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आरबीआई की माने तो नोटबंदी से देश को कोई फायदा नहीं हुआ

आज से दो साल पहले जब देश के प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा की थी, तो कई तरह के दावे किए थे। मसलन उन्होंने इसे काला धन पर प्रहार, नक्सली हिंसा पर लगाम, भ्रष्टाचार रोकने और पत्थरबाजों पर नकेल कसने की बात कही थी। लेकिन आरबीआई की मानें तो नोटबंदी से देश को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है।

आरबीआई की ओर से जारी किए गए आंकड़ों में इस बात की पुष्टि की गई है कि लगभग 99.3 प्रतिशत पैसे बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए हैं। आरबीआई पर लगातार दबाव था कि वो नोटबंदी के बाद वापस आए पैसे का एक आंकड़ा देशवासियों के सामने रखें, जो आखिरकार आरबीआई ने अपने वार्षिक रिपोर्ट 2017-18 में जारी किया।

आरबीआई के अनुसार 8 नवंबर 2016 को जब नोटबंदी लागू की गई थी, तब 15.41 लाख करोड़ के 500 और 1000 के नोट बाजार में थे। और अब जब आरबीआई की तरफ से सारी प्रक्रिया पूरी कर ली गई है, तो 500 और 1000 के लगभग 15.31 लाख करोड़ वापस बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए हैं। आरबीआई के इस ऐलान ने प्रधानमंत्री के उन सारे वादों को खोखला कर दिया है, जो उन्होंने नोटबंदी के समय देशवासियों से कही थी।

इतना ही नहीं पुराने 500 और 1000 के नोट के बदले सरकार द्वारा जो नए 500 और 2000 के नोट जारी किए थे, उसके लिए भी आऱबीआई को पूर्व की तुलना में दोगुणा प्रिटिंग का खर्च उठाना पड़ा जो किसी भी मायने में उचित नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में प्रधानमंत्री के किए गए वादे कम से कम नोटबंदी के परिणामों ने गलत साबित कर दिया है।

आरबीआई के ऊपर पहले से भी सवाल उठाए जा रहे थे कि वो सरकार के दवाब में नोटों की गिनती नहीं बता रही है। प्रधानमंत्री मोदी भी नोटबंदी के परिणाम से अनजान नहीं थे। इसलिए पहले उन्होंने नोटबंदी को डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देने की बात कह कर बचाव किया। और फिर धीरे-धीरे नोटबंदी के फैसले को अपने भाषणों में दूर करते चले गए।

यही कारण था कि अपनी सरकार की छोटी से छोटी उपलब्धि भी गिनवाने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से एक बार भी नोटबंदी का ज़िक्र नहीं किया था। अब जब आरबीआई ने अपने वार्षिक रिपोर्ट में ये आंकड़े जारी किए हैं तो केंद्र सरकार के सामने एक और चुनौती है कि वो आने वाले लोकसभा चुनाव में आम लोगों के सामने अपने इस फैसले तो न्यायोचित सिद्ध करे, जो कि केंद्र सरकार के लिए आसान नहीं होगा।

 

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