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मौके की तलाश कर भीड़, लड़कियों को कब तक छूने का बहाना बनाएगी?

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

चिलचिलाती दोपहरी की धूप थी और सड़क पर लंबा ट्रैफिक। लोग रेंग रहे थे और गाड़ियों के हॉर्न से चिड़चिड़ाहट बहुत बढ़ गई थी। मैं साइड लेकर पैदल आगे बढ़ रही थी।

मैं हाफ बांह की कुर्ती और जींस में थी। इतने में एक अधेड़ उम्र का आदमी मेरे करीब से निकला और निकलते वक्त उसके हाथों ने अश्लील तरीके से मेरे हाथों को स्पर्श करते हुए मेरे पीठ तक पहुंच गया।

मैं कुछ समझती और पीछे मुड़कर उसे लताड़ लगाती इतने में वह भी उसी भीड़ का हिस्सा बन गया, जो भीड़ मौके की तलाश कर लड़कियों को छूना पसंद करती है।

मुझे ऐसा लगा मेरा बलात्कार हुआ है

मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरा बलात्कार कर दिया हो। वह आदमी भीड़ के बहाने मुझे छूकर चला गया। आप सोच सकते हैं कि उन लड़कियों पर क्या गुज़रती होगी जिनके साथ बलात्कार होता है।

मुझे समझ ही नहीं आया कि आखिर यह मेरे साथ क्यों हुआ? कुछ लोगों का जवाब होगा मैं जींस पहनी थी, इस वजह से उस आदमी के अंदर की यौन कुंठा जाग गई होगी। ऐसे लोगों के बारे में यही कहना चाहूंगी कि उन्हें वक्त रहते अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है।

क्या वह अधेड़ उम्र का आदमी अपने अंदर हैवानियत समेटकर आया था? क्या मेरे हाथों और पीठ को छूने से उसकी हैवानियत खत्म हो गई होगी? या उसने किसी और लड़की के साथ इस तरह की हरकत की होगी? इस तरह के सवालों की काफी लंबी फेहरिस्त हैं।

भीड़ इतनी उत्तेजित क्यों है?

आज भी ऐसे लोग भीड़ को अपना चेहरा बनाकर लड़कियों के साथ अश्लील हरकतें और इशारे करते हैं। मुझे समझ नहीं आता कि इतनी उत्तेजना क्यों है?

फेसबुक के एक पोस्ट में कमेंट सेक्शन पर मैंने पढ़ा था, “लड़कियों के शरीर की संरचना ही ऐसी होती है कि लड़के बर्दाश्त नहीं कर पाते। लड़कियों की ब्रा की स्ट्रीप और उनके स्तनों की संरचना उन्हें बहुत आकर्षित करती है, जिससे वे लड़कियों की तरफ उत्तेजित और कामुक तरीके से आकर्षित होते हैं।”

इस कमेंट को पढ़ने के बाद मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं इसे क्या बोलूं?  मतलब इतनी कुंठित मानसिकता!

लड़कियों के शरीर की संरचना अगर किसी को इस तरह से आकर्षित करती है, तो उस पुरूष की मानसिक स्थिति बेशक ठीक नहीं है। लड़कियों के शरीर की संरचना देखकर अगर वह कामुकता से भर रहा है या उसके अंदर अश्लील विचार आ रहे हैं, तो उन्हें अपनी सोच पर शर्म आनी चाहिए।

नज़रों से भी होते हैं बलात्कार

हर बार समाज का हवाला देना ठीक नहीं है क्योंकि लोगों से ही समाज बनता है। लोग जब तक अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे भीड़ अपने तरीके से लड़कियों का बलात्कार करती रहेगी। किसी की नज़र को आप रोक नहीं सकते मगर नज़रों से भी तो बलात्कार हो जाते हैं।

भीड़ का यह चेहरा मुझे कभी समझ नहीं आता जो कभी लड़कियों को बचाने के नाम पर उग्र हो जाती है, तो वही लड़कियों के साथ अश्लील हरकतें भी करती हैं।

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