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पितृसत्ता को चुनौती देते ये एक्सपर्ट स्पीकर्स आपकी सोच बदल सकते हैं

पिछले दिनों कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने हमारे देश में महिला सुरक्षा पर सवाल खड़े किए हैं। इसके लिए हमें ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है, बिहार के मुज़फ्फरपुर बालिक गृह में बच्चियों का यौन शोषण का मामला हो या आरा में एक महिला को निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाए जाने की घटना।

ये ऐसी घटनाएं हैं जिन्हें हमारी-आपकी चुप्पी और भी बढ़ावा देती है। हम जितना चुप बैठेंगे इन घटनाओं को अंजाम देने वालों को उतना ही शह मिलेगा।

हालांकि इस बात को महिलाओंं/लड़कियों ने बखूबी समझा है और इन घटनाओं को रोकने के लिए कानूनी संशोधनों की मांग के साथ-साथ हर तरह से विरोध प्रदर्शन किए हैं। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर भी इन घटनाओं के विरोध में कई कैंपेन्स शुरू किए गएं, जैसे- #MeToo

#MeToo के बाद ट्वीटर इंडिया ने #positionofstrength कैंपेन की शुरुआत की और फिर ट्विटर ने Youth Ki Awaaz के साथ #हमसेहैहिम्मत भी लॉन्च किया।

महिलाओंं के विषय पर अगर बात करें तो ये बात सिर्फ सेक्शुअल अब्यूज़ तक नहीं रहती, यहां बात उनके अधिकारों, उनकी आज़ादी की भी होती है। चाहे वो बराबरी की सैलरी की बात हो, शिक्षा की बराबरी की, एक शादीशुदा ज़िन्दगी में बराबरी हो या फिर सेक्स लाइफ में औरतों के कंसेंट की बात हो।

Youth Ki Awaaz ने इन महिलाओं को अपनी बात खुलकर रखने का एक प्लैटफॉर्म दिया है। YKA पर महिलाएं लगातार यौन शोषण और पितृसत्ता के खिलाफ खुलकर लिख रही हैं। जिनकी बातें मेन स्ट्रीम मीडिया सुनने को तैयार नहीं होता, उन्होंने YKA को अपनी बात कहने के लिए चुना है। YKA के ज़रिए ना सिर्फ महिलाओं ने बल्कि पुरुषों ने भी इन मुद्दों पर खुलकर बाते की हैं।

इनकी गंभीरता को समझते हुए, हम इन चर्चाओं को सिर्फ वेबसाइट तक सीमित ना रखकर सीधा लोगों के बीच ले जाना चाहते हैं। इसी सोच के तहत YKA Summit 2018 में UNICEF, UN Women, Twitter, Global Health Strategies के साथ मिलकर हम ऑर्गनाइज़ कर रहे हैं फेमिनिस्ट अड्डा। हमारा मानना है कि इन विषयों पर खुलकर बात करने पर ही महिलाओं के इन मुद्दों का हल निकाला जा सकता है और हम जितना खुलकर बात करेंगे उतना ही महिलाएं अपने अधिकारों के लिए, अपने साथ हो रहे यौन शोषण के खिलाफ खुलकर सामने आएंगी।

फेमिनिस्ट अड्डा में स्पोर्ट्स, पुलिस, फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी अलग-अलग बेहद ही प्रभावशाली वो महिलाएं चर्चा करेंगी और अपनी कहानी साझा करेंगी जिन्होंने अपने स्तर से पितृसत्ता को चुनौती दी है। जेंडर न्याय के लिहाज़ से एक बेहतर देश बनाने में इनका योगदान सराहनीय है और इनकी कहानियां वाकई समाज के तय ढर्रों को तोड़ती नज़र आती हैं।

मिलिए फेमिनिस्ट अड्डा के बेहतरीन स्पीकर्स से

इकरा रसूल

 

19 साल की कश्मीर की क्रिकेटर इकरा को बारामुल्ला की सुपरगर्ल के नाम से जाना जाता है। 19 साल की इकरा ने कई राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट टूर्नामेंट्स में जम्मू कश्मीर का प्रतिनिधित्व किया है।

सबसे पहले इकरा के हाई स्कूल के कोच ने उनके अंदर छुपे एक बेहतरीन क्रिकेटर की पहचान की और इकरा की ट्रेनिंग की शुरुआत हुई। ट्रेनिंग की शुरुआती दिनों में सिर्फ उनकी मां को इस बारे में बताया गया था, क्योंकि शुरुआत में इस बात का डर था कि परिवार के दूसरे सदस्यों को पता चलने पर उन्हें विरोध का सामना करना पड़ सकता है।

हालांकि इकरा की प्रतिभा ज़्यादा दिनों तक किसी से छिप नहीं सकी और ‘बारामुल्ला की सुपरगर्ल’ को क्रिकेट एसोसिएशन के कोचों की नज़रों में आने में देर नहीं लगी। 2017 में उन्हें एच.ई.आर पुरस्कार मिला, ये पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने तमाम मुश्किलों के बाद भी क्रिकेट की दुनिया में उल्लेखनीय काम किए हैं। इकरा आज भारतीय महिला क्रिकेट टीम में शामिल होने के लिए प्रशिक्षण ले रही हैं। कश्मीर से एक महिला क्रिकेटर के रूप में अपनी पहचान बनाना इकरा के लिए इतना आसान नहीं था लेकिन उन्होंने जेंडर नॉर्म्स को तोड़ते हुए आज अपनी अलग पहचान बनाई है।

विजयंता गोयल

दक्षिणी दिल्ली की पुलिस उपायुक्त गोयल एक सशक्त महिला हैं। समाज में समानता की वकालत करने वाली आईपीएस विजयंता पुलिस सर्विस में ज़्यादा-से-ज़्यादा महिलाओं के शामिल होने के विकल्पों पर भी खुलकर बाते करती हैं। विजयंता बाल शोषण, एसिड अटैक जैसे कई गंभीर मुद्दों के खिलाफ लड़ाई में हमेशा आगे रहती हैं। विजयंता खाकी वर्दी पहनकर, प्रशासन के अंदर मौजूद पितृसत्ता के खिलाफ लगातार लड़ रही हैं।

विनातोली येप्थो

नागालैंड की कवि विनातोली वर्तमान में पश्चिम बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिडिकल साइंसेज़ से एलएलबी कर रही हैं।

2016 में उनकी एक कविता Five Rules for Whomever it May Concern वायरल हुई थी, जिसमें उन्होंने नॉर्थ ईस्ट की महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन शोषण और नस्लभेद के कारणों पर खुलकर बात की हैं।

विनातोली अपनी विद्रोही कविताओं की वजह से जानी जाती हैं और कविता पढ़ने की उनकी अपनी अलग शैली है, जिसमें वो अपने ऑडियंस को भी शामिल करते हुए लैंगिक असमानता, नस्लभेद, बॉडी इमेज और राजनीति में परिवारवाद जैसे मुद्दों के खिलाफ आवाज़ उठाती हैं।

उनकी कोशिश है कि वो अपनी कानूनी शिक्षा का इस्तेमाल पॉलिसी बनाने में आ रही कमज़ोरियों को दूर करने के लिए करें जो हाशिए वाले समुदायों के सशक्तिकरण में सहायक हो।

प्रतिष्ठा देवेश्वर

छह साल पहले 13 साल की उम्र में प्रतिष्ठा पैरलाइज़्ड हो गई थीं लेकिन इस बीमारी की वजह से उन्होंने हिम्मत नहीं हारी बल्कि ज़िन्दगी को उन्होंने सकारात्मक नज़रिये से देखा। एक कार दुर्घटना में पैरलाइज़्ड होने से पहले जिस तरह उन्होंने सभी गतिविधियों में सफलता हासिल की, वही जज़्बा उस एक्सीडेंट के बाद भी उनके अंदर बना रहा।

प्रतिष्ठा आज अपने कॉलेज लेडी श्री राम की इक्वल ऑपरच्यूनिटी सेल का नेतृत्व कर रही हैं। इस दिशा में अपनी निरंतर कोशिशों की वजह से प्रतिभा अपने कॉलेज को काफी हद तक पर्सन विद डिसएबिलिटी के लिए पूरी तरह से एक्सेसिबल बनाने में कामयाब रही हैं, साथ ही कॉलेज कैंपस के बाहर भी लगातार इस दिशा में काम कर रही हैं।

ऋतुपर्णा चटर्जी

ऋतुपर्णा चटर्जी, पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में सक्रीय हैं। इन्होंने दिल्ली में स्टेट्समैन अखबार से अपने करियर की शुरुआत की थी। इन्होंने पीटीआई और रॉयटर्स जैसी मीडिया एजेंंसी में भी काम किया है, साथ ही कई वेबसाइट और मैगज़ीन के साथ भी जुड़ी रही हैं।

ऋतुपर्णा Huffpost की इंडियन फाउंडर टीम में से एक रही हैं और इन्होंने डिप्टी एडिटर और एक्टिंग एडिटर इन चीफ के रूप में अपनी भूमिका निभाई है। वर्तमान में वो स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं। ऋतुपर्णा इंटरनैशनल प्रेस फ्रीडम, वॉचडॉग रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर की भारत में कॉरेस्पॉन्डेंस भी हैं। ये प्रेस फ्रीडम, जेंडर राइट्स और सामाजिक असमानता जैसे विषयों पर लिखती हैं।

मुमताज शेख

सोशल एक्टिविस्ट मुमताज शेख को आयरन लेडी कहना गलत नहीं होगा। एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने की वजह से शेख को बचपन में काफी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। शेख को परिवार की माली हालत की वजह से 9वीं क्लास में स्कूल छोड़ना पड़ा और 15 साल की उम्र में ही उनकी शादी कर दी गई। 16 साल की छोटी उम्र में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया।

शेख घरेलू हिंसा की शिकार भी हुईं और बाद में उन्होंने तलाक का केस भी फाइल किया। 36 साल की उम्र में शेख आज मानवाधिकारों और महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम कर रही हैं। इन्होंने मुंबई में महिलाओं के लिए पब्लिश टॉयलेट की उपलब्धता के लिए राइट टू पी कैंपेन चलाया। समाज के प्रति अपने बेहतरीन कामों की वजह से वो BBC द्वारा पहचानी गईं और BBC की एक सीरिज़ 100 वुमन में उनकी कहानी को जगह मिली।

आदित्य गुप्ता

आदित्य गुप्ता एक सोशल ऑन्थ्रोप्रेन्यो हैं, जो भारत में लिंग आधारित हिंसा और भेदभाव से संबंधित मुद्दों को समझने और उसके समाधान के लिए काम करते हैं।

पीपल फॉर पैरिटी के संस्थापक आदित्य, अपनी इस गैर-लाभकारी संस्था के ज़रिए 20,000 युवाओं को शिक्षित कर चुके हैं। साथ ही मौजूदा लैंगिक सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों को बदलने के लिए 700 एक्टिविस्टों को प्रशिक्षण दे चुके हैं।

अपने सकारात्क कार्यों की वजह से अशोका, यूएन हैबिटेट, अंतरराष्ट्रीय युवा फाउंडेशन, प्रवाह और Unltd द्वारा इन्हें पहचाना गया और इन्हें फेलोशिप भी मिली।

कोंकणा सेन

एक्टर, राइटर, फिल्ममेकर, कोंकणा सेन महिला मुद्दों पर खुलकर बातें करती हैं। कोंकणा ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बंगाली फिल्म Ek Je Aachhe Kanya (2003) से की थी, उन्होंने 2005 में ‘पेज 3’ से हिंदी फिल्मों में अपना डेब्यू किया था। फिल्मों में अपने बेहतरीन प्रदर्शन के लिए उन्हें दो नेशनल अवॉर्ड और चार फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुका हैं। कोंकणा ने फिल्मों में कई मज़बूत महिला किरदारों का रोल अदा किया है और इस पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए कई महिला मुद्दों को समाज के सामने लाने का काम कर रही हैं।

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इन स्पीकर्स को सुनने के लिए अप्लाय करें – Youth Ki Awaaz Summit

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