भूखे लोग चंद्रमा में रोटी देखते हैं और बाकी महबूब का मुखड़ा।
देश में अगस्त माह में 2 बड़ी घटनाएं हुई।
- कश्मीर से सम्बंधित संवैधानिक अनुच्छेद 370 में बदलाव एवं
- मिशन चंद्रयान-2
सरकार ने एक में जल्दबाज़ी दिखाई और दूसरे में बहुत देरी।
अनुच्छेद 370 पर संवाद ज़रूरी था
मेरे अनुसार अनुच्छेद 370 के सम्बन्ध में जो किया गया वो कश्मीर समस्या का समाधान नहीं है मगर लद्दाख क्षेत्र का है। यह ज़रूर हो सकता है कि आगामी किए जाने वाले प्रयासों में इसे एक कड़ी के रूप में देखा जा सकता है।
फिर भी, साथ में स्थानीय जनता से तथा संसद में आपसी संवाद आवश्यक था। इतनी जल्दबाज़ी और सम्पूर्ण जनता की कैद, निर्णय को थोपने जैसा बनाते हैं।
रोचक यह है कि जिस आवाम के लिए हमेशा कहा गया कि वे राष्ट्र विरोधी हैं, आज उस आवाम के लिए सरकार दावा करते हुए कह रही है कि वे भी उनके(सरकार) निर्णय के साथ है।
जिस घाटी को अशांत होने का दर्ज़ा दिया गया था, उसे आज इस फैसले के बाद सबसे शांत ठहराया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सब ठीक है, सब शांत है। यह सब प्रणाली सरकार की मंशा पर संशय पैदा करती है, हालांकि मैं भी चाहता हूं कि मेरा संशय गलत साबित हो।
चंद्रयान-2 पर इतना गर्व क्यों?
अब बात चंद्रयान की। देश का मीडिया हमें बता रहा है कि हमने चंद्रयान-2 भेजकर कोई महान काम कर दिया है। अब सिर्फ विश्व में ही नहीं, बल्कि अन्तरिक्ष में भी हमारे देश का वर्चस्व बढ़ गया है।
मुझे ऐसे मिशन में कोई गर्व की बात नज़र नहीं आती है। वास्तव में कल्पित राष्ट्रवाद की ही भांति यह भी एक प्रकार का कोरा अन्तरिक्षवाद है। जिसकी शुरुआत बीसवीं सदी के मध्य में अमेरिका और रूस (उस वक़्त सोवियत यूनियन) ने की थी।
चंद्रयान -2 भेज कर ना तो वर्चस्व के लिहाज़ से और ना ही तकनीकी लिहाज़ से हमने कोई गर्व का काम किया है। आज से तकरीबन 60 साल पहले सन 1959 में रूस के एक यान ने चंद्रमा की सतह को पहली बार छुआ था।
ठीक 10 साल बाद 1969 में अमेरिका ने मानव इतिहास में पहली बार इंसान को चंद्रमा की सतह पर उतरा गया। हालांकि उस समय अमेरिकन अन्तरिक्ष संस्थान नासा के इंसान को चंद्रमा पर उतारने के दावों की रूस ने काफी आलोचना भी की थी एवं इन्हें झूठा ठहराया था। अमेरिका ने सन 1969 से 1972 के दौरान 12 लोगों को चंद्रमा पर भेजा।
अमेरिका और रूस की यह आपसी होड़ सिर्फ और सिर्फ दूसरे विश्वयुद्ध के उपरांत दुनिया को अपना वर्चस्व दिखाने भर के लिए थी। उस समय दोनों ही देश अपनी आन्तरिक समस्याओं और आर्थिक तंगियों से गुज़र रहे थे मगर सिर्फ इस अन्तरिक्षवाद के चक्कर में ये सब किया गया। बाद के वर्षों में स्वयं जनता ने ही इन सरकारों की इस फिज़ूलखर्ची रोकने के लिए आन्दोलन किए।
क्या कहता है वैश्विक भुखमरी सूचकांक?
ग्लोबल हंगर इंडेक्स अर्थात वैश्विक भुखमरी सूचकांक में हम कुल 119 देशों की सूची में 103वें स्थान पर है। इस तरह हम अन्तरिक्ष मिशन के सहारे जनता को अमेरिका और रूस के समकक्ष आने का सपना दिखा रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि भुखमरी में हम तथाकथित अति अविकसित माने जाने वाले देशों जैसे कि रवांडा और अंगोला आदि के समकक्ष आ रहे हैं।
सिर्फ मध्यप्रदेश में ही प्रतिदिन 92 बच्चे भुखमरी से दम तोड़ रहे हैं। बाकी सारे देश के आंकड़ों का हिसाब आप गर्व करते हुए स्वयं लगा लीजिए। हर साल मौसमी बीमारियों से मरने वाले बच्चों की संख्या इस आकड़ें को और अधिक भयावह बनाती है।
चंद्रमा और मंगल पर हम यान भेज सकते हैं, मगर देश के बड़े हिस्से में अभी तक आवश्यक स्वास्थ्य और उचित शिक्षा सेवाएं नहीं भेज पाए हैं। सेना का पायलट पाकिस्तान से बच कर वापस आ सकता है, मगर हम बच्चों को मौसमी बुखार से और लोगों को बाढ़ से नहीं बचा पाते।
बात यह है कि चंद्रयान भेजकर हमने तकनीकी लिहाज़ से कोई झंडे नहीं गाड़े हैं। हमारे यहां तो आज भी इंसानी मल-मूत्र की सफाई इंसान ही कर रहे हैं। साथ ही यदि वर्चस्व के लिहाज़ से यह इतना ही महत्वपूर्ण होता, तो अभी तक अमेरिका वहां ट्रम्प टावर बना चुका होता।
गर्व करने वाले यह भी याद रखें कि चंद्रयान सरकार के लिए इतना भी महत्वपूर्ण नहीं था, जहां एक तरफ स्थानीय विरोध के बावजूद ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ तय समय पर तैयार हुई, वहीं चंद्रयान-2 का समय काम पूरा नहीं होने के कारण 4 बार स्थगित किया गया था।
मुझे आशा है कि उत्तर प्रदेश में बनने वाली राम की सबसे अधिक ऊंचाई वाली प्रतिमा भी तय समय पर पूरी होगी और हम उसपर भी गर्व करेंगे और करते रहेंगे।