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वाजपेयी जी का होना, घर में किसी बुज़ुर्ग के होने जैसा था

“काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं,
मैं गीत नया गाता हूं।”

-अटल बिहारी वाजपेयी

कल शाम दिल्ली के एम्स अस्पताल में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का निधन हो गया। काफी लंबे समय से बीमार चल रहे 93 वर्षीय वाजपेयी जून महीने से ही नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे।

भारत देश के सबसे योग्य और सफल प्रधानमंत्री आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी का निधन राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है। उनका जाना संपूर्ण राष्ट्र के एक ऐसे अभिभावक का जाना है, जिनका लौटना कभी मुमकिन नहीं होगा।

अटल जी आज एक ऐसे समय में हम सब को अकेला छोड़ कर चल बसे हैं जब इस देश में लोकतंत्र के एक सच्चे हितैषी और अभिभावक की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। आज के दौर में इस देश में शायद ही कोई ऐसा नेता बचा है जिसका आदर दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर किया जा सके, अटल जी बेशक ऐसे ही एक नेता थे।

भारत की आज़ादी के काल में, प्रारंभिक तौर पर किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती थी जो कि कला, साहित्य या नीति शास्त्र में निपुण हो। फिर बात चाहे नेहरू की करे जो एक बेहद अच्छे लेखक थे या वी.पी. सिंह की जो की एक बेजोड़ कवि थे। इसी कड़ी में एक नाम और आता है और वो है पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी का, जो कि एक कुशल राजनेता और युग द्रष्टा के साथ-साथ एक बेहद अच्छे कवि भी थे।

कई-कई लोकसभा चुनाव उन्होंने लड़े और जीते। 10 बार लोकसभा के लिए चुने गए। ये हालांकि शोध का विषय है कि वाजपेयी जी जैसा ताकतवर नेता, 1984 में माधव राव सिंधिया जैसे नेता से जो कि उनके मुकाबले कहीं ज़्यादा कमज़ोर थे हार कैसे गए?

2004 के बाद अटल जी स्वास्थ्य समस्याओं और अन्य व्यक्तिगत कारणों से राजनीति से दूर हो गए थे। बहरहाल, आज 2018 है, वाजपेयी जी को प्रधानमंत्री पद छोड़े 14 साल हो चले हैं, फिर भी एक ऐसा करिश्मा था उनके फैसलों में (जो उन्होंने प्रधानमंत्री होते हुए लिए थे) कि आज भी वो फैसले प्रासंगिक लगते हैं। ये अपितु विवाद का विषय है कि 2002 में उन्होंने मोदी जी को राजधर्म निभाने की जो सीख दी थी, वो सीख मोदी जी कितना अपने जीवन तथा कार्यप्रणाली में उतार पाए हैं।

अटल जी की कविता “ऊंचाई” का कुछ अंश-

सच्चाई यह है कि

केवल ऊंचाई ही काफी नहीं होती,

सबसे अलग-थलग

परिवेश से पृथक,

अपनों से कटा-बंटा,

शून्य में अकेला खड़ा होना,

पहाड़ की महानता नहीं,

मजबूरी है।

ऊंचाई और गहराई में

आकाश-पाताल की दूरी है।

आज के दौर में वाजपेयी जी का जाना, एक ऐसे योद्धा का रण छोड़ जाना है जो कि अंत तक टिकता तो शायद आज युद्ध की स्थिति ही नहीं होती। ये काबिले तारीफ है कि उन्होंने जिस तरह की कुशल रणनीतियां बनाकर, पाकिस्तान जैसे पड़ोसी को जवाब दिया या आधिकारिक रूप से बातचीत की जो पहल की, उसमें कोई दो राय नहीं है कि ना तो यूपीए और ना ही एनडीए की जो सरकारें भविष्य में बनीं, वो कुछ खास कार्य वाजपेयी जी के मुकाबले कर पाई।

वाजपेयी जी ने हमेशा दल-पक्ष-विपक्ष-सत्ता-कुर्सी इत्यादि से ऊपर उठकर देश का मार्गदर्शन नई ऊंचाइयों पर किया। आज हम यदि एक परमाणु शक्ति होने का दंभ इस संसार में भरते हैं तो इसमें एक बड़ा श्रेय अटल जी की नीतियों और उनकी विकासशील सोच को जाता है।

पर इन सबसे परे भी एक बात आती है कि जितना जनता ने अटल जी को स्वीकार किया और उन्होंने भी जितना जनता को स्वीकार किया वो शायद ही कोई अन्य प्रधानमंत्री कर पाए। इस देश में वाजपेयी जी का होना, हमें इस बात का एहसास कराता था कि जैसे अपने घर में ही कोई बूढ़ा-बुजुर्ग है, जो कि कभी डांट कर, कभी प्यार से समझा कर हमें उत्साहित करता है। या यूं ही कभी कविता सुनाकर प्रेरित करता है।

ये बात आज जनता के तौर पर हम ना किसी नेता से उम्मीद कर सकते हैं, ना कोई नेता इस तरह का संवाद जनता से स्थापित कर पाया है। खुद ही विचार कीजिए कि क्या कभी मनमोहन सिंह या नरेंद्र मोदी आपको अपने घर का हिस्सा या सदस्य लग पाए? शायद नहीं, क्योंकि ये नेता अचानक आज-कल में कहीं से उठकर खड़े हो गए, ये ना कभी अटल थे, ना हैं, और ना कभी बन पाएंगे।

अटल बिहारी वाजपेयी जी का देहांत भारतीय राजनीती में उस युग का अंत है जब रिश्तों में राजनीति नहीं, राजनीति में रिश्ते तलाश किये जाते थे।

आज आश्चर्य होता है अटल जी के भाषणों को सुनकर कि किसी ज़माने में इस देश ने एक ऐसा प्रधानमंत्री भी देखा जो इस बात का पूरा आदर करता था कि उनकी पूर्ववर्ती सरकारों ने क्या काम किया, आजकल तो लोग इस बहस में पड़े हुए हैं की पिछले 60 वर्षों में कोई काम ही नहीं हुआ।

प्रधानमंत्री के रूप में ऐसा निरपेक्ष, निष्पक्ष और निडर चेहरा भाजपा तो क्या कॉंग्रेस ने भी आज तक नहीं देखा होगा। आप संसद में उनके इस बयान को देखकर इस बात को समझ सकते हैं-

ऐसे महान नेता को मेरा शत-शत नमन है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

 

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