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महिलाओं के लिए कितनी मुश्किल होती है नाइट शिफ्ट

आरा सदर अस्पताल की नर्स रिंसी के लिए नाइट शिफ्ट किसी खतरे से कम नहीं होता है। अस्पताल में रात के वक्त आए दिन होने वाले हंगामों के बीच रिंसी कई बार असुरक्षित महसूस करती हैं। वहीं पटना की 53 वर्षीय कुंदन पर ज़बरदस्ती सिर्फ एक गार्ड के भरोसे अकेले नाइट शिफ्ट करने का दबाव बनाया गया। दिल्ली के एक NGO में काम करने वाली 26 साल की एक लड़की के काफी विरोध के बाद भी आधी रात को ऑफिस के काम के लिए बिना किसी गार्ड के गाड़ी से यात्रा करने पर मजबूर किया गया।

ये तीन घटनाएं आपको इस बात का सबूत देंगी कि लड़कियों के लिए नाइट शिफ्ट कई बार कितनी चुनौतिपूर्ण हो जाती है। जबकि कोई भी संस्था ज़बरदस्ती अपनी फीमेल स्टाफ से नाइट शिफ्ट नहीं करवा सकती है।

कई संस्थान नाइट शिफ्ट के दौरान महिलाओं के लिए सुरक्षा के पूरे इंतज़ाम करती है। मैंने जब इस स्टोरी के लिए अपनी मीडिया की दोस्तों से नाइट शिफ्ट में होने वाली परेशानियों के बारे में पूछा तो अमूमन लड़कियों का यही जवाब था, “हमें कभी किसी भी तरह की कोई परेशानी नहींं होती है। वजह, हमें पूरी सुरक्षा के साथ घर छोड़ा जाता है”।

अमूमन दिल्ली के सभी मीडिया संस्थान या कुछ दूसरे ऑफिस तो महिलाओं की नाइट शिफ्ट के समय सुरक्षा को लेकर सभी कानूनी नियमों का पालन करते हैं लेकिन कई ऑफिस इस बात को धड़ल्ले से नज़रअंदाज़ भी करते हैं, जिसका उदाहरण ऊपर की तीन घटनाएं हैं।

नाइट शिफ्ट में अकेली महिला की लगाई गई थी शिफ्ट

पटना के सेंट्रल गवर्मेंट हेल्थ स्कीम में काम करने वाली 53 वर्षीय कुंदन अपने ऑफिस में अकेले महिला स्टाफ हैं। उनका ऑफिस सामान्यत: 6 बजे शाम को बंद हो जाता है लेकिन ऑफिस की सुरक्षा के लिए ऑफिस के एक स्टाफ की नाइट ड्यूटी लगती है और उसे रातभर ऑफिस में रहना होता है। इसका उद्देश्य रात को ऑफिस के कागज़ात की देखभाल होती है। उस व्यक्ति के साथ ऑफिस में एक गार्ड होता है।

कुंदन के ऑफिस ज्वाइन करने के कुछ ही महीने (साल 2012 में) बाद उनकी नाइट शिफ्ट लगाई गई। नाइट शिफ्ट के दौरान पूरे ऑफिस में उन्हें अकेले रहना होता और उनकी सुरक्षा के लिए एक पुरुष गार्ड होता। कुंदन ने यह कहते हुए नाइट शिफ्ट के लिए मना कर दिया कि वह रात को रुकने में सहज नहीं हैं। कुंदन ने कहा, “जब मैं अकेले खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करूंगी तो ऑफिस की खाक सुरक्षा कर सकूंगी।”

उस ऑफिस में उस वक्त कुछ ऐसे डॉक्यूमेंट्स भी थे जिनके आधार पर कुछ लोगों को सज़ा होने वाली थी। कुंदन के विरोध करने पर उन्हें अपने सीनियर से जवाब मिला,

तनख्वाह लेते वक्त तो आप लोग मर्दों की बराबरी करने लगती हैं लेकिन काम के वक्त ‘मैं औरत हूं, कैसे करूंगी’ वाला ऐंगल निकलाने में वक्त नहीं लगता।

इसके बाद कुंदन की बेटियों ने वर्क प्लेस में सेक्शुअल हरासमेंंट की बात करते हुए ऑफिस में एक लेटर भेजा, इस लेटर में यह भी लिखा कि एक महिला को नाइट शिफ्ट के लिए ज़बरदस्ती नहीं की जा सकती है। इसके बाद उनकी नाइट शिफ्ट हटाई गई।

मामला यहां खत्म नहीं हुआ। कुंदन बताती हैं, “एक बार मुझे एक स्पेशल शिफ्ट में रखा गया था, जिसमें शाम के 6 बजे से रात के 9 बजे तक ऑफिस जाना होता था लेकिन ऑफिस से किसी भी प्रकार की कैब की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। रात के 9 बजे भी मुझे अकेले ही घर आना होता था। शेफ्टी का इशू देखते हुए मेरी बेटी मुझे रात को लेने आती थी लेकिन ऑफिस की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिली।”

रात को महिला स्टाफ के लिए सुरक्षित नहीं होता है अस्पताल

सदर अस्पताल आरा में नर्स के रूप में कार्यरत रिंसी रात को सुरक्षित घर पहुंचने की बात पर कहती हैं, “हम लोगों की एक शिफ्ट होती है, दोपहर 2 बजे से रात के 8 बजे तक। कई बार अगर आप किसी ऑपरेशन में हैं या कोई इमरजेंसी केस में हैं तो ऐसा नहीं होता कि आपकी शिफ्ट खत्म हो गई आप निकल जाएं। हमें उस केस को निपटाना होता है। ऐसे में कई बार और भी देरी हो जाती है।

कई नर्स पटना से भी अप डाउन करती हैं लेकिन रात के 8-9 बजे निकलने पर भी उन्हें किसी तरह की कैब की सुविधा नहीं मिलती। हमारे यहां कैब की सुविधा का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं होता है। हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर ही होती है वो भी आरा जैसे क्राइम वाले शहर में।”

रिंसी बताती हैं कि नाइट शिफ्ट में अस्पताल के अंदर ही सुरक्षा के लिहाज़ से कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार रात के वक्त पेशेंट हंगामा करने लगते हैं, कई बार यह हंगामा उपद्रव का रूप भी ले लेता है और उस वक्त सबसे पहले अस्पताल के गार्ड्स भाग खड़े होते हैं।

रिंसी।

रिंसी ने एक घटना के बारे में बताते हुए कहा, “शाम के वक्त एक बार सिर पर गोली लगे 20 साल के पेशेंट को कुछ लोग अस्पताल लेकर आएं। पेशेंट के साथ आए एक व्यक्ति ने मेरे सिर पर बंदूक तान दी और बोला, ‘इसकी गोली निकालो’। मैं नर्स होकर गोली कैसे निकाल सकती थी? उनमें से एक लगातार बोल रहा था गोली निकालो और एक दूसरा आदमी बोल रहा था नहीं तुम गोली नहीं निकालोगी तुम इसका खून रोको।”

रिंसी ने बताया कि उस वक्त कोई गार्ड नज़र नहीं आ रहा था, डर से उसकी हालत खराब थी मगर वह इस वक्त अपना सब्र नहीं खो सकती थी।

रिंसी आगे बताती हैं, “उस वक्त इसके स्पेशलिस्ट डॉक्टर भी अस्पताल में नहीं थे। इमरजेंसी में एक चर्म रोग विशेषज्ञ उपलब्ध थे उन्होंने अपने स्तर पर जितना संभव था उन्होंने किया। उस आदमी को बड़ी शांति से समझाने की कोशिश की गई कि सर यह ऑपरेशन का मामला है। हमने अगर कुछ किया तो केस और बिगड़ जाएगा। फिर उसके खून रोकने की कोशिश की गई। इन सबके दौरान वह आदमी मेरे सिर पर गोली ताने हुए था।”

रिंसी बताती हैं कि फिर पेशेंट को अंदर ले जाया गया लेकिन पेशेंट की मौत हो गई। अब ज़ाहिर था कि पेशेंट की मौत पर पूरा हंगामा होना है। तब तक मुझे गार्ड दिखा। मैंने गार्ड से कहा कि आप लोग कहां चले गए थे। इस पर गार्ड ने कहा कि मैडम हमें भी तो अपनी जान बचानी है उसके हाथ में बंदूक था। जब मैंने गार्ड से पूछा कि बंदूक तो आपके पास भी है, इसपर गार्ड का कहना था कि मैडम हमारी बंदूक इतनी पुरानी है, कभी चलती भी नहीं। जंग भी लग चुका है इसपर, जब तक हम अपनी बंदूक ठीक करते, वो हमें मार चुका होता।

गार्ड ने रिंसी सहित सभी नर्स को कहा कि आप अपना कोट साइड में रखकर नॉर्मल आदमी के जैसे भीड़ में निकल जाइए। गलती से भी उसे एहसास नहीं होने दीजिएगा कि आप अस्पताल की स्टाफ हैं।

रिंसी बताती हैं कि उस दिन रात को घर आकर मैं पूरी तरह सदमे में थी। यह तो सिर्फ एक घटना है। इस तरह ना जाने कितनी घटनाओं का हमें सामना करना पड़ता है।

रात को आरा में लगभग सभी प्राइवेट क्लिनिक बंद होते हैं इसलिए पूरी भीड़ हमारे यहां ही आती है। लोगों को लगता है कि सरकारी अस्पताल है तो यहां सब चीज़ों की सुविधा होगी लेकिन ऐसा होता नहीं है, रात के वक्त डॉक्टर्स की भी कमी होती है। इन वजहों से कई बार लोग भड़क जाते हैं और हिंसक रूप में उतर आते हैं। उस वक्त हमारी सेफ्टी की ज़िम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं होता।

आधी रात को यमुना एक्सप्रेस वे से यात्रा करने के लिए किया गया मजबूर

दिल्ली के एक एनजीओ में काम करने वाली 26 वर्षीय एक लड़की ने अपना और अपनी कंपनी का नाम ना बताने की शर्त पर बताया कि उसे किस तरह से एक बार रात को लखनऊ से दादरी जाने के लिए फोर्स किया गया था। चंचल (बदला हुआ नाम) इस घटना के बारे में बताते हुए कहती हैं कि उस वक्त मैं ऑफिस के किसी काम से लखनऊ में थी। हमें कहा गया कि दूसरे दिन 8 बजे हमें दादरी में एक ट्रेनिग अटेंड करनी है।

फोटो प्रतीकात्मक है। सोर्स- Getty

ट्रेनिंग सुबह 8 बजे होने की वजह से कहा गया कि मुझे और मेरे साथ 5 और लड़कियों को रात को ही ट्रैवल करके दादरी जाना होगा ताकि रात 2 बजे तक हम दादरी पहुंच जाएं और सुबह मीटिंग के लिए हमें देरी ना हो।

हमें यह यात्रा बाय रोड से करनी थी। उस गाड़ी में हम 6 लड़कियों के अलावा सिर्फ एक ड्राइवर था। हमें किसी गार्ड की भी सुविधा नहीं दी गई। इस यात्रा के दौरान हमें यमुना एक्सप्रेस वे से होकर गुज़रना था। जबकि कंपनी का बॉस खुद फ्लाइट से यात्रा करने वाला था। मैंने जब इसका विरोध किया तो मुझे कहा गया कि नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन में ऐसा ही होता है। आपको काम के लिए रात दिन नहीं देखना होता है।

चंचल ने अपने बॉस को बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन उसके बॉस का एक ही जवाब था या तो ट्रेनिंग के लिए अभी ट्रैवल करो या फिर नौकरी छोड़ो।

चंचल का कहना है कि उसे यह तक कहा गया कि वैसे तो तुम लोग बहुत समानता की बातें करती हो लेकिन जब काम की बात आती है तो मैं लड़की हूं वाली बात ले आती हो। चंचल का कहना है कि हमें बार-बार कमतर दिखाने के लिए इस तरह के ताने दिए जाते हैं।

चंचल ने बताया कि मैं एक मीडिल क्लास परिवार से आती हूं और हमारे यहां बाहर पढ़ने या नौकरी करने के लिए ही अपने पेरेंट्स को मनाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में अगर मैं उन्हें यह बोलूं कि मैं आधी रात को यमुना एक्सप्रेस वे से ट्रैवल कर रही हूं तो वो मुझे कभी नौकरी करने नहीं देंगे।

चंचल और उन 5 लड़कियों को मजबूरन रात को ही यात्रा करनी पड़ी और उनके मेल बॉस ने फ्लाइट से यात्रा की। चंचल का कहना है कि काम से लौटने में रात होने पर यहां कभी किसी तरह की कैब की सुविधा नहीं मिलती,अगर आप काम से लौटने में लेट होते हैं तो घर जाने की पूरी ज़िम्मेदारी आपकी खुद की ही होती है। चंचल ने वह नौकरी तो छोड़ दी है लेकिन चंचल का कहना है कि इस तरह की घटना अमूमन जगहों में देखने को मिलती है।

यहां अगर चंचल ने कम्प्लेन की होती तो उस कंपनी के बॉस पर केस हो सकता था, क्योंकि कानून के हिसाब से रात 8 बजे के बाद किसी भी महिला स्टाफ के लिए कैब की सुविधा अनिवार्य है। सिर्फ कैब ही नहीं बल्कि कैब में महिला स्टाफ के साथ एक गार्ड का होना भी अनिवार्य है। साथ ही जब तक वह महिला अपने घर में प्रवेश नहीं कर जाती है गाड़ी और गार्ड वहां से नहीं जा सकते हैं।

यह ऑर्डर Criminal Procedure Code के सेक्शन 144 के तहत लागू किया गया है और इसका उल्लंघन करने पर आईपीसी के सेक्शन 188 के तहत सज़ा का प्रावधान है। जिसमें 6 महीने की जेल की सज़ा या 1000 रुपए का जु़र्माना या दोनों लग सकता है।

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