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“किसानों की कर्ज़माफी समाधान नहीं है, यह बात राजनेता क्यों नहीं समझते?”

राहुल गाँधी, कमलनाथ, अरुण जेटनी और सर्वानंद सोनेवाल

राहुल गाँधी, कमलनाथ, अरुण जेटनी और सर्वानंद सोनेवाल

मनुष्य अपने दिमाग का सही प्रयोग करते हुए लोकप्रियता के सबसे शीर्ष पर पहुंच सकता है लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि समाज आपको मनुष्य के रूप में स्वीकार क्यों नहीं करता? हर बार आपको किसी ना किसी ढांचे में डाल दिया जाता है। आपको जाति और धर्म के आधार पर बांट दिया जाता है। हम यह क्यों नहीं समझते हैं कि हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई में आदमी का धर्मनिरपेक्ष या नास्तिक होना पहचान नहीं है।

3 दिसंबर 1949 को छोटे बच्चों को लिखे खत में पंडित जवाहरलाल नेहरु कहते हैं, “बुज़ुर्ग लोग खुद को अलग-अलग ढांचे में रखते हैं। वे लोग धर्म, जाति, वर्ण, पक्ष, राष्ट्र, प्रांत, भाषा, परंपरा एवं अमीर-गरीब इनमें दीवार खड़ी करते हैं। छोटे बच्चों को यह बात पता नहीं होती है मगर धीरे-धीरे बुज़ुर्गों द्वारा उन्हें हर बात बताई जाती है। आपको बड़ा होने में लंबा समय लगे ऐसी मैं इच्छा रखता हूं।”

जब हम राजनीति के संदर्भ में मोदी की आलोचना करते हैं तब एक बात स्पष्ट हो जाती कि आपको राहुल गाँधी का समर्थक करार दे दिया जाता है। मौजूदा दौर में आप जैसे ही राहुल गाँधी की टिप्पणी कर देते हैं तब भाजपा वालों के चहेते बन जाते हैं। एक तरह से भाजपा के भक्त बन जाते हैं।

तस्वीर प्रतीकात्मक है। फोटो साभार: Flickr

क्या एक भारतीय होने के नाते आपको सरकार पर सवाल खड़े करने का अधिकार नहीं है? क्या एक मतदाता होने के नाते आप सरकार के कार्यों का मूल्यांकन नहीं कर सकते? यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि महाराष्ट्र के एक किसान ने अपने प्याज़ के पैसे  प्रधानमंत्री कार्यालय को  मनी ऑर्डर कर दिया। उस किसान का कहना है कि मैंने जितने पैसे  प्याज़ के फसल के लिए  लगाए थे, उतने पैसे भी वसूल नहीं हुए हैं।

इस घटना के बाद ज़िला प्रशासन ने हरकत में आते हुए उस किसानों को पूछा कि आप किसी राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं? यह जानने की भी कोशिश की गई कि कहीं उसने किसी राजनीतिक दल के कहने पर तो ऐसा कदम नहीं उठाया। ज़िला प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में उस किसान की प्याज़ की  गुणवत्ता पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि वह प्याज़ अच्छे नहीं थे।

हाल ही में पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए जिसमें बीजेपी के हाथ से सभी राज्य चले गए। इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण किसानों का नाराज़ होना भी था।

पानी फाउंडेशन द्वारा संचालित वर्कशॉप। फोटो साभार: आधाकारिक वेबसाइट पानी फाउंडेशन

भारतीय राजनेता इस बात को समझना ही नहीं चाहते कि किसानों की समस्याओं का हल कर्ज़माफी नहीं है। हमें जलसंधारण की ओर भी ध्यान देना होगा। ऐसे में पानी फाउंडेशन और महाराष्ट्र सरकार दोनों मिलकर महाराष्ट्र में जो काम कर रही है, वह काबिल-ए-तारीफ है। हमें यह विचार करना चाहिए कि ऐसी चीज़ों को पूरे देश में लागू किया जा सकता है या नहीं।

हमें तकनीक के सहारे खेती करनी होगी तभी हम किसानों के जीवन में कुछ परिवर्तन ला सकते हैं। जब किसानों की बात होती है, तब स्वामीनाथन आयोग का भी ज़िक्र होना चाहिए। अब तक स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर अमल क्यों नहीं किया गया? एक सवाल के साथ ही अनेक सवाल खड़े होते हैं और शायद सरकार इन्हीं बहुत सारे सवालों से बचना चाहती है। ऐसा नहीं है कि हम इन सवालों के जवाब तलाश नहीं सकते लेकिन समाज के तौर पर हम इसके लिए कितने तैयार है?

लोग अक्सर सवालों से डरते हैं और आज कल तो ज़्यादातर पत्रकार भी उनमें शामिल हो रहे हैं। कोई कहता है कि लोकतंत्र खतरे में तो कोई कहता है भगवान उसकी रक्षा करें। इन सबके बीच विकास कहीं खो गया है। शायद गंगा किनारे बैठ गया है या फिर अब सब कुछ राम भरोसे ही है।

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