Site icon Youth Ki Awaaz

सरकार को RTI में संशोधन क्यों करना पड़ा?

आरटीआई

आरटीआई

हाल ही में सूचना का अधिकार कानून में बदलाव  के साथ लोकसभा में बिल पास किया गया है, जिसका पुरज़ोर तरीके से विरोध भी हो रहा है। यहां सवाल यह है कि आरटीआई कानून में संशोधन की ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या इस कानून में कोई कठिनाई आ रही थी? या सूचना आयुक्त किसी तरह के अधिकार मांगने की कोशिश कर रहे थे? जब ऐसा कुछ भी नहीं था तो इसमें संशोधन क्यों किया गया?

राजनितिक दलों को इस कानून के दायरे से बाहर रखना भी इसे कमज़ोर बनाता है और भ्रष्टाचार की जड़ें मज़बूत करता है। गहरे राजनीतिक ध्रुवीकरण के समय में राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के दायरे से बाहर रखना उन कुछ मुद्दों में से एक है, जिसने राष्ट्रीय पार्टियों को वैचारिक स्पेक्ट्रम पर एकजुट किया है।

आरटीआई संवैधानिक और मौलिक अधिकार है। लिहाजा इसमें संशोधन की ज़रूरत थी ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि आरटीआई हर व्यक्ति का संवैधानिक और मौलिक अधिकार है। आरटीआई (संशोधन) बिल का लगातार विरोध हो रहा है, जिसका सबसे बड़ा कारण है कि इससे सूचना आयुक्त कमज़ोर हो जाएंगे। उनकी नियुक्ति से लेकर वेतन भत्ते सब सरकार तय करेगी।

क्या इस कानून का दुरुपयोग नहीं होगा?

सूचना आयोग या सूचना आयुक्त जो पहले संवैधानिक पद या संस्था थे, अब वह केंद्र सरकार के अधीन हो जाएंगे। जो आयुक्त पहले जनता के प्रति जवाबदेह थे, वह अब सरकार के प्रति जवाबदेह हो जाएंगे। सरकार भले ही कह रही है कि संशोधन से आरटीआई कानून का दुरुपयोग नहीं होगा लेकिन सरकार ने इसके दुरुपयोग का रास्ता खोल दिया है।

हो सकता है कि मौजूदा सरकार इस कानून का दुरुपयोग ना करे लेकिन भविष्य में अगर दूसरी सरकार आती है तो वह इसका दुरुपयोग नहीं करेगी, यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता।

इस संशोधित कानून का कोई फायदा तो नज़र नहीं आता लेकिन इससे नुकसान ज़रूर हो सकता है, क्योंकि इससे ना सिर्फ सरकारी कर्मचारियों की स्वतंत्रता को खतरा है बल्कि सूचना से जुड़ा कामकाज देख रहे सरकारी कर्मचारियों के अपने वरिष्ठ अफसरों के सामने झुकने की भी आशंका है।

फोटो साभार: Getty Images

सूचना आयोग एक संवैधानिक संस्था है लेकिन संशोधन से यह संस्था कमज़ोर हो सकती है। पहले मुख्य सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों को हटाने का अधिकार राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास थे लेकिन अब यह अधिकार भी केंद्र सरकार के पास आ गया है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या सरकार जब चाहे तब आयुक्तों को उनके पद से हटा सकती है? इस बारे में तभी कुछ कहा जा सकता है जब तक सारे नियमों को अंतिम रूप नहीं दे दिया जाता।

सुप्रीम कोर्ट में मिल सकती है चुनौती

केंद्र सरकार के पास अधिकार आने से सरकार से जुड़ी जानकारी मांगने में दिक्कत हो सकती है। आरटीआई के ज़रिये सरकार से जुड़े फैसलों और उनके कामकाज की जानकारी लेने में पहले भी दिक्कत होती थी। आरटीआई लगने पर किसी बात की जानकारी देने पर आखिरी फैसला सूचना आयोग करता था लेकिन अब उसी आयोग की स्वतंत्रता के  कमजो़र होने का खतरा रहेगा।

ऐसी बहस चल रही है कि आरटीआई (संशोधन) बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है क्योंकि यह अब एक संवैधानिक समस्या बन गया है। सरकार को भी आयोग की शक्ति कम करने से पहले सुप्रीम कोर्ट से विचार-विमर्श करना था। अगर इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिलती है और वह सरकार से इस कानून से संशोधन हटाने को कहती है, तो सरकार को इसे अमल करना होगा।

आरटीआई कानून में अब संवैधानिक शक्ति की आवश्यकता है क्योंकि इसमें ना सिर्फ सरकार, बल्कि जनता और मीडिया भी हिस्सेदार हैं। अगर इस कानून को और शक्तिशाली बनाना है, तो इसमें जनता की भागीदारी होनी चाहिए। इस बिल को सरकार ने ज़ल्दबाजी में पास करा लिया लेकिन इसे पास करने से पहले जनता से विमर्श ज़रूर करना चाहिए था। अगर जनता इसमें कोई संशोधन सुझाती तो वह संशोधन होने चाहिए थे क्योंकि यह कानून जनता का अधिकार है।

आरटीआई कानून में व्यवस्था

प्रस्तावित बदलाव पर एक नज़र

एक्ट में किए गए यह सभी बदलाव साबित करते हैं कि यह कानून को कमज़ोर करने का प्रयास है और इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। जैसा कि हम जानते हैं, आम जनता के पास सूचना का अधिकार ही एकमात्र ऐसा ठोस हथियार है, जिससे प्रभावी लड़ाई लड़ी जा सकती है। चाहे वह एक उच्चाधिकार प्राप्त राजनेता हो या अधिकारी के खिलाफ। साथ ही सूचना आयुक्त के सशक्त होने से यह और प्रभावी होता था परन्तु यह बदलाव इन सभी पहलुओं को कमज़ोर बनाता है।

फोटो साभार: Getty Images

विश्व में सबसे पहले स्वीडन ने सूचना का अधिकार कानून 1766 में लागू किया गया जबकि कनाडा ने 1982, फ्रांस ने 1978, मैक्सिको ने 2002 तथा भारत ने 2005 में लागू किया। विश्व में स्वीडन पहला ऐसा देश है, जिसके संविधान में सूचना की स्वतंत्रता प्रदान की है। स्वीडन में यह कानून लागू करने का प्रभाव स्पष्ट रूप से नज़र आता है।

स्वीडन आज विश्व का समृद्ध देश है और विभिन्न विश्व पैरामीटर में सबसे ऊपर आता है, जैसे इकॉनमी और राजनीति आदि। विश्व में सबसे कम भ्रष्टाचार की सूची में स्वीडन तीसरे स्थान पर है जबकि भारत इसमें 78वें स्थान पर है।

Exit mobile version