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मेरे शहर के ई-टॉयलेट्स जब से बने हैं, तब से उन पर ताले लगे हुए हैं

कई दफा बैठकर सोचती हूं कि लडकियों की ज़िन्दगी भी अजीब सी जद्दोजहद भरी होती है। कभी गर्भपात, कभी पीरियड्स, कभी प्रेगनेंसी तो कभी कुछ और। अगले ही पल एक सूफी कहावत याद आती है, “ज़िन्दगी हमारे उसी गुण का इम्तिहान लेती है जिससे हम लबरेज़ होते हैं।”

खैर, कल का दिन बड़ा थकान देने वाला था। पीरियड्स का पहला दिन और उपर से भागदौड़ वाली ज़िन्दगी। इस भागदौड़ की ज़िन्दगी में तो पैड बदलने की फुरसत भी मुश्किल से निकालनी पड़ती है। दिन भर घर से बाहर थी और यह सोच रही थी कि कम-से-कम पैड तो बदल लेती हूं, क्योंकि सरकार ने सफाई और स्वच्छता अभियान पर काफी खर्च किया है मगर जब ई-टॉयलेट गई तो वहां ताले लगे हुए थे।

मेरे शहर के आधे से ज़्यादा ई-टॉयलेट्स में ताले लगे रहते हैं। वैसे तो शहर के मुख्य बाज़ार में एक ही ई-टॉयलेट है, जहां अकसर ताले लगे होते हैं मगर कभी-कभी उस टॉयलेट में ताले नहीं भी दिखाई पड़ते हैं। खैर, उस ई-टॉयलेट के खुलने या ना खुलने से हमें कोई फायदा नहीं होता है, क्योंकि आप उसमें सिक्का डालेंगे तो आपका सिक्का अंदर चला जाएगा मगर आप अंदर नहीं जा पाएंगे। यदि आपकी एंट्री हो भी गई तो अंदर पानी की कोई व्यवस्था नहीं होगी।

मेरा शहर दिल्ली के बेहद करीब होने के बावजूद भी यहां की हालत जब ऐसी है, तब आप अंदाज़ा लगाइए कि देश के अलग-अलग इलाकों की स्थिति कैसे होगी?

देश में अपने-अपने स्तर पर कई सामाजिक संगठनों द्वारा माहवारी जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जिनमें पीरियड्स के दौरान स्वच्छता की बात सबसे ज़्यादा होती है। हमारे देश की स्थिति यह है कि महिलाएं जब पीरियड्स के दौरान ट्रेन में सफर कर रही होती हैं तब खासकर जनरल और स्लीपर क्लास में तो सफाई का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता है।

फोटो साभार- Flickr

पीरियड्स के दौरान हम स्वच्छता को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते हुए यह भूल जाते हैं कि देश में अमीर और गरबी दोनों तबके की महिलाएं रहती हैं, जिनमें ज़्यादार गरीब तबके की महिलाओं को पीरियड्स के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यदि महिलाएं ग्रामीण इलाकों से आती हैं, फिर तो वहां सरकार द्वारा बनाए जाने वाले टॉयलेट्स खुद ही बीमार हालत में होते हैं।

मैंने देखा है मेरे शहर के ज़्यादातर ई-टॉयलेट्स के शिलान्यास के बाद उनमें ताले लगा दिए गए हैं और जो अभी खुले हुए हैं, उनमें वे तमाम सुविधाएं नहीं हैं जो पीरियड्स के दौरान किसी भी महिला के लिए बेहद ज़रूरी होता है।

मैं सोनीपत शहर से हूं, जो दिल्ली से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर है और वहां की हालत यदि ऐसी है फिर आप कल्पना कर सकते हैं कि हमारे नेता आखिर कर क्या रहे हैं? ‘कच्चे क्वाटर’ जो शहर का व्यस्ततम इलाका है, वहां के टॉयलेट्स की हालत यह है कि सुविधाओं के नाम पर ना तो पानी है और ना ही सैनिटरी पैड्स हैं।

यहां तक कि इस इलाके से गुज़रने वाले लोग बदबू के कारण उल्टियां भी कर देते हैं। सफाई के नाम पर महज़ झाड़ू लेकर फोटो खिंचवाने से ही स्वच्छता अभियान अपना रंग नहीं दिखाएगा। उसके लिए एक पारदर्शी व्यवस्था की ज़रूरत है, जहां ईमानदारी से काम हो।

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