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समुद्र में हर साल पाए जाते हैं 1 करोड़ टन तक प्लास्टिक

फोटो साभार- Getty Images

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सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल में हमें आसानी होती है लेकिन इसका हमारी सेहत के साथ-साथ पर्यावरण पर भी काफी बुरा असर पड़ता है। इन सबके बीच महात्मा गाँधी की जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर से भारत में सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने की पूरी तैयारी हो गई है।

सिंगल यूज़ प्लास्टिक क्या है

सिंगल यूज़ प्लास्टिक यानि एक ही बार इस्तेमाल के लायक प्लास्टिक। प्लास्टिक की थैलियां, प्याले, प्लेट, छोटी बोतलें, स्ट्रॉ और कुछ पाउच सिंगल यूज़ प्लास्टिक हैं, जिन्हें दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

दरअसल, इस तरह के आधे से ज़्यादा प्लास्टिक पेट्रोलियम आधारित उत्पाद होते हैं। इनके उत्पादन पर बहुत कम खर्च आता है। यही वजह है कि रोज़ाना के बिज़नेस और कारोबारी इकाइयों में इसका इस्तेमाल अधिक होता है। उत्पादन पर इसके भले ही कम खर्च हों लेकिन फेंके गए प्लास्टिक के कचरे, उसकी सफाई और उपचार पर काफी खर्च होते हैं।

प्लास्टिक कितना हानिकारक है

हर साल समुद्रों में 80 लाख टन से लेकर 1 करोड़ टन तक प्लास्टिक पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रति मिनट एक ट्रक प्लास्टिक कचरा समुद्र में जा रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार अगर प्लास्टिक के इस्तेमाल में कमी नहीं की गई, तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज़्यादा प्लास्टिक पाए जाएंगे।

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वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अभी समुद्रों में 15 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा मौजूद हैं। अगर यह क्रम ऐसे ही जारी रहा तो 2050 तक यह कचरा समुद्र से मछलियों से अधिक होगा। इससे मनुष्यों की खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होने की संभावनाएं हैं।

अटलांटा स्थित सेंटर फॉर डिजीज़ कंट्रोल के मुताबिक, कम-से-कम 80 प्रतिशत अमेरिकन के शरीर में प्लास्टिक पाया गया है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि गाय और अन्य पशु-पक्षी प्लास्टिक का सेवन कर लेते हैं। पशु-पक्षी इस बात को समझ नहीं सकते कि प्लास्टिक उनकी सेहत के लिए अच्छा नहीं है। प्लास्टिक कई बार जल स्त्रोतों में चला जाता है, जिसके चलते पानी की क्वालिटी भी खराब हो जाती है।

प्लास्टिक से मुक्ति कैसे मिले?

रीसाइक्लिंग एक बेहतरीन विकल्प है। विश्व में प्लास्टिक का करीब दस प्रतिशत से कम हिस्सा ही रिसाइकल किया जाता है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर हम इस दिशा में शानदार विकल्प की तलाश कर सकते हैं।

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वैसे एक बात ज़रूर कहना चाहूंगा कि यह सब कहना बहुत आसान है कि प्लास्टिक बैन कर दिया जाएगा मगर इसमें कई चुनौतियां हैं। सबसे पहली चुनौती यह है कि आपने सिंगल यूज़ प्लास्टिक बैन की बात तो कह दी है मगर विकल्प क्या है आपके पास?

चलिए मान लेते हैं कि विकल्प के तौर पर पत्ते और कागज़ के ज़रिये बैग बनाने का काम शुरू होगा या कुछ और भी बेहतरीन विकल्प पर बात होगी मगर प्लास्टिक कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों का क्या होगा?

बड़े पैमाने पर जब प्लास्टिक उत्पाद की कंपनियां बंद होने लगेगी तब देश की अर्थव्यवस्था पर भी तो इसका असर पड़ेगा। हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों को एक साथ मिलकर इस दिशा में बात करनी चाहिए।

यह कह देना बहुत आसान है कि पेपर बैग्स आ जाएंगे मगर उसके लिए भी तो पेड़ों की कटाई होगी। यानि कि एक तरफ हम पर्यावरण रक्षा के लिए प्लास्टिक बैन कर रहे हैं और दूसरी तरफ पेपर बैग्स का इस्तेमाल कर हम पर्यावरण का दोहन भी कर रहे हैं।

सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना पर्यावरण रक्षा के तौर पर अच्छा कदम है। इससे पर्यावरण को फायदा ज़रूर होगा लेकिन इसे अच्छी तरह से अमल में लाना होगा। महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में आज भी प्लास्टिक बैन है मगर इसका प्रयोग फिर भी किया जाता है। मैं आशा करता हूं कि देश के तौर पर जब हम इसे अमल में लाने पर ज़ोर देंगे, तब सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।

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