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“जिस लखनऊ की हवा मुझे सूकुन पहुंचाती थी, आज वो भी ज़हर बन चुकी है”

लखनऊ मेरा शहर है। मैं यहीं पैदा हुआ और यहीं बड़ा हुआ हूं। मेरे पूर्वज भी ना जाने कब से लखनऊ में रहते आए हैं। जब रोज़ सुबह उठकर घर की छत पर जाकर लम्बी सांस लेता था, तो दिमाग एकदम खुल जाता था और ताज़गी का एहसास होता था। लखनऊवासी होने पर मुझे बहुत घमंड था। मुझे लगता था कि लखनऊ से बेहतर हिंदुस्तान में कोई शहर नहीं है। यहां का खाना, यहां की खूबसूरती, यहां की तहज़ीब में सुकून का अनुभव करना एक अलग एहसास था मेरे लिए।

एक दिन खबर आई कि दिल्ली में प्रदूषण बहुत बढ़ गया है और शहर पर धुंध छा गई है। खबर देखकर मैंने सोचा कि दिल्ली में लोग कैसे रह रहे होंगे लेकिन मुझे क्या पता था कि मेरे इस सवाल का मुझे प्रैक्टिकल जवाब जल्द ही मिलने वाला था।

बात 2017 की दिवाली की थी, जब पूरे देश में रौशनी का यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा था लेकिन उस दिन से बाद से लखनऊ का चेहरा बदल गया। शहर के ऊपर काली धुंध छा गई और लोगों का सांस लेना दुश्वार हो गया। कम-से-कम एक हफ्ता तक शहरवासियों को काली धुंध की सतह के नीचे रहना पड़ा था।

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- Getty

उस दिन के बाद से मुझे एहसास हुआ कि हालात कितने बदल गए हैं और अगर सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो हमें जल्द ही भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

दुनिया के टॉप 10 प्रदूषित शहरों में 7 भारत के शहर

लेकिन अब बात सिर्फ लखनऊ या दिल्ली की नहीं बल्कि समूच भारत की है। तकरीबन पूरा भारत इस समय वायु प्रदुषण से जूझ रहा है। विश्व के टॉप 10 प्रदूषित देशो में 7 भारत के हैं और यह किसी भी देश के लिए भयावह स्थिति है। ज़हरीली हवा ने देखते ही देखते मेरे हस्ते खेलते शहर हो अपनी चपेट में ले लिया। प्रदूषण बढ़ने के बाद जब मैंने सांस ली तो सीने में ऐसा झटका लगा कि मैंने सुबह छत पर जाना ही छोड़ दिया।

जब मेरे जैसे नौजवान का यह हाल हुआ तो बूढ़े और गर्भवती महिलाओं को किस कदर तकलीफ होती होगी इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। सांस ना ले पाने के कारण इंसान की दर्दनाक मौत होती है, इसका दर्द काफी हद तक मैंने महसूस भी किया है। लोगों का सड़क पर मास्क लगाकर चलना एक आम बात हो गई है और अब मुझे इस बात का डर है कि कहीं हर मुसीबत और स्थिति में एडजस्ट कर लेने वाला हमारा देश ऑक्सीजन मास्क में भी एडजस्ट ना हो जाये।

मौजूदा हालात देखते हुए तो लगता है कि यह दिन दूर नहीं, क्योंकि ना ही सरकार के लिए पर्यावरण कोई खास मुद्दा है और ना ही देश की जनता के लिए। हमारी आदत है जब तक मुसीबत हमारे दरवाज़े नहीं आ जाती तब तक हम उसकी परवाह नहीं करते हैं।

देश में पर्यावरण का स्तर अच्छा रहे यह ज़िम्मेदारी सरकार की है लेकिन कर्तव्य हमारा भी है। हम सरकार पर सारा दारोमदार डालकर अपने कर्तव्य से पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं।

कुछ उपाय जो परिवर्तन के लिए ज़रूरी हैं

1. प्लास्टिक का कम-से-कम उपयोग-

हमें प्लास्टिक का कम-से-कम इस्तेमाल करना चाहिए और उसको कूड़े से साथ जलाना भी नहीं चाहिए। प्लास्टिक ऐसा पदार्थ है, जो कभी खत्म नहीं होता है और उसके जलने से ऐसी गैस रिलीज़ होती है, जो बहुत की नुकसानदेह है और हवा को ज़हरीली बना देती है।

2. ईंधन से चलने वाले वाहनों का कम-से-कम उपयोग

हमें ईंधन पर चलने वाले वाहनों का कम-से-कम उपयोग करना चाहिए। आजकल हम इतने आलसी हो गए हैं कि 10 कदम जाने के लिए भी वाहन का प्रयोग करते हैं, जो पर्यावरण को प्रदूषित करता है। अगर हम पैदल चलने की आदत डाल लें तो काफी हद तक हवा की समस्या से निज़ात पा सकते हैं।

दिवाली और बाकि त्यौहारों में पटाखों का कम-से-कम प्रयोग

अब जो मैं बताने जा रहा हूं, उसके कई लोग मुझे देश से निकालने की बात करेंगे। हमें दिवाली और बाकि त्यौहारों पर भी अपने जज़्बातों पर काबू रखना होगा और पटाखों का कम-से-कम उपयोग करना होगा।

मैं कोई हिन्दू विरोधी नहीं हूं बल्कि मैं तो खुद बचपन से दिवाली पर पटाखे जलाते आ रहा हूं। अब वक्त की नज़ाकत को समझते हुए हमें अपने कुछ शौक छोड़ने पड़ेंगे और इस मामले में मुझे लखनऊवासियों पर गर्व है। जैसे ही सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर आया तो लखनऊ के लोगों ने इस साल बहुत की कम पटाखे जलाए और पर्यावरण का ख्याल रखा।

सरकार को उनकी ज़िम्मेदारी याद दिलाना सबसे अहम है, क्योंकि सरकार को टैक्स हम ज़हर लेने के लिए नहीं देते हैं। हमें सरकार से सवाल करने का हक है और उनको उनकी ज़िम्मेदारी याद दिलाना आज सबसे ज़रूरी है। आज हमें यदि आवश्यकता हो तो सड़क पर भी उतरने से नहीं हिचकिचाना चाहिए और यह ज़िम्मेदारी हम युवाओं की है, क्योंकि यहां हमारा भविष्य ही दांव पर है।

अंत में मैं यहीं कहना चाहूंगा कि जाग जाओ मेरे देशवासियों वरना अंत हमारा बहुत नज़दीक है।

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