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रेप सर्वाइवर्स से घटना के बारे में बार-बार पूछना खतरनाक हो सकता है

पटना की एक स्कूली लड़की जिसे सेक्स का मतलब तक नहीं मालूम, जो अभी पूरी तरह से किशोरावस्था में भी नहीं पहुंची थी, उसका कई बार रेप हो चुका था और रेप की घटना लगातार जारी थी। यह रेप उसके घर में ही हो रहा था और ऐसा करने वाला उसका अपना बड़ा भाई ही था। यह घटना अगले 10-12 सालों तक लगातार चलती रही।

रूपा (बदला हुआ नाम) के लिए यह सब समझ पाना भी मुश्किल था कि उसके साथ हो क्या रहा है? इस वजह से उसने घर में किसी को कुछ नहीं बताया। इस घटना को वह अपने पाप का फल मान बैठी थी।

दरअसल, स्कूल के दिनों में रूपा की दोस्ती दलित समुदाय के एक लड़के से थी। रूपा जब भी अपने भाई द्वारा शारीरिक संबंध बनाने का विरोध करती तो उसका भाई कहता,

क्यों, उस अछूत लड़के के साथ घूमने में तुझे शर्म नहीं आई और मेरे छूने से तुझे आपत्ति है। तेरे इस पाप की वजह से ही तो हमारी मां भी गुज़र गई।

रूपा ने इस तरह अपनी मां के गुज़रने की घटना और अपने भाई द्वारा हर रोज़ बलात्कार किए जाने को अपने पाप की सज़ा मान ली थी।

इस दौरान वह सालों तक भयावह मानसिक ट्रॉमा से गुज़र रही थी। हमेशा चुप रहना, लोगों से खुलकर ना बोलना या लोगों से डरना यह सब उसके जीवन की आम बात हो चुकी थी। वजह, वह ना सिर्फ घर के भीतर ही हो रहे निरंतर यौन शोषण को सह पा रही थी बल्कि अपनी पीड़ा को किसी से शेयर भी नहीं कर पा रही थी। सारी चीज़ें उसके मन में ही परत दर परत जमी जा रही थी।

इस बीच उसकी एक दोस्त ने (जो पटना यूनिवर्सिटी से वीमेन स्टडीज़ की पढ़ाई कर रही थी) उसकी मन:स्थिति पर गौर किया और अपनी दूसरी दोस्तों से उसके लिए कुछ करने की सलाह मांगी। इसके बाद दोस्तों ने मिलकर रूपा को किसी बहाने से घर से बाहर निकाला। बता दूं कि रूपा को घर से बाहर निकलने की भी इजाज़त नहीं थी।

रूपा घर में अपने उसी भाई और उसकी पत्नी यानी भाभी (जिसे उस वक्त तक घर में चल रहे इस घिनौने व्यापार के बारे में कुछ भी पता नहीं था) के साथ रहती थी। पापा गांव में रहते हैं।

रूपा को उसकी दोस्तों ने अपने कॉलेज की एक प्रोफसर पद्मलता ठाकुर (उस वक्त वह पटना यूनिवर्सिटी में वीमेन स्टडीज़ डिपार्मेंट की एचओडी थी) से मिलवाया। डॉक्टर पद्मलता ने उसे पहले दोस्त जैसा भरोसा दिलाया। बिना उस घटना के बारे में कुछ पूछे उससे इधर-उधर की बातें की। तकरीबन 2 घंटे तक इधर-उधर की बातें करने के बाद जब रूपा कम्फर्टेबल हो गई तब उसने खुद ही प्रोफेसर को सारी बातें बताई।

फोटो प्रतीकात्मक है।

रूपा ने बताया कि उसका भाई अपनी शादी के बाद भी उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता है। प्रोफेसर के यह पूछने पर कि तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ करता क्या है, रूपा ने बताया, “वह सबकुछ जो वह अपनी बीवी के साथ करता है।”

प्रोफेसर से घंटों उसकी बातचीत होती रही। इस बातचीत का परिणाम यह हुआ कि रूपा ने उसी दिन घर जा कर सारी बात अपनी भाभी को बता दी। नतीजे में भाभी ने उसका पूरा साथ दिया। रूपा अपने पापा के साथ गांव चली गई, भाभी कुछ समय के लिए अपने मायके।

इसके बाद रूपा जिसने 4 सालों से पढ़ाई छोड़ दी थी, पटना यूनिवर्सिटी के वीमेन स्टडीज़ के पीजी डिप्लोमा कोर्स में एडमिशन लिया। कुछ ही दिनों में रूपा में एक सकारात्मक बदलाव देखने को मिला। जो रूपा पटना के किसी गली मोहल्ले का नाम तक नहीं जानती थी आज 10 किलोमीटर की यात्रा करके रोज़ाना कॉलेज जाती थी। जो रूपा हंसना भूल चुकी थी अब वह अपने क्लास में एक हंसमुख लड़की के रूप में पहचानी जाने लगी थी।

उसने एक सामान्य ज़िन्दगी जीना शुरू कर दिया था। इन सबकी वजह उसकी उस दिन की काउंसलिंग थी। उसे उसके भरोसेमंद साथियों ने समझा सुना और उसका साथ दिया, जिसे भय के मारे वह आज तक किसी को सुना पाने का साहस जुटा नहीं पा रही थी।

दरअसल, रूपा पोस्ट ट्रॉमा स्ट्रेस डिसऑर्डर से गुज़र रही थी। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें इंसान एक अनवरत डर में जीता है।

क्या है पोस्ट ट्रॉमा स्ट्रेस डिसऑर्डर-

मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) के हेल्थ कंसलटेंट सायकाइट्रिस्ट डॉ आशीष विकास बताते हैं कि यह एक मेडिकल कंडिशन है, जिसमें व्यक्ति डर और सदमे में जीता है। इन सबका एक नतीजा यह भी होता है कि वह हमेशा कन्फ्यूज़ रहता है, उसका खुद पर से विश्वास और कॉन्फिडेंस उठ जाता है।

फोटो प्रतीकात्मक है। सोर्स- pexels.com

किसी इंसान के साथ कुछ डरावना, खौफनाक घटना होने पर उसमें पोस्ट ट्रॉमा स्ट्रेस डिसऑर्डर की स्थिति विकसित हो सकती है। युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं के समय लोगों में ऐसी स्थिति सामान्य होती है। जहां तक यौन शोषण की बात है इसमें इंसान का भयावह मानसिक ट्रॉमा से सामना होता है जिसकी वजह से सर्वाइवर में पोस्ट ट्रॉमा स्ट्रेस डिसऑर्डर विशेष रूप से पाए जाने की संभावना होती है। ऐसे इंसान में किसी खतरे या किसी परेशानी से लड़ने की इच्छाशक्ति पर उसका डर हावी हो जाता है।

कई बार इसके लक्षण घटना के तुरंत बाद दिखने लगते हैं मगर कई बार उस घटना के 3-4 महीनों बाद इसके लक्षण विकसित होते हैं। वहीं कुछ स्थितियों में घटना के तकरीबन सालभर बाद भी यह विकसित हो सकता है।

जहां तक इस परिस्थिति से बाहर आने की बात है तो कुछ लोग 6 महीने के अंदर ही इससे बाहर आ जाते हैं और कुछ को काफी सालों तक इस परिस्थिति से बाहर आने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। तब तक परिस्थिति बद से बदतर हो जाती है।

पोस्ट ट्रॉमा स्ट्रेस डिसऑर्डर से बाहर निकलने का उपाय

डॉ आशीष विकास के अनुसार, “इस परिस्थिति से किसी सर्वाइवर को बाहर निकालने का सबसे बेहतर उपाय है साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड। इसके लिए किसी विशेषज्ञ डॉक्टर की ज़रूरत नहीं होती है। सर्वाइवर के परिवार के सदस्य, दोस्त, आस-पास के लोगों द्वारा भी साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड किया जा सकता है।”

यह मूलत: मानसिक सपोर्ट का एक रूप है। जिसमें सर्वाइवर की देखभाल, सपोर्ट, उसे विश्वास में लेना कि आप उसकी मदद के लिए, एक दोस्त की तरह उसे सुनने के लिए सहज उपलब्ध हैं – जैसी गतिविधियां शामिल होती हैं।

इसके अंतर्गत इस बात का ख्याल रहे कि सर्वाइवर को किसी भी बात के लिए ज़ोर ना दे। उसके साथ क्या हुआ है यह बताने के लिए उसपर दबाव ना बनाएं। सर्वाइवर को एक सुरक्षित और उसकी मानसिक स्थिति को सामान्य बनाने के लिए अनुकूल माहौल बनाए।

इसके तहत यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं कि आप घटना के बारे में विस्तार से सर्वाइवर से बात करें। कई बार सर्वाइवर उस घटना के बारे में बताने से और भी डर जाता है। उसे सोशल, फिज़िकल और इमोशनल सपोर्ट दें।

इमोशनल सपोर्ट के साथ ही ज़रूरी है आर्थिक सपोर्ट

दिल्ली की क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर अनुजा कपूर का कहना है कि सर्वाइवर को प्यार और इमोशनल सपोर्ट के साथ ही आर्थिक सहायता की भी ज़रूरत होती है। अनुजा कपूर रेप सर्वाइवर्स के लिए लगातार काम कर रही हैं और उनका कहना है कि सर्वाइवर्स को मानसिक ट्रॉमा से निकालने के लिए प्यार और सपोर्ट की तो ज़रूरत होती है लेकिन यह प्यार भी एक वक्त के बाद कुछ नहीं करेगा। उन्हें सामान्य जीवन में वापस आने के लिए पैसों की भी ज़रूरत होती है। उन्हें आर्थिक रूप से सबल बनाने की ज़रूरत होती है।

हमारा समाज ही सर्वाइवर को ट्रॉमा से नहीं आने देता है बाहर

पटना की वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता झा का कहना है कि हमारे समाज में आम तौर पर यौन शोषण सर्वाइवर्स को उस ट्रॉमा से निकलने ही नहीं दिया जाता है।

फोटो प्रतीकात्मक है।

ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी भयावह है। लोग एक-दूसरे को बेहद करीब से जानते हैं और उनके जीवन में झांकते हैं। सर्वाइवर से ही लोग बार-बार पूछते हैं क्या हुआ, कैसे हुआ। इस तरह उसे उस घटना को भूलने की बजाय उसे याद करने पर मजबूर किया जाता है, जबकि सबसे ज़रूरी उसे उस हादसे से निकालना होता है।

उसे विश्वास दिलाना ज़रूरी होता है कि बलात्कार एक दुर्घटना है। उसके दिमाग में बैठाना ज़रूरी होता है कि जो हुआ उससे आगे निकलो और वह एक वैसी ही दुर्घटना थी तुम्हारी ज़िन्दगी में जैसी कोई अन्य दुर्घटना होती है।

निवेदिता झा का कहना है कि इसके लिए सबसे पहले हमें कोशिश करनी चाहिए कि वह घर में अकेले ना रहे। दूसरा, सर्वाइवर को रूटिन लाइफ में वापस लाना बहुत ज़रूरी होता है।

उन्होंने बताया कि जहानाबाद में दलित लड़की के साथ रेप की घटना के बाद मैं वहां गई थी। वह उस घर में पहली लड़की थी जो स्कूल जाती थी। मगर इस घटना के बाद उसने स्कूल जाना बंद कर दिया। रेप सर्वाइवर्स के साथ इस तरह की स्थिति बहुत सामान्य होती है और उन्हें उस स्थिति से निकालना एक बड़ा चैलेंज होता है।

सिर्फ बलात्कार को लेकर हंगामा करना और फिर उसके बाद फॉलो नहीं करना समाधान नहीं है। सर्वाइवर के सामाजिक परिवेश को कैसे बदले और कैसे वह वापस अपनी दुनिया में आए, इसके लिए उसकी प्रॉपर काउंसिलिंग की ज़रूरत होती है जो कि छोटे शहरों में बिलकुल भी नहीं उपलब्ध होती। छोटे शहरों में काउंसलर ही नहीं होते हैं।

निवेदिता गया की एक घटना के बारे में बताते हुए कहती हैं, “गया में मां-बेटी के साथ बलात्कार हुआ, हमने जब उनसे मुलाकात की तो वह दोनों काफी डिप्रेस्ड थीं। हमने उनके लिए एक अच्छे काउंसलर की मांग की है। सामाजिक संगठनों को रेप सर्वाइवर्स को मानसिक ट्रॉमा से बाहर निकालने की दिशा में काम करना चाहिए।

यौन शोषण की घटनाएंं किसी ट्रॉमा से कम नहीं होती हैं। इस ट्रामा को हमारा समाज और भी जटिल बनाने का काम करता है- कभी सर्वाइवर के लिए इस घटना को शर्म करार देकर तो कभी सहानुभूति के रूप में बार-बार उस घटना की बात छेड़ करके। हम यह समझने की कोशिश ही नहीं करते कि हमारी एक ज़रा-सी सावधान भूमिका सर्वाइवर को इस ट्रॉमा की असह्य पीड़ा से निकालने में महत्वपूर्ण हो सकती है।

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