पहले मध्यप्रदेश फिर छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी किसानों की कर्ज़ माफी का ऐलान हो चूका है। ऐसा लग रहा है मानो कॉंग्रेसी सरकारों के बीच ही कर्ज़माफी का कोई कॉम्पटीशन चल रहा है। इन ऐलानों की बुनियाद पर कॉंग्रेस अध्यक्ष राज्य-राज्य घूमकर खुद को किसानों का मसीहा साबित करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं और प्रधानमंत्री पर किसान-विरोधी ठप्पा भी लगा रहे हैं।
हमें भूलना नहीं चाहिए कि 6 महीने पहले उन्होंने जो कर्नाटक के किसानों को कर्ज़ माफी का लॉलीपॉप दिया था वो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। साथ ही कर्ज़ नहीं भरे जाने के कारण हज़ारों किसानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए हैं और कइयों के खिलाफ अरेस्ट वारंट भी जारी करवा दिए गए हैं।
इसके अलावा, कॉंग्रेस सरकार आने के बाद राजस्थान और मध्यप्रदेश से ही जिस तरह से यूरिया के लिए किसानों के हंगामों और मारपीट की खबरें आ रही हैं, मैं उम्मीद करता हूं कि किसानों के मुद्दों पर जिसने वोट किया है उनके वोट बेकार ना जाए।
खास बात, फेसबुक पर जो कर्ज़माफी के ऐलानों के बाद सबसे ज़्यादा उत्तेजित दिख रहे हैं उन्हें शायद मालूम नहीं होगा कि किसान 3 तरह के कर्ज़ लेता है। पहला अल्पकालीन, दूसरा है दीर्घकालीन और तीसरा है फसल लोन। अल्पकालीन, खेतों की ज़मीन की निराई-गुड़ाई जैसे छोटे कामों के लिए लिया जाता है, जो 20-30 हज़ार रुपयों का होता है। दीर्घकालीन, कृषि उपकरण, टैक्टर-ट्रॉली, हार्वेस्टर आदि कल-पुर्जे खरीदने के लिए होता है और फसल कर्ज़, बुआई के दौरान बीज, फर्टिलाइजर और दवा आदि खरीदने के लिए होता है।
गौर करने वाली बात है कि तीनों राज्यों में कर्ज़ ना चुका पाने वाले ज़्यादातर किसान दीर्घकालीन और फसल लोन लेकर बैठे हैं लेकिन सरकारों ने सिर्फ अल्पकालीन कर्ज़ ही माफ करने का ऐलान किया है।
दूसरा, आत्महत्या करने वाले अधिकतर वे किसान हैं जो अपने आस-पास के किसी सेठ साहूकार से ऊंचे ब्याज़ पर कर्ज लेते हैं और फिर नहीं चूका पाने की सूरत में आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं, चूंकि सरकारों की कर्ज़ माफी के वादे बैंकों तक ही सीमित हैं इसलिए उनका कर्ज़ माफ नहीं हुआ है।
साथ ही जिन बैंकों से लिया गया कर्ज़ माफ हुआ है उसकी सूची भी खूब कसी हुई है। मध्यप्रदेश में यह सूची अलग और राजस्थान में भी अलग है। छत्तीसगढ़ में किसी भी किसान ने यदि छत्तीसगढ़ ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंको के अलावा कहीं से लोन लिया है तो माफ नहीं हुआ है।
अभी एक और खबर है कि मध्यप्रदेश में कर्ज़ माफी के बावजूद पंधाना विधानसभा क्षेत्र के अस्तरिया गांव के 45 वर्षीय एक आदिवासी किसान ने कथित तौर पर पेड़ से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मृत किसान के परिजनों का कहना है कि उसपर राष्ट्रीयकृत तथा सहकारी बैंकों का करीब तीन लाख रुपये का कर्ज़ था और सरकार की हाल ही में जारी कर्ज़ माफी के आदेश के बाद भी वह उस दायरे में नहीं आ सका।
मतलब साफ है, तथाकथित ‘प्रो-किसान सरकारों’ के बीच किसानों को बेवकूफ बनाने का कॉम्पटीशन भी अपने चरम पर है।