एक विचार वायरस की तरह संक्रामक होती है। एक विचार का सबसे छोटा बीज भी आपके अंतर्मन में विकसित हो सकता है। यह विकसित होकर आपको परिभाषित या नष्ट कर सकता है।
– क्रिस्टोफर नोलन (इन्सेप्शन)
कभी-कभी लगता है सपनों के भीतर एक सपना और उस सपने के भीतर भी एक सपना देख रहा हूं, बिल्कुल क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म इन्सेप्शन की तरह। बस मेरा टोटम कहीं गुम गया है, या अब तक वह अपनी धुरी से हटने का फैसला किए बिना सपने और हकीकत के दरमियान किसी जगह पर चक्कर काट रहा है।
मेरे अंतर्मन में बहुत सारे चोर घुस आए हैं पर वे इस बार कुछ चुराने नहीं आए हैं, वे आए हैं लठैत की तरह अंतर्मन में घुसकर, मेरे भीतर मौजूद विचारों का रूपांतरण उनके विचारों की तरह करने के लिए। मेरे विचारों की गतिशीलता को मुझसे जबरन छीनकर एक गतिरोध की स्थिति का निर्माण कोई करना चाहता है। इस गतिरोध का सबसे अहम पहलू है, प्रचलित मत पर बिना कोई उंगली उठाए उसे सहज स्वीकार कर लेना। वे आए हैं अपने विचारों का आधिपत्य मेरे भीतर जमाकर मेरी बाहर की वास्तविकता को बदलने।
धारण को वास्तविकता में बदलने की कला, जिसे हमने नोलन की फिल्म इन्सेप्शन में देखा था, वह अब महज़ एक साइंस फिक्शन नहीं बल्कि हकीकत बन चुकी है। हमारे इर्द-गिर्द मौजूद कॉरपोरेट द्वारा संचालित संचार तंत्र, चोरों की भूमिका हमारे जीवन में बखूबी निभा रहे हैं। संचार तंत्र का सारा ढांचा निरंकुश सत्ता और उनके क्रोनी का पिछलग्गू बन चुका है, जिनका काम हमारी चेतना में घुसपैठ कर हमारे भीतर प्रतिक्रियावाद का सृजन करना है।
कोई आंतरिक दुश्मन हमारे मुल्क में मौजूद है, उसका एक निश्चित कौम है, जिसकी वफादारी सरहद के पार लोगों से है और उस कौम में बाकी मज़हबों के लिए कोई सहिष्णुता शेष नहीं है।
टीवी डिबेट्स में एक मौलवी और हिन्दू धर्मगुरुओं के बीच रोज़ होने वाली मज़हबी बहसें एवं सोशल मीडिया पर तैरते मिम्स द्वारा यह विद्वेषपूर्ण विचार दर्शकों के मन में सफलतापूर्वक स्थापित किए जाते हैं। ऐसी ही बहसों और प्राइम टाइम कार्यक्रमों की कतारें जिन बातों को मूलतः दिखाते हैं, उनमें ये दो बातें मुख्य रूप से शामिल हैं-
- लोकतांत्रिक तरीकों से इन आंतरिक शत्रुओं पर नियंत्रण प्राप्त करना असंभव है, इसलिए भीड़ की ज़रूरत होती है। एक बहुसंख्यक आबादी के सामने शूर वीरता की मिसाल कायम करने और शत्रुओं को दीर्घकालिक सबक सिखाने के लिए।
- इस आंतरिक शत्रुओं पर काबू पाकर और बहुसंख्यकों के शर्तों पर ज़िंदा रहने की शर्त को लागू कर ही मुल्क में सुरक्षा का माहौल कायम हो सकता है, यह विचार विस्तृत आबादी के मन में गढ़ना ही हमारे आज के अंतर्मन चोरों का धर्म है।
स्थिति जटिल तब हो जाती है जब यह डिजिटल लठैत इतिहास और मिथक में मौजूद विभिन्न किरदारों का इस्तेमाल अपनी बात को स्थापित करने के लिए करते हैं। शिवाजी, पृथ्वीराज चौहान का इस्तेमाल एक कौम को खलनायक दिखाने के लिए कितना उपयुक्त बन जाता है।
मज़हबी दंगे, धार्मिक उन्माद, मॉब लिंचिग जिसकी परिणीति एक विस्तृत नरसंहार की तरफ मानवता को आकर्षित करती है, वह ऐसे ही विचारधारा का आम जन के बीच सहज स्वीकारिता से मुकम्मल होता है। विचारों का ईश्वरिकरण बहुसंख्यक तबके को एक सुनिश्चित प्रतिक्रियावाद की ओर ढकेल देता है और फांसीवाद की ज़मीन इस परस्थिति के बिल्कुल अनुकूल बन जाती है।
इस फिल्म के समानांतर जो घटनाएं समाज में घटित हो रही हैं, जहां झूठ पर आधारित धारणा को संचार माध्यमों द्वारा वास्तविकता में तबदील कर एक आम जन सहमति का निर्माण कार्य चल रहा है, तब इस फिल्म के एक पहलू पर मैं रौशनी डालना चाहूंगा,
वास्तविकता और सपनों के दरमियां फर्क उन सपनों के देखने वाले लोगों के पास मौजूद एक टोटम से होता है।
यह कहना ना होगा कि पोस्ट ट्रूथ युग (post truth era) में आज जो झूठ पर आधारित धारणा स्थापित है, सत्य से उसकी पृथकता को पहचानने का कोई औजार (टोटम) हमारे पास मौजूद ही नहीं है। तथ्यात्मक ज़मीन पर अगर मैं इस धारणा और वास्तविकता में फर्क करूं तो, मेरा टोटम होगा भगत सिंह के विचार, जिसे उन्होंने अपने लेख “साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज” में लिखा है।
यह समूर्ण लेख ही हर हिंदुस्तानी जन मानस को फिरकापरस्त सियासत से मुक्त कर वास्तविकता से रूबरू करने के लिए लिखा गया एक बेहतरीन दस्तावेज़ है, जिसका एक छोटा सा अंश मैं नीचे साझा कर रहा हूं।
लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की ज़रूरत है। गरीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि उनके असली दुश्मन पूंजीपति हैं। तुम्हें इनके हथकंडों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़कर कुछ ना करना चाहिए। संसार के सभी गरीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हो अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताकत अपने हाथों में लेने का प्रयत्न करो। इन यत्नों से तुम्हारा नुकसान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी जंज़ीरें कट जाएंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी।