न्यूज़ीलैंड से आई यह तस्वीर सुकून देने वाली है, जिसमें न्यूजीलैंड के स्पीकर संसद में एक छोटे बच्चे को बोतल से दूध पिला रहे हैं। स्पीकर ट्रेवर मैलार्ड संसद की कार्रवाई के दौरान सांसद तमाटी कॉफी को दूध पिलाते नज़र आ रहे हैं। दरअसल, सांसद तमाटी एक महीने की पैटरनिटी लीव से वापस आए थे। संसद की कार्रवाई के दौरान उनका बेटा रोने लगा, जिसके बाद स्पीकर ट्रेवर मैलार्ड ने उसे बोतल से दूध पिलाया।
क्या भारतीय समाज इस तरह की तस्वीर के लिए तैयार है?
बच्चों का पालन-पोषण करना माता-पिता दोनों का बराबर का दायित्व है, यह बहुत ही आसान और छोटी सी बात है, जिसे भारतीय समाज आज भी समझने को तैयार नहीं है।
एक महीने की पैटरनिटी लीव के बाद काम पर लौटे एक सुलझे, ज़िम्मेदार और प्रेम में डूबे पिता अपने बच्चे को अगर अपने साथ काम पर ले जाए, तो हमारा भारतीय समाज इसे मॉं की लापरवाही का परिणाम बता देता है। किसी वजह से माँ की मृत्यु होने पर भी घर-परिवार की बाकी औरतें ही बच्चे को संभालती दिखेंगी, पिता से उस ज़िम्मेदारी की उम्मीद ही नहीं की जाती है।
बचपन में मेरे पापा मुझे ले जाते थे ऑफिस
दुर्भाग्य है इस समाज का कि बच्चे का बचपन साझा करने से पिता की मर्दानगी और माँ की ममता पर सवाल उठ खड़े होते हैं। मैं जब छोटी थी, तब मेरे माँ-पापा दोनों अलग-अलग जगह नौकरी करते थे, मम्मी स्कूल टीचर थी और चार साल से छोटे बच्चे को स्कूल साथ ले जाना मना था। लिहाज़ा कुछ समय मुझे हाउस हेल्पर की देखभाल में रखा गया। मम्मी बीच में आकर फीड करवाती थी।
जब मैं चलने-फिरने लगी, तो नानी के पास गाँव में कुछ महीने मुझे छोड़ दिया गया पर पापा का मन नहीं माना और पापा मुझे अपने साथ ले आए। पापा के ऑफिस में बच्चे को ले जाने की मनाही नहीं थी, इसलिए पापा मुझे अपने साथ ऑफिस ले जाने लगे। तब मैं करीबन ढाई-तीन साल की थी।
पापा रोज़ शाम मुझे अनानास खिलाया करते थे। नहलाना-खिलाना सब अकेले किया करते थे और फिर हम ऑफिस साथ जाया करते थे। फिर भी मैं हर शाम पापा से एक ही सवाल किया करती थी, पापा, मम्मी कब आएगी? पापा उदास होकर जवाब देते थे, जल्दी आएगी। उस समय मुझसे ज़्यादा पापा को माँ की कमी महसूस होती होगी।
वह समय शायद उन दोनों के जीवन का सबसे ज़्यादा मुश्किल रहा होगा लेकिन उस समय की यादें मेरे ज़हन में सबसे ज़्यादा रही हैं। वह समय मेरे जीवन का सबसे कीमती समय था।
पिता सिर्फ बाहर के काम के लिए याद ना किए जाएं
यकीनन हर बच्चे का हक होता है कि उसके पिता के साथ भी उसके बचपन की यादें जुड़ें। पिता सिर्फ सब्ज़ी का थैला लाते, सांझ ढले घर आकर बुझी हुई मुस्कुराहट लिए प्यार से दो पप्पी लेकर खाना खाकर सोते, या स्कूल का फॉर्म भरते, कहीं ले जाने के लिए गाड़ी का ड्राइवर बनते, या गणित के सवाल समझाते हुए ही याद में नहीं रहने चाहिए।
पिता को पालक-पोषक के रूप में भी याद बनना चाहिए। पिता को पेट भरते, खाना परोसते, निहारते हुए, गंदे हाथ-पैरों को धोते, कपड़े-डायपर बदलते हुए भी याद बनना चाहिए। बचपन के हर हिस्से में पिता का होना ज़रूरी है और यह पिता और बच्चे दोनों का हक है, इसे कोई समाज नहीं छीन सकता है।