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“क्या 13 प्वाइंट रोस्टर पर कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाएगी सरकार?”

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद से देश के अंदर ही युद्धोन्माद की स्थिति बनी हुई है, जिसकी वजह से कई ज़रूरी मुद्दे नज़रअंदाज़ हो रहे हैं।

विश्वविद्यालयों में होने वाली भर्तियों में एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण वाला मसला भी उन्हीं ज़रूरी मुद्दों में से एक है। सरकार द्वारा रोस्टर प्रणाली को लेकर 22 जनवरी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी खारिज़ हो गई है।

इलाहाबाद कोर्ट के फैसले को सही बताया

सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2017 के फैसले को सही ठहराया। जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि पुराने फैसले में कोई खामी नहीं है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: सोशल मीडिया

रोस्टर प्रणाली देशभर के शिक्षण संस्थानों में शिक्षक भर्ती में प्रयुक्त होने वाला नियम है, जो पदानुक्रम को निर्धारित करता है। इसके तहत ही आरक्षण व्यवस्था को लागू किया जाता है। सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर पहली याचिका खारिज़ होने के बाद एक बार पुन: आन्दोलनों का एक दौर शुरू हुआ था।

संसद में भी उठा था मुद्दा

27 जनवरी को संसद के दोनों सदनों में यह मुद्दा उठा। सपा सांसद धर्मेन्द्र यादव ने लोकसभा में इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाया और कहा कि एससी, एसटी और ओबीसी के प्रोफेसरों की संख्या पहले से कम है, इसलिए इस नियम (प्रथम 3 पद अनारक्षित) को उल्टा कर दिया जाए जिसमें पहला पद एसटी, दूसरा एससी, तीसरा ओबीसी और चौथा पद अनारक्षित कर दिया जाए।

उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालयों में ओबीसी का एक भी प्रोफेसर नहीं है। यही हाल एससी और एसटी के प्रोफेसरों का भी है। अगर यह सरकार आरक्षित वर्गों के साथ न्याय नहीं करती है, तो यह मैसेज जाएगा कि यह सरकार अन्य पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और जनजाति विरोधी सरकार है।

सांसद धर्मेंद्र यादव के प्रश्नों का जवाब देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि सरकार आरक्षण के पक्ष में है और जो भी भर्ती होगी, वह 200 प्वॉइंट रोस्टर के माध्यम से होगी। जब तक सुप्रीम कोर्ट का कोई निर्णय नहीं आ जाता, कोई नियुक्ति नहीं होगी। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि एससी, एसटी और ओबीसी को उनका अधिकार मिले।

राज्यसभा में भी उठाया सवाल

राज्यसभा में इस मुद्दे को रामगोपाल यादव, मनोज झा और अशोक सिद्धार्थ तथा अन्य सांसदों ने उठाया। रामगोपाल यादव ने आंकड़ों के माध्यम से बताया कि वर्तमान में आरक्षित वर्गों का शिक्षण संस्थाओं में क्या हालात है और नया नियम किस प्रकार आरक्षित वर्गों के खिलाफ है। मनोज झा और धर्मेंद्र यादव ने संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण को सुनिश्चित कराने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को ज्ञापन भी सौंपा।

प्रकाश जावड़ेकर। फोटो साभार: Getty Images

चौतरफा हो रहे आंदोलन और विरोध के बाद सरकार नींद से जागी। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आरक्षित वर्गों के साथ कोई अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। प्रकाश जावड़ेकर ने कहा सरकार तैयारी के साथ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करेगी और फैसले को पलटवाने में सफल रहेगी।

इतना संवेदनशील मुद्दा होते हुए भी सरकार इस मुद्दे पर अध्यादेश या बिल लाने से बचती रही और जितना हो सके उतना इस मुद्दे को टालने की कोशिश करती रही, जबकि उन्हें पता था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं बदलने वाला है।

सरकार की विफलता

सरकार आरक्षित वर्गों के हितों को लेकर कितनी गंभीर है, इसकी पोल तब खुल गई जब सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी खारिज़ हो गई। यह भी तय हो गया कि सरकार कितनी तैयारी के साथ दोबारा सुप्रीम कोर्ट गई थी।

ऐसे समय में जब चुनाव सिर पर है, सरकार पर यह दबाव बढ़ गया है कि वह 200 प्वॉइंट रोस्टर या किसी अन्य व्यवस्था के लिए अध्यादेश लाए ताकि शिक्षण संस्थानों में आरक्षित वर्गों के प्रतिनिधित्व को सुरक्षित किया जा सके।

दलितों के लिए राह मुश्किल

13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर आरक्षित वर्गों के लोग लगातार आन्दोलन कर रहे हैं। दलित और पिछड़ों की यह पहली पीढ़ी है जो विश्वविद्यालयों में शिक्षक बनने को तैयार हैं। इन्हें रोकने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाए जा रहे हैं।

सरकार भले ही सामाजिक न्याय का दंभ भरे लेकिन जब-जब गेंद सरकार के पाले में आई, सरकार ने हर बार बचने के लिए गेंद न्यायालय की तरफ उछाल दी। अब सरकार को इससे बचना मुमकिन ही नहीं, नामुमकिन होगा।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 22 जनवरी को जब सरकार की याचिका खारिज हुई तो कई शिक्षण संस्थानों ने 13 प्वाइंट रोस्टर के तहत धड़ाधड़ शिक्षक भर्ती के विज्ञापन निकालने शुरू कर दिए। ऐसा लग रहा था कि वह इसी दिन का इंतज़ार कर रहे थे।

विश्वविद्यालयों द्वारा इतनी तत्परता से विज्ञापन निकालना उनकी मंशा पर सवाल खड़ा करता है। इन विज्ञापनों में आरक्षित वर्गों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया था। हालांकि सरकार के हस्तक्षेप के बाद उनको यह भर्ती रोकनी पड़ी लेकिन जैसे ही सरकार द्वारा दायर दूसरी एसएलपी सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 26 फरवरी को खारिज हुई।

कई विश्वविद्यालयों ने पुन: शिक्षक भर्ती के विज्ञापन जारी कर दिए और इसमें भी आरक्षित वर्गों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला। जैसे लगता सभी शिक्षण संस्थानं इसी मौके की तलाश में थे और इस अवसर को तोड़ता नहीं चाहते है।

विश्वविद्यालयों में ब्राह्मणवाद

यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन आरक्षित वर्गों की पहली पीढ़ी विश्वविद्यालय में शिक्षक बनने आई है, उसे शिक्षक बनने से रोका जा रहा था। यह चीज़ें विश्वविद्यालयों में व्याप्त ब्राह्मणवाद को उजागर करता है।

इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले दिनों शिक्षण संस्थानों में आरक्षित वर्गों के शिक्षकों को लेकर एक बड़ा खुलासा किया और बताया कि देश में अन्य पिछड़ा वर्गों का कोई प्रोफेसर नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार: Getty Images

95 % से ज़्यादा पदों पर सामान्य वर्गों का कब्ज़ा है। यह दुर्दशा बताती है कि किस प्रकार आरक्षण व्यवस्था को विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में लागू होने से रोका गया। नीति निर्माता आरक्षण और आरक्षित वर्गों को गणितीय बाज़ीगरी में उलझा देते हैं। 13 प्वाइंट रोस्टर के मामले में भी यही नज़र आ रहा है।

अगर सरकार सामाजिक न्याय को लेकर गंभीर है और विश्वविद्यालयों को समावेशी बनाना चाहती है, तो उसे 13 प्वाइंट रोस्टर पर अध्यादेश लाकर आरक्षित वर्गों को संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण को सुनिश्चित करना चाहिए, नहीं तो सामाजिक न्याय का ढोंग बंद कर देना चाहिए।

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