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“पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए काटा जा रहा है आरे जंगल”

कोई भी आम इंसान यदि उसके पास तीनों वक्त के खाने के बाद ज़राा सा भी पैसा बचता है, तो वह ज़मीन खरीदने की नीयत रखने लगता है। ज़मीन घर बनाने के लिए, ज़मीन दुकान बनाने के लिए या फिर इंवेस्टमेंट के नाम पर।

ऐसी महत्वकांक्षाएं आम इंसानों में सरेआम हैं लेकिन आम इंसान से परे ज़मीन हासिल करने की महत्वकांक्षा इस डिजिटल युग में पूंजीपतियों की सबसे बड़ी सनक है।

मुंबई शहर के बीचों-बीच 3000 एकड़ में फैले ‘आरे’ जंगल, बस इसी सनक को झेल रहा है। इसका परिणाम हज़ारो पेड़, जंगल से शहर आने वाले फल और उन फलों को बेचकर जीवन यापन करने वाले आरे जंगल के आदिवासी भोग रहे हैं। इनके अलावा यह परिणाम जंगल में रहने वाले छोटे से बड़े जानवर झेल रहे हैं।

मुंबई का आरे फॉरेस्ट में कटे हुए पेड़, फोटो साभार- ट्विटर

आरे जंगल विवाद की शक्ल क्या है?

बीएमसी की ट्री अथॉरिटी, जिसकी इजाज़त के बिना आप एक पत्ता भी नहीं हिला सकते, उसी ने 29 अगस्त 2019 को मुंबई की आरे कॉलोनी में मेट्रो 3 प्रोजेक्ट बनाने के लिए कार शेड बनाने की योजना को मंजूरी दी।

बहरहाल, इस योजना के तहत शेड के लिए 2700 पेड़ काटे जाने की खबर है। इस प्रोटेस्ट का हिस्सा रहे सोशल सह वातावरण एक्टिविस्ट ‘निकोलस अलमिडा’ ने कहा,

सरकार कायर है। वह सोते हुए पेड़ों की कैसे हत्या कर सकती है? यदि किसी इंसान की हत्या होती है तो उसकी सज़ा 302 के तहत होगी लेकिन इतने ढेर सारे पेड़ों की हत्या पर प्रकृति खुद ही सजा देगी।

जंगलो में काम करने वाले वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट नयन खानोलकर और राजेश सानप का मानना है कि आरे जंगल में मकड़ियों की कुछ दुर्लभ प्रजातियां से लेकर करीब 120 प्रजातियां प्रवासी पक्षियों की प्रजाति भी मौजूद हैं। जबकि NEERI की एक रिपोर्ट के अनुसार मेट्रो साइट के निर्माण से मानसून के वक्त आसपास के कई इलाकों में बाढ़ की आशंकी बढ़ जाएगी।

आरे की यथा स्थिति

मेट्रो का दावा है कि ‘आरे’ जंगल में कोई जैव विविधता मौजूद नहीं है।  मेट्रो-3 प्रोजेक्ट बनाने हेतु पेड़ों की कटाई रात के अंधेरे में शुरू हुई तो लोगों का विरोध शुरू भी बढ़ता गया। जिसके बाद पुलिस ने देर रात कुछ लोगों को हिरासत में ले लिया।

ज्ञात हो कि हिरासत में कई महिलाएं भी हैं। आरे की ओर जाने वाले सभी रास्तों पर पुलिस ने नाकाबंदी कर दी है ताकि लोगों को इस इलाके में आने से रोका जा सके और आरे के आसपास धारा 144 भी लगाई दी गई है। आम लोगों से लेकर बॉलीवुड की शख्सियतों तक ने इस योजना का विरोध किया है।

सामाजिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव ने भी आरे में पेड़ों की कटाई शुरू होने का विरोध किया, साथ ही स्थति को चिंताजनक बताया था। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन से होने वाले गंभीर संकट सामने दिख रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार की आरे पेड़ों को काटने और मेट्रो शेड के लिए दूसरी जगह ना देखने की ज़िद्द काफी डराने वाली है। यह पृथ्वी को लेकर एक अदूरदर्शिता है, जो आगे हमें परेशान करेगी।

आरे जंगल को बचाने के लिए आंदोलन करते मुंबई वासी, फोटो साभार- ट्विटर

अदालत की ओर से आरे कॉलोनी को बचाने के लिए दायर चारों याचिकाओं को बॉम्बे हाईकोर्ट से खारिज किए जाने के बाद अब याचिकाकर्ता जल्द ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। इसमें एक राजनीतिक चाल भी है जो हमें समझने की ज़रूरत है जैसे,

आरे के जंगलों में सैकड़ों सालों से रहने वाले आदिवासियों पर एक नज़र

आरे विश्व का एक मात्र ऐसा जंगल है जो शहर के बीचों बीच स्थित है। यह कल तक शहरी आदिवासी एवं जंगल के जानवरों में बैठी समन्वय का प्रतीक था। असल में आरे के आदिवासी मुंबई शहरी एवं जंगल में मौजूद जानवरों के बीच की एक बेजोड़ कड़ी हैं।

जंगल में लगभग 27 आदिवासी पांडे यानी गाँव मौजूद हैं। इन गाँवों में लगभग 5000 से अधिक की आबादी है। ये आबादी जहां एक तरफ जानवरों से लेकर 120 प्रवासी पक्षियों की प्रजाति की संरक्षक बनी हुई है, तो वहीं शहरियों को भिन्न प्रकार के फलों को उपलब्ध कराने का भी स्रोत हैं। आदिवासी इन फलों को बेचकर अपनी जीविका चलते आ रहे हैं।

सुनील कामरे लोकल ट्राइबल हैं जो कहते हैं कि आरे क्षेत्र में जो भी करना था, उसके लिए पहले यहां के ट्राइबल से इसकी परमिशन लेनी चाहिए थी। मेट्रो-3 के लिए जो तेज़ी दिखाई जा रही है वह कहीं ना कहीं आरे के संतुलन को समाप्त कर देगी। यहां पिकनिक स्पॉट भी है जो शहरी क्षेत्र के लोगों के लिए है, डेयरी सेंटर है, इन सबका क्या होगा ? किसी के पास आदिवासियों के इन सवालों का जवाब है ?

आरे जंगल को बचाने के लिए आदोलन करते वॉचडॉग फॉउंडेशन के लोग। फोटो साभार- निकोलस

आरे जंगल पर राजनीति

निकोलस अलमिडा बताते हैं कि

मेट्रो-3 प्रोजेक्ट में कार शेड बनाने हेतु पेड़ों की कटाई की जब बात सुनी, तब हमने इस परियोजना के लिए 7 दूसरे लोकेशन सजेस्ट किए लेकिन इन सातों समतल ज़मीनों की लोकेशंस को छोड़कर सरकार ने इस जंगल को टारगेट किया।

उन्होंने इसे सरकार की साज़िश बताते हुए कहा,

असल में यह पूरी तरह एक साज़िश है, जिसका मकसद 34 हेक्टयर में फैले जंगल की ज़मीनों पर कब्ज़ा जमाना है।

उन्होंने बताया कि इन जंगलों पर कब्ज़ा जमाकर ठीक वैसा ही लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही  है जैसे बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स के दौरान हुआ। जिसका नतीजा यह रहा कि प्रकृति ने बारिश में इस साल बाढ़ के पानी को मातोश्री के दरवाज़े तक पहुंचा कर एक चेतावनी दे थी लेकिन मातोश्री के शहज़ादे आदित्य ठाकरे इसे नज़रअंदाज़ कर राजनीति कर रहे हैं।

अब यह राजनीति नहीं तो क्या है कि उनकी शिवसेना, केंद्र से लेकर महाराष्ट्र तक सत्ता में है फिर भी आरे के आदिवासियों को बेवकूफ बनाते हुए कह रहे हैं,

वह जब सरकार में आएंगे तब पेड़ काटने वालों को पीओके भेज देंगे।

सच तो ये है कि वोट प्रस्ताव के पीछे गहरी साज़िश है, जिसके तहत मुंबई शहर के बीचों-बीच स्थित आरे के जंगलों की ज़मीनें पूंजीपतियों को उपलब्ध करवाना है और इस साज़िश का रिमोट कहीं न कहीं शिव सेना के हाथ है।

अब अगला कदम क्या होगा? इस सवाल पर वॉचडॉग फाउंडेशन के ट्रस्टी सह वातावरण एक्टिविस्ट एडवोकेट गोडफ्रे पिमेंटा ने कहा कि हम मामले का गहराई से अध्ययन कर रहे हैं और जल्द ही सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। साथ ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्ता पक्ष को सटीक जवाब भी देंगे।

इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल आरे जंगल में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी है और इस पूरे मामले की सुनवाई को 21 अक्टूबर तक टाल दिया है। इन जंगलों को बचाने के लिए जितने भी लोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए उन्हें भी तुरंत रिहा करने के आदेश दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से कहीं ना कहीं जंगल बचाने की जंग को थोड़ी और हिम्मत मिली है।

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