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मेरी सांसें दूसरों की प्रदूषित आदतों का शिकार क्यों हो?

क्यों मेरी सांसें दूसरों की आदतों की मोहताज़ हैं? ऐसे ही गुस्से भरे प्रश्न मेरे ख्याल को हमेशा कोंचते रहते हैं, क्या सचमुच मेरा जीवन मेरा नहीं है? हर बार जब सामने रहने वाले शर्मा अंकल अपना कूड़ा बाहर जलाते हैं, तो क्यों मेरी सांसें उखड़ने लगती हैं? ऐसे ही ना जाने कितने उदहारण हैं मेरे पास, जहां कोई और हवा को दूषित करता है पर भुगतना हम सबको पड़ता है? आखिर कब तक? मैं क्यों तुम्हारी प्रदूषित जीवन की वजह से अपनी ज़िंदगी कम करूं?

हवा हम सबकी जागीर है। हम सबको उससे फर्क पड़ता है, उसके बाद भी हमने कोई कसर नहीं छोड़ी है कि हवा को खुद भी सांस लेना मुश्किल हो जाए। आज हमारी धरती इतनी दूषित हो गई है कि अब शायद हमारे पास वक्त ही नहीं है कि उसको बचा पाएं पर फिर भी हमको कोशिश करनी पड़ेगी। अगर हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी खुली और स्वच्छ हवा में सांस ले, तो हमें चीज़ें बदलनी होंगी।

फोटो सोर्स- Getty

मैंने अपने स्तर पर काफी परिवर्तन लाने की कोशिश की है, जिससे कि मैं अपना किरदार इस जंग में निष्ठा से निभा पाऊं। इसके लिए मैंने पौधे लगाए, पटाखे जलाने छोड़ दिए और सामूहिक वाहनों की सवारी को प्राथमिकता दी पर क्या आप अपना पूर्ण योगदान दे रहे हैं? अगर नहीं तो हम यह ज़िन्दगी की जंग ज़रूर हार जाएंगे। मुझे आपका साथ चाहिए। आपको ज़्यादा कुछ नहीं करना, बस मेरी कुछ बातों को समझना है और अच्छी लगे तो अपने जीवन में उसका अभ्यास करना है।

यह कुछ छोटे से सुझाव हैं मेरी तरफ से, जिससे हम अपने आस-पास की हवा को साफ रखकर उसका भरपूर ध्यान रख सकते हैं, क्योंकि वह दिन दूर नहीं जब पानी के साथ हवा के लिए भी लड़ाई लड़नी होगी। इसी विषय में मैंने एक वीडियो देखी थी, जहां कुछ कंपनियों ने साफ हवा को पैकेट में करके बेचने का धंधा बना लिया। क्या यह इंसानियत और प्रकृति के खिलाफ नहीं है? वह चीज़ जिसपर हम सबका हक है, उसको एक व्यापार बनाया जा रहा है। इससे निर्लज्जता की बात और क्या हो सकती है?

मुझे आशा है कि जो कोई भी मेरी बातों को समझेगा, उसको अंदाज़ा हो जाएगा कि समस्या कितनी गंभीर है। तो आइए हवा प्रदूषण को रोकने में हम एक बेहतरीन कोशिश करें क्योंकि हम लड़ेंगे, आखिरी सांस तक।

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