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हरियाणा में फसल खराब होने पर मुआवज़ा क्यों नहीं देना चाहती सरकार?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मनोहर लाल खट्टर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मनोहर लाल खट्टर

कृषि उत्पादन में हरियाणा भले ही अग्रणी होने के दावे करे लेकिन आज भी भिवानी ज़िले के तहसील सिवानी में हर साल फसलें खराब हो रही हैं। यहां के किसानों को हर बार अपनी खराब फसल के मुआवज़े के लिए आंदोलन का सहारा लेना पड़ता है। राजस्थान के बॉर्डर के साथ सटे इस तहसील के अधिकतर गांव बारानी होने के कारण वर्षा पर निर्भर हैं। यहां तक कि लगभग हर साल वर्षा के अभाव में एक फसल (खरीफ या रबी) का खराब होना आम बात है। अगर किसी वर्ष कोई फसल अच्छी बारिश के कारण किसान की उम्मीद बढ़ाती है, तब किसी अन्य प्राकृतिक आपदा जैसे, ओलावृष्टि, शीतलहर और फसल रोग का शिकार हो जाती है। ऐसे में बेचारा मार खाया किसान फिर नारे लगाने के लिए तहसील कार्यालय में धरने पर बैठने को मजबूर हो जाता है।

अखिल भारतीय किसान सभा के हरियाणा प्रदेश सचिव दयानंद पूनिया का कहना है कि पिछले दस वर्षों में खरीफ और रबी की फसलों में से किसी भी वर्ष दोनों फसलें  पूरी तरह पककर किसान के हाथ नहीं लगी है। इस वर्ष भी खरीफ की फसल पहले सुखाड़ की वजह से और अब शेष बची कपास की फसल सितम्बर माह की बारिश के कारण खराब हो चुकी है।

क्षेत्र के किसान आंदोलन किए जा रहे हैं तथा मुआवज़े  हेतु सरकार से ‘स्पेशल गिरदावरी करवा कर’ की मांग कर रहे हैं और सरकार कम खराबा दिखाकर किसानों को मुआवज़े नहीं देना चाहती है।

पूनिया कहते हैं, “किसानों की क्या हालात होगी जिनकी फसलें सुखाड़ की वजह से सूख चुकी है, परंतु सिवानी का प्रशासन इन फसलों को खराब नहीं मान रहा है, जबकि पटवारी  इन फसलों को 15% खराब मान रहे हैं। सिवानी में बर्बाद फसलों के मुआवज़े की मांग को लेकर ज़ोरदार प्रदर्शन किया गया, तब जाकर प्रशासन की तरफ से एक रिपोर्ट दी गयी है। उस रिपोर्ट में कहा गया कि केवल ढाणी सिंलावाली, लिलस, झूम्पा कला, झूम्पा खुर्द, मतानी, मोरका, ढाणी भाकरा, धंधाला और बुधसैली में 50% से ऊपर खराबा दिखाया है।”

हल्का लोहारू की विधानसभा से इंडियन नेशनल लोकदल के विधायक ओमप्रकाश बडवा ने भी क्षेत्र भ्रमण कर खराब हो चुकी फसलों के लिए सरकार से मुआवज़े की मांग की है।

भिवानी ज़िले के उपायुक्त ने भी फसल खराबे (किसानों की खराब हुई फसलें) को स्वीकार किया है। 27 सितम्बर को प्रेस वार्ता में उपायुक्त अंशज सिंह ने कहा, “ज़िले में राजस्व विभाग के अधिकारियों को फसलों की गिरदावरी शीघ्र करने के निर्देश दिए जा चुके हैं। खरीफ की फसलों में बाजरा, कपास, धान तथा मक्का की फसल का बीमा ‘ओरियंटल जनरल इंश्योरेंस कंपनी’ द्वारा किया जा चुका है। ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ के तहत 43 हज़ार किसानों को कवर किया गया है।”

उन्होंने आगे कहा, “बारिश के कारण खराब हुई फसलों के नुकसान के मुआवज़े हेतु 6,895 किसानों के आवेदन कृषि एवं किसान कल्याण विभाग को प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें से 750 किसानों के खेतों का सर्वे किया जा चुका है और अन्य किसानों के खेतों का निरीक्षण शीघ्र कर लिया जाएगा। ज़िले में लगभग धान की फसल 14,185 हैक्टेयर, बाजरा 31,627 हेक्टेयर, कपास 64,481 हेक्टेयर, मूंग  4,500 हेक्टेयर तथा ग्वार 26,765 हेक्टेयर बारिश के कारण खराब हुई है। जिन ग्रामीण इलाकों के किसानों की फसलों में जलभराव है, वहां से पानी की निकासी की जा रही है।”

अखिल भारतीय किसान सभा हरियाणा के प्रदेश सचिव डॉ. बलबीर सिंह ठाकन ने आरोप लगाते हुए कहा, “आईसीआईसीआई लोंबार्ड कम्पनी ने कुछ किसानों का बीमा क्लेम यह कहकर नकार दिया कि कृषि विभाग का फसल खराबा आंकलन गलत है तथा उपग्रह चित्रों से कोई नुकसान नज़र नहीं आता।”

उन्होंने आगे कहा, “आईसीआईसीआई लोंबार्ड कम्पनी द्वारा सिरसा व भिवानी की ‘खरीफ 2017 कपास बीमा क्लेम’ के 390 करोड़ की राशि को नकारा गया है। इसके अलावा खरीफ 2017 बाजरा क्लेम में कई बैंक शाखाओं में खराबा आंकलन का आधा रुपया जारी कर ऋणी किसानों को करोड़ों रुपये का चूना लगाया गया है। उदाहरण के तौर पर पीएनबी बहल शाखा में 550 कृषि कार्ड धारकों के 1,40,58,230 रुपये क्लेम के बदले 70,29,115 रुपये तय मापदंडों से सिर्फ आधा क्लेम ही डाला गया। यह काफी बैंकों में दोहराया जा रहा है।” उन्होंने बताया, “औसत उत्पादन आंकड़ों के अनुसार बहल खंड में लगभग 9-10 हज़ार प्रति एकड़ बाजरा क्लेम मिला है, परंतु पीएनबी बहल ने इसकी आधी राशि के क्लेम का भुगतान किया है। स्टेट बैंक में विलय किए गए बैंकों का बीमा क्लेम भी अटका पड़ा है।”

नोट: यूज़र के द्वारा यह लेख स्पेशल कवरेज वेबसाइट पर प्रकाशित की जा चुकी है।

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