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न्यायिक संघर्ष के बावजूद डॉ. कफील खान ने नहीं छोड़ी चिकित्सा

उत्तर प्रदेश में कानून की किताब थोड़ी मोटी है। उसमें कई अतिरिक्त धाराएं हैं। जैसे जो पत्रकार सरकारी स्कूल के मिड डे मील में रोटी-नमक परोसे जाने की खबर दिखाए उसी पर एफआईआर दर्ज़ कर दो, जो डॉक्टर सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई खत्म हो जाने पर बच्चों की जान बचाने की कोशिश करे, उसे ही जेल भेज दो और जब एक डॉक्टर यह मानने से इनकार कर देता है कि “अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं” तब सरकार उसे तोहफे में 9 महीने जेल और मानसिक प्रताड़ना देती है।

आखिर क्यों खत्म हो गई बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की सप्लाई?

10 अगस्त की रात गोरखपुर की सबसे काली रात थी। जब ऑक्सीजन भी एक विशेषाधिकार बन गया था और गरीबों को इससे वंचित कर दिया गया था। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की सप्लाई और उसके बाद योगी सरकार की शर्म खत्म हो गई थी। 13 अगस्त को ऑक्सीजन की सप्लाई वापस आई। तब तक 30 से ज़्यादा बच्चे ऑक्सीजन की कमी से मर चुके थे।

निशुल्क इलाज करते डॉ कफील खान, फोटो साभार- Dr Kafeel khan Twitter

पता नहीं ऑक्सीजन की कमी से बिछने वाली बच्चों की लाशों के बोझ तले दबा यह मुल्क सर उठा कर अपनी महानता का दावा कैसे करता है।

यह नामुमकिन है कि ऑक्सीजन सप्लाई खत्म होने वाली थी और सरकार को इस बारे में भनक तक नहीं थी। यह सच भी नहीं है। दरअसल, इस पूरे घटनाक्रम पर नज़र डालें तो यह साफ हो जाएगा कि ये मौतें कोई हादसा नहीं, बल्कि हत्या है। ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी ने 63 लाख रुपए का बकाया भुगतान करने के लिए सरकार को 30 लेटर लिखे थे।

ऑक्सीजन सप्लाई बंद करने से दो दिन पहले भी कंपनी ने अस्पताल को लेटर लिख कर 63 लाख रुपए भुगतान करने का याद दिलाया था।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी थी जानकारी

उत्तर प्रदेश सरकार में न्याय की परिभाषा अलग है। सरकार के जिन अधिकारियों को कंपनी ने लेटर लिख कर बकाया राशि भुगतान ना करने की स्थिति में ऑक्सीजन सप्लाई बंद करने को लेकर चेताया था, उन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी लेटर द्वारा इस बात की सूचना दी गई थी। उनके साथ-साथ स्वास्थ्य मंत्री को भी इस बात की सूचना थी लेकिन योगी सरकार ने डॉ कफील खान को सस्पेंड करके जेल भेज दिया गया।

जब मुख्यमंत्री तक इस बात की खबर थी कि ऑक्सीजन सप्लाई खत्म हो सकती है और इसके बावजूद उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की, तो ऐसे में एक ऐसे डॉक्टर पर कार्रवाई करना जिसे इस बात की जानकारी ही नहीं थी, क्या यह न्याय के पाले में है?

डॉ कफील खान को जैसे ही इस बारे में पता चला उन्होंने अपने स्तर से ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतज़ाम किया और बच्चों की जान बचाने की कोशिश की। बच्चों के कत्ल के ज़िम्मेदार अधिकारियों के इंतज़ार में बैठी हवालात भी डॉ कफील खान को पाकर निराश हुई होगी।

डॉ खान के खिलाफ मीडिया द्वारा किया गया दुष्प्रचार एक एजेंडे का हिस्सा

डॉ कफील खान के जेल जाने के बाद ही, मीडिया में उनके खिलाफ दुष्प्रचार शुरू हो गया था। उन्हें “डॉ डेथ” जैसे नामों से बुलाया जाने लगा। एक डेड मीडिया ही जान बचाने वाले डॉक्टर को “डॉ डेथ” बुला सकती है। इस मीडिया में हिम्मत नहीं थी कि योगी आदित्यनाथ को “सीएम डेथ” के खिताब से नवाज़े। उसमें हिम्मत नहीं थी कि मुख्यमंत्री से यह सवाल पूछ ले कि उन्होंने जानकारी रहते हुए बच्चों को कैसे मरने दिया?

इस मीडिया को डॉ कफील खान का नाम पसंद आ गया था। ठीक वैसे ही जैसे जेएनयू से गायब छात्र नजीब अहमद का नाम पसंद आ गया था और उसके आईएसआईएस से फर्ज़ी कनेक्शन स्थापित कर दिए गए थे।

साम्प्रदायिकता के इस दौर में डॉ कफील खान के साथ हुई प्रताड़ना को उनके मुस्लिम पहचान से अलग नहीं किया जा सकता है।

दिल्ली के ओखला में निशुल्क चिकित्सा करते डॉ कफील खान, फोटो साभार- Dr Kafeel khan Twitter

जांच रिपोर्ट में आरोपों से मुक्त करार किए गए डॉ कफील खान

अप्रैल 2018 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने डॉ कफील खान को बेल देते हुए यह साफ किया कि उनके खिलाफ ड्यूटी पर लापरवाही के कोई सबूत नहीं हैं।

इसी साल 28 सितंबर को उत्तर प्रदेश सरकार की एक रिपोर्ट सामने आई जिसमें,

यह रिपोर्ट 18 अप्रैल 2019 को ही उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग को सौंप दी गई थी। आखिर 6 महीने तक इस रिपोर्ट पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

अपनी बहाली की मांग फिर से रखते हुए इस मौके पर मीडिया से बातचीत में डॉ खान ने इस पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग की। हालांकि, इस रिपोर्ट के सामने आने के पांच दिनों बाद ही उत्तर प्रदेश सरकार ने डॉ कफील खान पर दो और चार्ज़ लगा दिए।

ये चार्ज जांच रिपोर्ट के बारे में गलत जानकारी फैलाने और निलंबन के दौर में सरकार विरोधी बयान देने के लिए लगाए गए। योगी आदित्यनाथ की विचारधारा और पूर्व में लिए गए उनके फैसलों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि शायद डॉ कफील खान अपना नाम बदल कर डॉ कपिल खन्ना कर लें तभी वह उनका पीछा छोड़ेंगे।

निलंबन के बावजूद डॉ कफील खान कर रहे हैं मुफ्त में इलाज

इसी बीच डॉ कफील खान निलंबन के बावजूद अपने गले से आला उतारने का नाम नहीं ले रहे हैं। जहां भी उन्हें ज़रूरत महसूस होती है वहां वह लोगों की मदद करते दिखाई देते हैं।

बच्चों के साथ डॉ कफील खान

चाहे वह मुज़फ्फरपुर में इंसेफलाइटिस से मर रहे बच्चे हों या बिहार में बाढ़, डॉ कफील खान हर जगह मुफ्त में मेडिकल कैंप लगाते दिखाई देते हैं।उनका मानना है कि बेहतर स्वास्थ्य कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि सबका अधिकार होना चाहिए।

हाल ही में 16-17 अक्टूबर को ओखला में अज़ीम डेयरी चौपाल पर डॉ खान ने ‘आवाम-ए-ओखला’ के साथ मिलकर मुफ्त मेडिकल कैंप का आयोजन किया। वह आगे भी ओखला के अंदर ऐसे मेडिकल कैंप लगाते रहेंगे। मैं खुद उस मेडिकल कैंप में डॉ खान के साथ रहा। डॉ खान बच्चों के साथ हंसते खेलते उनका इलाज करते नज़र आए। 9 महीने की हवालात भी उनके चेहरे से हंसी और दिल से जुनून छीन नहीं पाई।

एक बात तो तय है कि डॉ कफील खान ने सारा ज्ञान सिर्फ किताबों से हासिल नहीं किया है। जब एक सरकार अपनी पूरी मशीनरी के साथ आपको फंसाने की कोशिश कर रही हो तब आप आम जनता के स्वास्थ्य के बारे में सोचें, यह मेडिकल की किसी किताब में नहीं लिखा होगा।

बिहार बाढ़ के दौरान निशुल्क इलाज करते डॉ कफील खान, फोटो साभार- Dr Kafeel khan Twitter

योगी सरकार ने भी नहीं सोचा होगा कि सत्ता के हथियारों से घायल होने के बावजूद एक डॉक्टर उनके सामने आला लेकर सर उठा कर खड़ा हो जाएगा। सरकारों को इस आला से डरना चाहिए जो हाथों पर हथकड़ी लगने के बावजूद गले का साथ नहीं छोड़ता।

योगी सरकार की हथकड़ी के जवाब में डॉ कफील खान का आला है। योगी सरकार की तानाशाही के जवाब में डॉ कफील खान की हंसी है। योगी सरकार ने चिकित्सा से डॉ कफील खान को निकाल दिया लेकिन डॉ कफील खान से चिकित्सा को नहीं निकाल पाई।

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