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“राहुल जी, कंफर्ट ज़ोन से बाहर आइए तभी राजनीति में कुछ कर पाएंगे”

राहुल गाँधी

राहुल गाँधी

अभी हाल में काँग्रेस हाईकमान ने पार्टी की राष्ट्र स्तर पर करारी हार के बारे में विचार-विमर्श हेतु दिल्ली में मीटिंग की, जिसमें अध्यक्ष राहुल गाँधी ने हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र देने की पेशकश भी की। खैर, इन मामलों में जैसा होता आया है, वैसा ही हुआ।

इन सबके बीच चाटुकार सदस्यों ने ऐसा राग अलापा कि यदि राहुल ने त्यागपत्र दिया तो देश में अनर्थ हो जाएगा। पार्टी की नैया कैसे चल पाएगी? लाभ-हानि के एक प्रख्यात जानकार पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने तो यहां तक कह दिया कि यदि राहुल जी ने इस्तीफा दिया तो लोग आत्महत्या कर लेंगे

हमें यह समझ में नहीं आया कि राहुल के इस्तीफे से लोगों की आत्महत्या का क्या सम्बन्ध है? जब सोनिया जी ने त्याग पत्र देकर राहुल को कांटो भरा ताज़ सौंपा तो कितने लोगों ने आत्महत्या की? ये बिना किसी कारण के आत्महत्या करने वाले कब तक रुकेंगे? कभी न कभी तो राहुल को हटना ही पड़ेगा।

नेताओं के पुत्र मोह से हारी काँग्रेस

खैर, इस चाटुकार पूर्व मंत्री को राहुल ने कुछ ही देर में आईना भी दिखा दिया और बता दिया कि उन जैसे लोगों की वजह से ही काँग्रेस की हार हुई है। कुछ हद तक यह भी एक हार का सहायक कारक माना जा सकता है। राहुल ने स्पष्ट कह दिया कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ तथा पूर्व वित्त मंत्री चिदम्बरम ने पुत्र मोह में काँग्रेस को हरवा दिया। तो क्या राहुल की इस टिप्पणी के बाद यह मान लिया जाए कि अब चिदम्बरम जैसे लोगों के दिन काँग्रेस से हवा हो गए हैं? शायद नहीं।

राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी। फोटो साभार: Getty Images

राहुल ने कहा कि उपरोक्त नेताओं ने अपने पुत्रों को स्थापित करने हेतु पहले तो राहुल पर टिकट के लिए दवाब बनाया, उसके बाद इन नेताओं ने अपना पूरा समय अपने प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर प्रचार में लगाने के बजाय अपने पुत्रों की सीट पर ही ध्यान केन्द्रित किया। जिसका खामियाज़ा काँग्रेस को अन्य सीटों पर भुगतना पड़ा। राहुल के इस तर्क में दम नहीं लगता है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी पत्नी को टिकट दिलाया और इस सीट को जीतने के साथ साथ पंजाब की तेरह सीट में से आठ पर जीत हासिल की।

राहुल को मंथन करने की ज़रूरत

अगर राहुल को लगता था कि यदि किसी बड़े नेता के फैमिली मेम्बर को टिकट देने से पार्टी को नुकसान ज़्यादा होता है तो क्यों राहुल ने हरियाणा में पिता-पुत्र (हूड्डा ) दोनों को एक साथ टिकट देकर हारने को बाध्य किया? क्या राहुल खुद चाहते थे कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हूड्डा को न चाहते हुए भी सोनीपत से चुनाव लड़ने को विवश किया जाए ताकि वो हार जाएं और मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो जाएं?

अगर किसी बड़े नेता के खुद या उसके परिवार के सदस्य के चुनाव लड़ने से इलेक्शन में जीत संदिग्ध होती है तो क्यों राहुल ने खुद दो जगह से तथा अपनी माँ सोनिया को एक अन्य जगह से चुनाव लड़वाया? क्यों नहीं इन दोनों ने खुद चुनाव लड़ने की बजाय सारे देश में पूरा ध्यान दिया। परन्तु कहावत है न कि आप गुरु जी बैंगन खावै, औरन को निर्देश।

राहुल गाँधी। फोटो साभार: Getty Images

इतना अवश्य हुआ कि राहुल के दो जगह से चुनाव लड़ने से पब्लिक में यह संकेत गया कि उत्तर प्रदेश में काँग्रेस की कमज़ोर स्थिति को भांपकर राहुल ने अपनी सेफ जीत के लिए अमेठी के साथ-साथ वायनाड से भी चुनाव लड़ा। इस संकेत ने उत्तर प्रदेश में जर्जर हो चुकी काँग्रेस को धराशायी करने का काम भी किया।

राहुल गाँधी को “बुरा जो खोजन मैं चला, मुझसे बुरा ना कोई” को ध्यान में रखना चाहिए। जब कोई टीम लीडर असफलता के लिए टीम के सदस्यों पर दोषारोपण करने लगता है तो समझो उसमें नेतृत्व देने के गुणों का अभाव है और वो नेता अपनी कमी को छिपाने के लिए टीम को दोषी ठहराता है।

अगर प्रान्त स्तर पर अशोक गहलोत या कमलनाथ की वजह से हार हुई है तो राहुल गाँधी का यह तर्क वास्तविकता से मुंह मोड़कर केवल अपना मन बहलाने वाला है।यह करारी हार राहुल गाँधी के नेतृत्व में काँग्रेस की हार है। राहुल को इसे स्वीकार कर लेना चाहिए और जितना जल्दी स्वीकार करेंगे, काँग्रेस के दिन उतनी जल्दी ही बहुरना शुरू कर देंगें।

क्या राहुल का नेतृत्व कमज़ोर है?

यहां यह उल्लेखित करना भी तर्कसम्मत रहेगा कि पंजाब में काँग्रेस की वर्तमान जीत में राहुल का कोई योगदान नहीं है, बल्कि इसका पूरा श्रेय कैप्टन अमरिंदर की स्ट्रॉन्ग लीडरशिप को जाता है।

नवजोत की पत्नी के आरोप कि चंडीगढ़ से उनका लोकसभा टिकट मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कटवाया, जिसे खुद नवजोत सिद्धू ने भी सपोर्ट किया; क्या पुनः यह सिद्ध नहीं करता है कि राहुल फैसले लेने में कमज़ोर हैं और किसी के भी दवाब में आकर झुक जाते हैं।

क्यों नहीं यहां भी राहुल सही स्थिति का उद्घोष करते? क्यों नहीं स्वीकारते/अस्वीकारते कि हां, उन्होंने अमरिंदर के दवाब में सिद्धू की पत्नी का टिकट काटा/नहीं काटा है? सिद्धू प्रदेश के मुख्यमंत्री के नीचे मंत्री होते हुए भी क्यों कहते हैं कि उनका ‘कैप्टन’ अमरिंदर नहीं केवल राहुल गाँधी हैं?

क्या ऐसे विद्रोही लोगों को शह देना पार्टी में अनुशासनहीनता पैदा कर कमज़ोर बनाना नहीं है? या आप इतने दुर्बल हो चुके हैं कि ऐसे मामलों में फैसले करना आपके बस की बात नहीं रह गयी है? क्यों इन बातों पर राहुल मौन धारण कर लेते हैं?

राहुल की मौन साधना से तो अमरिंदर के खिलाफ बयानबाज़ी करने वाले नवजोत सिद्धू के विरुद्ध कार्रवाई में दी जा रही ढील का चुनाव में भी नुकसान हुआ है और आगे भी होता ही जा रहा है। सिद्धू के विरुद्ध कोई स्टेप क्यों नहीं उठाया जा रहा है?  इस बात से दो निष्कर्ष निकलते हैं या तो खुद राहुल पंजाब में अमरिंदर पर सिद्धू के माध्यम से चेक रखना चाहते हैं या अपने को इतना स्ट्रॉन्ग लीडर नहीं मानते हैं कि सिद्धू के खिलाफ कार्रवाई करने का हौसला कर पाएं।

हरियाणा में भी राहुल की ढुलमुल नीति

हरियाणा में भी राहुल की ढुलमुल नीति के कारण काँग्रेस छह गुटों में बंटी हुई है। काँग्रेस के ज़िला तथा ब्लॉक स्तर पर सक्रिय कार्यकर्ता ना होने के कारण मोदी के प्रचार का कोई सटीक विरोध नहीं हो पाया।

क्यों राहुल ने एक निष्क्रिय प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को पार्टी को रसातल में ले जाने हेतु ज़िम्मेदारी दी हुई है? दिल्ली में जिन नेताओं की मानकर राहुल ने केजरीवाल से सीट समझौता नहीं किया अब क्यों नहीं राहुल उनसे पूछते कि वे किस आधार पर इसका विरोध कर रहे थे?

राहुल जी ने क्यों नहीं उत्तर प्रदेश में बसपा–अखिलेश गठबंधन की बात मानकर उनके द्वारा दी जा रही सीटों पर सब्र किया? क्या उनसे विमुख हो राहुल खुद अपनी अमेठी की पारंपरिक सीट से हाथ नहीं  धो बैठे?

राहुल को चाहिए कि अपनी किचेन कैबिनेट से बाहर निकलकर रूट लेवल पर कार्यकर्ताओं से वार्तालाप कर काँग्रेस को नई पहचान दें। राहुल अपने नाम के बजाय पुराने व काँग्रेस के धरातल से जुड़े नेताओं की छांव में स्थानीय नेताओं की नई पौध तैयार करें।

काँग्रेस के पास खोखली जड़ों वाले नेता ही ज़्यादा हैं, खुद राहुल की जड़ें भी अभी गमले के भीतर से बाहर नहीं निकल पाई हैं। गमले में लगे रहने वाले पौधे पेड़ नहीं बना करते। वे बौन्साई बनकर पेड़ का भ्रामक स्वरुप मात्र होते हैं, पेड़ बनने के लिए गमले से बाहर गर्मी-सर्दी, तूफ़ान-अंधड़ को झेलते हुए मेंड़ पर रोपित होना ही होगा। राहुल गाँधा को कंफर्ट ज़ोन से बाहर आना होगा तभी राजनीति कुछ बेहतर कर पाएंगे।

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