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क्या देश को स्वच्छ भारत मिशन पार्ट-2 की ज़रूरत है?

मोदी

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पांच साल पहले 2014 में बीजेपी ने पहली बार प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाई थी, जिसके अगुवा तब भी नरेंद्र मोदी ही थे। वह नरेंद्र मोदी, जो थे तो गुजरात के लेकिन काशी के आराध्य देव बाबा विश्वनाथ और काशी के कोतवाल भैरो बाबा के साथ पूरे हिंदुस्तान की जीवनदायिनी मानी जाने वाली माँ गंगा से आशीर्वाद लेकर काशी से चुनाव लड़े और प्रचंड बहुमत से बीजेपी की सरकार बनाई।

इस बार फिर से वह काशी से ही चुनावी दंगल में उतरे और पिछली बार से कहीं अधिक मज़बूती से केंद्र में सरकार बना रहे हैं और दूसरी बार पीएम बन रहे हैं। इन पांच सालों में पीएम मोदी ने एक सपना देखा था, वह था काशी को क्योटो बनाना और काशी में स्वच्छता की नई इबारत लिखना।

क्या स्वच्छ भारत मिशन कामयाब रहा?

इन सबके बीच क्या पीएम मोदी इसमें सफल हुए? यकीनन हुए, मगर आंशिक तौर पर। वर्ना उन्हें मंच से काशीवासियों पर पान की पीक को लेकर ताना न मारना पड़ता। दरअसल, पीएम मोदी ने मंच से काशीवासियों को सिर्फ ताना ही नहीं मारा, बल्कि अपनी उस निराशा को भी व्यक्त किया, जिसमें पिछले पांच साल तक वह बुरी तरह फेल दिखे। हज़ारों-लाखों, करोड़ खर्च करके भी।

पीएम मोदी। फोटो साभार: Getty Images

आपको याद होगा कि पीएम मोदी ने काशी के घाटों से ही स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने काशी की धरती पर फावड़ा भी चलाया था और पूरे देश को स्वच्छता की सौगंध भी दी थी। उसके करीब साढ़े चार साल बाद उन्होंने काशी के पड़ोस यानि प्रयागराज में स्वच्छता कर्मी के पांव धोकर इस बात का प्रायश्चित भी किया कि ना तो काशी साफ-सुथरी हो पाई और ना ही पूरा देश।

खैर, पिछली रिपोर्ट में मैंने बताया भी था कि किस तरह से प्रयागराज शहर कुंभ के आयोजन के बाद और भी मैला हो गया है क्योंकि जो कूड़ा प्रयागराज में इकट्ठा हुआ, उसका सही तरीके से निबंधन यानि निपटारा ही नहीं किया जा सका।

देश को है स्वच्छ भारत मिशन-2 की ज़रूरत

ऐसे में सवाल यह उठते हैं कि क्या देश को स्वच्छ भारत अभियान-2 की ज़रूरत नहीं है? स्वच्छ भारत मिशन-2 यानि स्वच्छता अभियान की ओर अगला कदम। देश में पर्याप्त संख्या में शौचालय बनाए गए हैं, इससे किसी को इनकार नहीं है लेकिन क्या उनका इस्तेमाल भी हो रहा है?

देश में सार्वजनिक शौचालयों की संख्या भी बढ़ी है लेकिन क्या वे सही तरीके से काम कर रहे हैं? महानगरों की बात छोड़ दी जाए तो क्या स्वच्छता अभियान के तहत बनाए गए सभी शौचालय स्वच्छ हैं भी? क्या सभी जगहों पर सूखे और कीटाणुरहित शौचालय हैं?

फोटो साभार: जितेन्द्र दास

क्या महिला शौचालयों का निर्माण पर्याप्त संख्या में हुआ है? क्या शौचालयों से निकलने वाले ठोस अपशिष्ट का प्रबंधन किया गया है? क्या सभी शौचालयों की देखरेख की व्यवस्था है? क्या देश के बड़े नगरों के कूड़ा साइटों यानि कूड़े के पहाडो़ं पर से बोझ कम हुआ है?

क्या सभी शहरों में दो तरीके से कूड़ेदान सार्वजनिक स्थानों पर लग गए हैं और जनता इसके बारे में जागरुक भी है? क्या सभी जगहों पर कूड़े को दो श्रेणियों में बांटकर उसका स्थाई निपटारा हो पा रहा है?

यह वैसे सवाल सवाल हैं, जिनका जवाब यकीनन ना में होगा। अगर हां में होगा भी तो आंशिक तौर पर क्योंकि हम दिल्ली और नोएडा, मुंबई और कोलकाता, चेन्नई और वाइजैग, बेंगलुरु और तिरुवनंतपुरम जैसे महानगरों की ही बात करें तो इन महानगरों में कूड़े के पहाड़ दिनों दिन आसमान छूते जा रहे हैं। यहां तक कि काशी में भी तो यही हाल है।

काशी की हालत चिंताजनक

सीधी सी बात करें तो काशी के कथित विकास कार्यों के दौरान लाखों टन कूड़ा निकला लेकिन वह कूड़ा गया कहां? शहर के किनारे किसी दूर सी जगह पर इकट्ठा ही तो हुआ है? जहां से वे तेज़ हवाओं, आंधी के साथ फिर से काशी वासियों के बीच आता जाएगा और स्वांस से जुड़ी बीमारियों को फैलाता जाएगा।

हम गाँधी जी की 150वां जयन्ती की दहलीज़ पर खड़े हैं जहां करीब-करीब पूरे देश को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जाने वाला है। ऐसे में खुद आम लोग तय करें कि क्या सरकार की ओर से स्वच्छ भारत मिशन के लिए तय किए गए लक्ष्यों को पा लिया गया है?

अगर नहीं, तो क्यों ना भारत सरकार एक बार फिर से इस अभियान में पूरा ज़ोर लगाकर जुटें और देश को स्वच्छता के और निकट लेकर जाएं लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार दूरदर्शिता को ध्यान में रखकर भविष्य की योजनाओं पर भी काम करे। ताकि वर्तमान को सुंदर और स्वच्छ रख भविष्य को भी सुरक्षित बनाया जा सके।

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