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भारत में हर साल भूख के कारण 10 लाख बच्चों की मौत होती है

विश्व बैंक की मानव विकास रिपोर्ट जारी हुई है, जिसमें भारत का असली प्रतिबिंब सामने आया है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में 18 साल से कम उम्र के करीब 44 करोड़ बच्चे हैं। यानी कि एक तिहाई आबादी बचपन की अवस्था में है। यह कैसा बचपन है, उसका आईना भी इस रिपोर्ट में है।

बच्चों के हालात बेहद भयावह

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 14 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं, जो खनन, कपड़ा व धातु उद्योग जैसे खतरनाक कार्यों को भी करने का जोखिम उठाते हैं और सबसे दुःखद पहलू यह है कि कुल जीडीपी में 11% योगदान बाल श्रम का है।

10 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिन्हें स्कूल तक नसीब नहीं है। जिन बच्चों को स्कूल में किसी तरह दाखिला मिल जाता है, उनमें 100 में से 32 ही स्कूली शिक्षा पूरी कर पाते हैं। विडंबना यह है कि 21वीं सदी के भारत के ये बच्चे वंचित समुदायों के हैं।

 

1 से 6 साल तक के कुल 2.3 करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। 6 साल से बड़े बच्चों के स्वास्थ्य की रिपोर्ट नहीं दी गई, नहीं तो इनकी हालत भी कोई बेहतर नहीं है। कमज़ोर बच्चे बीमारियों की गिरफ्त में आकर मर जाते हैं। इस बात के आंकड़े भी कम बुरे नहीं है।

हर साल 10 लाख बच्चे कुपोषण से मर जाते हैं। यह हाल तब है जब राष्ट्रीय स्तर पर करीब 8500 गैर सरकारी संगठन इस दिशा में वर्षों से काम कर रहे हैं। 400से ज़्यादा ज़िलों में चाइल्डलाइन के माध्यम से बच्चों की मदद का दावा किया जा रहा है। काश मुज़्ज़फरपुर और देवरिया के बच्चों की चीखें इनके कानों तक पहुंच पाती।

बजट के मायने में पिछड़े हैं हम

भारत में रक्षा बजट 13% है और स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी निवेश जीडीपी के 1.5% से भी कम है। अमेरिका में यह जीडीपी का 18 फीसदी व ब्रिटेन का 10 फीसदी है। भारत मे दवाईयां दुनिया के देशों से 30% महंगी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के हिसाब से प्रति 1000 नागरिकों पर एक डॉक्टर होना चाहिए और भारत मे प्रति 1300 नागरिकों पर एक डॉक्टर है। डॉक्टर वितरण की व्यवस्था इस अभाव को और बढ़ा देती है। 70% डॉक्टर शहरों में है और करीब 65 फीसदी आबादी गाँवों में बसती है।

भारत के खज़ाने में पूंजी की कोई कमी नहीं है बल्कि नीति व नीयत की भारी कमी है। नागरिक भूख व बीमारियों से मर रहे हैं और सरकार बुलेट ट्रेन, तेजस ट्रैन पर आमादा है, स्टेचू निर्माण पर हजारों करोड़ फूंके जा रहे है, सरकार मंदिर निर्माण की जंग लड़ रही है और सरकारी पैसों से रावण फूंके जा रहे हैं।

4 साल बाद आज टीवी खोला तो मंदिर-मस्जिद पर वे ही पंडित-मौलवी लड़ते नज़र आए, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान को गालियां देने वाले रिटायर्ड जनरल-कर्नल चीखते हुए नज़र आए।

देश ऊंची इमारतों से, ऊंची मूर्तियों, चौड़ी सड़कों, पुलों, मंदिर-मस्जिदों से नहीं, देश नागरिकों से बनता है। नागरिक बनाने के लिए बचपन को संवारना पड़ता है। भारत का बचपन तड़प-तड़प कर मर रहा है तो भविष्य कैसे बन पायेगा?

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