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क्या छात्रसंघ चुनावों के बाद युवाओं का राजनीति में भविष्य है?

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत और यहां की अद्भुत राजनीति। वैसे तो यह अपने आप में अनुठी है, क्योंकि यहां किसी भी समय कुछ भी हो सकता है फिर भी कई दफा एक सवाल यह भी उठता है कि क्या भारतीय राजनीति में पूंजीपतियों और भ्रष्ट नेताओं के अलावा सच में नवयुवकों और छात्र नेताओं की ज़रूरत है?

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो क्या इस देश का युवा सिर्फ राजनैतिक पार्टी का झंडा उठाने और दरी बिछाने का ही काम करेगा? इसका उत्तर शायद इस देश के युवा और सभी राजनैतिक दल अच्छे से समझ ही गए होंगे, क्योंकि युवाओं को या तो छात्र राजनीति में उलझा दिया जाता है या उन्हें महज़ पार्टी के युवा मोर्चा के बैनर में एक छोटी फोटो के बराबर जगह दे दी जाती है।

यह सवाल और ज़्यादा तब गहरा जाता है, जब हम देखते हैं कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स में सक्रिय रहे युवाओं के लिए कॉलेज से जाने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव लड़ने के अवसर लगभग ना के बराबर हैं। ऐसे में इस कथन को हम बीते दो दशकों की राजनीति से जोड़कर भी अच्छी तरह से समझ सकते हैं।

आंकड़ों के लिए जेएनयू से लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद यूनिवर्सिटी और बंगाल की विश्व भारतीय यूनिवर्सिटी के छात्र नेताओं का उदाहरण लिया जा सकता है। हम यह समझ पाएंगे कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स  में सक्रिय रहने वाले कितने स्टूडेंट्स को मौका मिल पाया है।

कॉलेज में वक्त ज़ाया करके क्या मिला?

चुनाव लड़ने में प्रमुख रूप से मुझे तो दो ही नाम याद आते हैं। पहला तो जिग्नेश मेवानी का (जो फिलहाल वाङ्गम विधानसभा से निर्दलीय विधायक हैं) और दूसरा जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार का, जो अभी फिलहाल केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से चुनाव हारे हैं। इसमें एक नाम जो और मैं जोड़ना चाहूंगा, वह है बीजेपी के युवा नेता तेजस्वी सूर्या का जिन्होंने अभी हाल-फिलहाल में बेंगलुरु साउथ संसदीय क्षेत्र से जीत हासिल की है।

ऐसा हो सकता है कि आपको 2-4 छात्र नेताओं के नाम और याद हो, जिन्हें लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने का मौका पूर्व में उसी पार्टी की तरफ से मिल चुका हो, जिसके लिए वह अपने कॉलेज के दिन में लेक्चर छोड़कर तपती धूप में कैंपस में सभाएं करते हुए घूमा करते थे और ज़रा-सा विरोध करने पर आपसे लड़ने को तैयार हो जाया करते थे।

उनकी क्रांतिकारी हिम्मत को देखकर आपको भी एहसास होता था कि यह अमुक लड़का/लड़की एक ना एक दिन अच्छा और बड़ा नेता बनकर समाज में बदलाव ज़रूर लाएगा लेकिन दोस्तों दिल थामकर बैठिए क्योंकि ऐसा कुछ नहीं हुआ है पिछले 20 वर्षों में। हां, अगर उससे पहले के 20 सालों में हुआ हो, तो अलग बात है लेकिन मैंने पहले ही लिख दिया है कि मैं बात सिर्फ वर्ष 1999 से लेकर 2019 की कर रहा हूं।

अब आगे पढ़िए रोचक किस्सा

मशहूर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के एक कार्यक्रम में मैं शामिल हुआ था और वहां पर कई प्रकार के छात्र नेता आए हुए थे। इस दौरान एक छात्र नेता से बातचीत के दौरान पता चला कि वह जेडीयू के छात्र संगठन से जुड़े हैं और उनकी उम्र 42 वर्ष है। इस बातचीत में मैंने पूछा कि आप स्टूडेंट्स के लिए क्या करते हैं, तो उन्होंने बड़ा ही मजे़दार जवाब दिया। वह बोले,“मैं सिर्फ बिहार के स्टूडेंट यूनिट के सदस्यों के साथ मिलकर स्टूडेंट्स के हित में काम करता हूं।”

फोटो साभार: Getty Images

मैंने पहले तो दो मिनट सोचा फिर पूछ ही लिया, “आप तो 40+ के हो गए हैं और आप स्टूडेंट भी नहीं रहे फिर स्टूडेंट पॉलिटिक्स की जगह विधायकी या सांसदी क्यों नहीं लड़ते? तब उन्होंने वही उत्तर दिया जो मेरे दिमाग में घूम रहा था। उन्होंने कहा, “इसके लिए बेटा पहुंच और सपोर्ट चाहिए और अगर वह सब है, तो चाहिए अच्छा खासा पैसा।”  मैंने फिर पूछा,”तो स्टूडेंट पॉलिटिक्स में क्या चाहिए?” वह बोले, “इधर कुछ नहीं चाहिए। किसी यूनिवर्सिटी में जाकर बैठ जाओ। सब जानते हैं कि हर साल छात्र संघ के चुनाव आते ही हैं। बस स्टूडेंट्स को सपोर्ट कर दो। अगर जीत गया तो ठीक वरना अपनी जेब से क्या गया?”

अब समझिए इस बात का तात्पर्य

अभी कुछ दिनों में लगभग सभी बड़े विश्वविद्यालयों के छात्र संघ चुनाव आने वाले हैं और सभी पार्टियों के छात्र नेता अपने-अपने टिकट की जुगलबंदी में लग चुके हैं। ऐसे में वह सभी स्टूडेंट जो किसी संगठन या छात्र इकाई से जुड़े हैं, ज़ोर-शोर से प्रचार-प्रसार में जुट चुके हैं। चिलकती धूप में पसीने से तर कुर्ते में सब संगठन अपने आप को तुर्रम खां साबित करने में लग चुके हैं।

ऐसे में मेरा उन सभी स्टूडेंट्स से निवेदन है कि या तो आप अपने टिकट के लिए दावेदारी प्रकट करें और यदि आप पूर्व में किसी पद पर रह चुके हैं, तो अपनी दावेदारी राष्ट्रीय स्तर पर प्रकट करें। अन्यथा आप भी उन भाई साहब की तरह 40-45 साल तक सिर्फ कहलाने वाले छात्र नेता ही बनकर रह जाएंगे।

फोटो साभार: Twitter

आप जो चिलकती धूप में दूसरे के लिए दरी बिछाते हुए घूम रहे हैं, उस दरी को अभी समेटिए और चुपचाप क्लास में जाकर बैठिए और जब क्लास में पढ़ाई में मन ना लगे तो ठंडे दिमाग से सोचिए कि आप किस तरह से अपनी दावेदारी प्रकट कर सकते हैं, किस तरह से आप जल्दी से जल्दी विधानसभा या संसद में जन प्रतिनिधि बनकर जा सकते हैं?

यकीन मानिए आप जिस दिन जन प्रतिनिधि बन गए, आप उस नेता से 1000 गुना ज़्यादा विकास और अन्य कार्य कर सकते हैं, जिसके लिए अभी आप ढपली बजा रहे हैं, फ्लेक्स लगा रहे हैं, नारे लगा रहे हैं, क्लास मिस कर रहे हैं और दूसरों से लड़ाई कर रहे हैं।

असली मायने में उस दिन देश की राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल जाएगी। जिस दिन आप जैसे कुशल छात्र नेता के सहयोगी एक जन प्रतिनिधि बनकर विधानसभा या लोकसभा पहुंचेंगे, यकीन मानिए उसी दिन यह भी सार्थक हो जाएगा कि भारत सच में युवाओं का देश हैं और आधी से ज़्यादा समस्याएं अपने आप खत्म हो जाएंगी।

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