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”कॉलेज आकर मैंने सीखा मुसलमानों को लेकर मैं कितना गलत था”

आज मैं इस पोस्ट को लिख तो रहा हूं ,मगर ऐसा नहीं है कि इस पोस्ट को लिखने का ख्याल आज ही मेरे ज़हन में आया है। पहले कई मौके आएं जब मैंने चाहा कि मैं अपने मन की बात को लिखूं, मगर शायद वो मेरी कमज़ोरी थी जिस वजह से मैं हमेशा खुद को रोकता रहा। आज बस कुछ देर पहले मैंने फिल्म मुल्क देखकर खत्म की है और मेरे मन में कई बाते हैं जो बाहर आना चाहती हैं। मैं उन्हीं बातों को लिख रहा हूं।ये सारी बातें मेरे निजी तजुर्बों की बुनियाद पर हैं जिन्हें मैंने अपने 23 साल 10 महीने के जीवन में हासिल किया है ।अगर मेरी किसी बात से आपको ठेस पहुंचे तो मैं माफी चाहूंगा।

मेरा जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ, मेरे पिताजी और माताजी धार्मिक प्रवृति के हैं। उन्हीं की देख-रेख में मेरा पालन पोषण हुआ और मुझमें संस्कारों के बीज रोप गये। मेरी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मन्दिर में हुई। मेरे आस-पड़ोस में भी सभी लोग हिन्दू मध्यम वर्गीय परिवार के थे। इस तरह से मेरे बचपन पर इन सभी लोगों और घटनाओं का असर पड़ा।

बचपन में जब होश संभाला तो कुछ सवाल मुझे बहुत बैचैन करते थे। जैसे जब भी कोई दाढ़ी-टोपी वाले मज़दूर, कामगार लोग मेरे घर में आते तो घर के सभी लोगों का रवैया बदल जाता। उनके लिए अलग से कांच के ग्लास में चाय-पानी देने की व्यवस्था होती और उनके जाने के बाद उन ग्लासों को अलग ही रख दिया जाता।

इसके अलावा अखबार या टीवी चैनल पर जब खास किस्म के पहनावे या हुलिये वालों की खबर आती तो घर वालों के विचार एक जैसे ही होते।धीरे-धीरे जब मैं बड़ा होने लगा तब मुझे मालूम हुआ कि इन लोगों की एक खास पहचान है जिसे “मुसलमान” कहा जाता है। साथ ही मैंने यह भी देखा कि सिर्फ मेरे घर या पड़ोस में नहीं, जितने ही हिन्दू व्यक्तियों से मैं सम्पर्क में आ रहा हूं,उन लोगों के मुसलामनों में बारे में एक से विचार हैं।

जब मैं उनके साथ बैठता तो उनके विचारों में कुछ बातें शामिल होती जैसे मुसलमान अच्छे लोग नहीं होते, इन्होंने भारत के टुकड़े करा दिए, मुसलमान गाय को काट कर खाते हैं, मुसलमान कई शादियां करते हैं और कई बच्चे पैदा करते हैं जिससे भारत इस्लामिक राष्ट्र बन जाए, मुसलमान पाकिस्तान को पसंद करते हैं उनके घर में पाकिस्तानी क्रिकेटर की फोटो होती है और वो पाकिस्तान के जीतने पर पटाखे जलाते हैं।

ये सब बातें मेरे और मेरे जैसे कई बच्चों के सामने पीढ़ी दर पीढ़ी इतनी बार दोहराई जाती रही हैं कि एक मासूम बच्चे के मन में एक डर, एक नफरत का बैठ जाना तय हो जाता है। ठीक इसी तरह से मेरे मन में भी डर और शंका का घर हो गया। मैं जब भी किसी ऐसी जगह जाता जहां मुस्लिम आबादी ज़्यादा होती तो खुद को असहज महसूस करता। इस असहजता की कोई वजह नहीं नज़र आती मगर फिर भी डर लगा रहता।इसका नतीजा यह हुआ कि 17 साल की उम्र तक मेरा कोई मित्र मुस्लिम नहीं था। मैंने किसी मुस्लिम होटल में कदम नहीं रखा था, मुस्लिमों से मेरा रिश्ता सिर्फ बाल काटने वाले नाई तक सीमित था।

इसके बाद जब मैं बीटेक करने शहर से बाहर निकला तब मेरे मन में वही सवाल, वही शंकाए बरकरार थी। उस वक्त दुनिया में आंतकवाद चरम पर था। हर रोज़ किसी न किसी बम धमाके की खबर आती। यह सब मेरे मन के डर को और बढ़ाता गया। मगर अब तस्वीर बदलने वाली थी। कॉलेज पहुंचने पर जो मेरी ज़िंदगी का पहला दोस्त बना वो लड़का एक मुसलमान था। मुझे उसके साथ बिलकुल वैसा महसूस होता जैसा मैं अपने घर परिवार में महसूस करता। उसके बाद मुझे कई और मुस्लिम दोस्त मिले जो बिलकुल मेरी तरह सोचते थे।

धीरे-धीरे मेरे अंदर से वो सभी शक वो सभी डर निकल गये जो बचपन से मुझे परेशान करते थे। मुझे जो शायर पसंद आए, जो लेखक पसंद आए, जो गायक, अभिनेता पसंद आए, जो संत पसंद आए वो सभी मुसलमान थे। उसके बाद मुझे ये समझ नहीं आया कि क्यों अभी तक मैं मुस्लिमों के नाम से डरता रहा था। मुझे कोई मुस्लिम ऐसा नहीं मिला जिसके पास रहने पर खतरा महसूस होता हो, या वो किसी मामले में मुझसे कम देशभक्त हो।

ऐसा नहीं है कि अचानक से आस-पास सब ठीक हो गया था। कई बार लोग मिलते जो मुझमें वही शक और डर पैदा करने के कोशिश करते। मैं जब कुरता पायजामा पहनकर निकलता तो लोग कहते अरे ये क्या, तुमने तो मुसलमानों जैसे कपड़े पहने हैं। यह सुनकर मुझे बहुत अजीब लगता, मगर मैं ज्यादा ध्यान नहीं देता। समय के साथ मुझे कई बातें समझ आई कि ऐसा क्यों है कि एक वर्ग दूसरे वर्ग से अंजान होते हुए नफरत करने लगता है।

मुझे इसकी तीन वजहें नजर आई।

पहली वजह जो हमें पढाया और बताया गया कि मुसलमानों ने बाहर से आकर हमारे देश पर हमला किया, इसे लूटा, लोगों के कत्ल किये, औरतों के बलात्कार किये, मन्दिरों को तबाह किया, जबरन हिन्दुओं का धर्म बदलवाया। इससे एक नफरत पैदा हुई मुस्लिमों के प्रति जो होना लाजिम था

दूसरी वजह थी भारत का बंटवारा। भारत के विभाजन की एक ही वजह बताई गयी और वो थी जिन्ना और मुसलमान। इस विभाजन में लाखों लोगों के कत्ल हुए और कई बेघर हुए।

तीसरी वजह थी कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का निकाला जाना, राम मन्दिर ना बन पाने का मुद्दा और मुस्लिमों का योग, वन्दे मातरम का विरोध।

मगर इन सभी से बड़ी वजह जिसने हम सभी के दिलों में शक और नफरतों का बीज बोया, वो थी भारत में सत्ता हासिल करने की भूख। अंग्रेज़ों की फूट डालों राज करो की नीति उनके जाने के बाद भी कायम रही जिसका फायदा राजनेताओं ने कई वर्षों तक उठाया और आज भी उठा रहे हैं। वे नहीं चाहते हम साथ रहें क्यूंकि साथ रहने पर हम रोज़गार, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सुरक्षा से जुड़े सवाल पूछेंगे जो उन्हें बर्दाश्त नहीं हैं। वे चाहते हैं कि हम हिन्दू मुस्लिम में उलझे रहें और वो हमारे ऊपर राज करते हुए हमारा शोषण जारी रखें।

इन तमाम मुद्दों को मीडिया तन्त्र के माध्यम से राजनेताओं ने इतना भुनाया कि एक पूरी नस्ल ही मुस्लिमों से नफरत करने लगी। राजनेताओं ने लोगों के डर का फायदा उठाया और वोट बटोरते रहे।

ऐसा नहीं है कि मुस्लिमों पर लगाए आरोप बेबुनियाद थे मगर जो 500 साल पहले या 70 साल पहले हुआ या जो आज हो रहा है उसके लिए पूरी कौम से नफरत करना बिलकुल भी जायज़ नहीं हो सकता। हिन्दू और हिन्दुत्व इसकी बात कर ही नहीं सकता। आज जिस तरह से इतिहास की बातों को नफरत फैलाने और राजनीति करने के लिए इस्तेमाल किया गया, उसने पूरे मुल्क को आने वाले कई दशकों के लिए साम्प्रदायिकता की आग में झोंक दिया।

आज मुल्क की हालत बहुत खराब है और इसमें कोई दो राय नहीं है। जनसंख्या, गरीबी, महिला सुरक्षा, रोज़गार जैसे कई मुद्दे हैं जिनसे हमको लड़ना है। मगर हमारा ध्यान दिन-रात हिन्दू-मुस्लिम नफरत को सुलगाने में लगाया जा रहा है। टीवी, सोशल मीडिया दिन रात लोगों को ज़हर परोस रही है जिसे हम शौक से खा रहे हैं। आज कई लोग जिनको हिन्दू और हिंदुत्व का मतलब नहीं पता वो अनेक संगठन बनाकर मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं और समाज में आग लगा रहे हैं।

मुझे नहीं पता की ऐसा हाल में मुझे इसको रोकने के लिए क्या करना चाहिए। मगर मुझे मुहब्बत के रास्ते पर यकीन है और मैं अपने काम से लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं। शायद मैं ज़रूर कामयाब हो जाऊंगा। आप भी नफरत को नकारिये और मुहब्बत को गले लगाइए ।यही एक रास्ता है, दूसरा रास्ता कभी था भी नहीं।

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