम है) के आंकड़ों को भी शामिल किया है।

ये आंकड़ें हिंसात्मक अपराध, महिलाओं के विरूद्ध अपराध, बच्चों के विरूद्ध अपराध, एससी/एसटी वर्गों के विरूद्ध अपराध, साइबर अपराध, वरिष्ठ नागरिकों के विरूद्ध अपराध आदि से संबंधित हैं। इनके अलावा माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा गत वर्ष दिए गए दिशा-निर्देशों के आलोक में इस बार गुमशुदा लोगों और बच्चों के आंकड़ों को भी इस सूची में शामिल किया गया है। कुछ अन्य प्रकार के अपराधों से संबंधित आंकड़ों को भी पहली बार इस सूची में स्थान दिया गया है।

इन आंकड़ों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि देश की राजधानी दिल्ली में हर तरह के अपराध का ग्राफ पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ा है। पिछले वर्ष दिल्ली में आइपीसी के तहत कुल 38.8% मामले दर्ज किये गए, किडनैपिंग के लगभग 5,453 मामले यानी 48.3% फीसदी मामले दर्ज हुए। महिलाओं के विरूद्ध भी सबसे ज्यादा (कुल 41,761 में से 13,803) मामले दिल्ली में ही देखने-सुनने को मिले। चौंकाने वाली बात यह है कि महिलाओं के विरूद्ध अपराध की राष्ट्रीय दर जहां 77. 2 रिकॉर्ड की गई, वहीं राजधानी दिल्ली में प्रति एक लाख जनसंख्या पर यह औसत 182.1 का रहा। यहां बलात्कार के 40% मामले दर्ज हुए और दहेज प्रताड़ना के करीब 29% मामले पाए गए।

वर्ष 2015 में इस अपराध ग्राफ में थोड़ी कमी ज़रूर आयी थी, लेकिन इसे नाममात्र की कमी ही कहा जा सकता है जो वर्ष 2014 और वर्ष 2016 में क्रमश: 56.6% और 55.2% के मुकाबले वर्ष 2015 में 54.2% था। केवल महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में ही नहीं, दिलवालों की दिल्ली ने बच्चों को भी नहीं बख्शा है। वर्ष 2016 के दौरान देश के अन्य 18 मेट्रोपॉलिटन शहरों में दर्ज ऐसे कुल 6645 मामलों से अकेले राजधानी में ही 2368 मामले देखने को मिले यानी करीब 35.6%। इन तमाम आंकड़ों के आधार पर अगर हम यह कहें कि दिल्ली ‘कंट्री कैपिटल’ के बजाय ‘क्राइम कैपिटल’ बनने की राह पर है, तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा।

आखिर क्या वजह है कि जिस शहर में देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान हैं, जो देश का लिट्रेरी हब माना जाता है, जहां देश की सर्वाच्च न्यायिक संस्था मौजूद है और जहां सरकार की आलाकमान के लोग खुद बैठते हैं, वहां अपराध का ग्राफ दिन-ब-दिन कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है? चाहे अखबार हो या न्यूज़ चैनल या फिर सोशल मीडिया- ऐसा शायद ही कोई दिन होगा, जब दिल्ली-एनसीआर में किसी अपराध की सूचना पढ़ने या सुनने को ना मिलती हो।

सुरक्षा के तमाम दावों और अनेक कानून होने के बावजूद जब देश की राजधानी में ही लोग, खासकर कि महिलाएं इतनी असुरक्षित हैं तो बाकी राज्यों या संघशासित क्षेत्रों के अपराध के बारे में क्या कहा जाए? सरकार हो या समाज दोनों में से कोई भी केवल बातों या आश्वासनों या खोखले कानूनों के बलबूते नहीं चल सकता, इसकी वर्तमान परिस्थितियों में बदलाव लाने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ सही दिशा में योजनाओं तथा कानूनों को क्रियान्वित करने की भी ज़रूरत है।

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