Site icon Youth Ki Awaaz

भारत में 70 फीसदी महिलाएं रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन से पीड़ित हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

देश में एक तरफ जहां महिला सशक्तिकरण की बात होती है, वहीं दूसरी ओर माहवारी की बात आते ही हर तरफ खामोशी छा जाती है। हाल में ही आई फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रक एंड गाएनाकोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एफओजीएसआई) की रिपोर्ट के अनुसार आज भी माहवारी के दौरान सिर्फ और सिर्फ 18 फीसदी महिलाएं ही सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। बाकी 82 फीसदी महिलाएं आज भी कपड़े, राख, पत्तियां और पॉलीथीन का प्रयोग करती हैं।

ये बेहद डराने वाले आंकड़े हैं। लोग माहवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। इसलिए महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर जैसे रोगों में बढ़त दर्ज़ की जा रही है। करीब 70 फीसदी महिलाएं रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन से  पीड़ित हैं।

यहां एक बात ध्यान देने वाली यह भी है कि माहवारी को नज़रअंदाज़ करने पर बाद में इसके दुष्परिणाम से गुज़रना पड़ सकता है। महिलाओं को समझने की ज़रूरत है कि उनसे ज़्यादा उनके स्वास्थ्य को कोई और नहीं समझ सकता है। इसलिए माहवारी को लेकर जागरूकता बहुत आवश्यक है। खुद ही नहीं, बल्कि आस-पड़ोस की महिलाओं को भी इसके प्रति जागरूक करिए। यह हर एक महिला के जीवन का सवाल है इसलिए इसे हल्के में ना ही लें तो अच्छा है।

बार-बार एक ही कपड़े का प्रयोग करना खतरनाक हो सकता है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

स्थिति इतनी खराब है कि अधिकांश महिलाओं को पहली दफा पीरियड्स के दौरान ही इस बारे में जानकारी मिलती है। मतलब इससे पहले उनको यह नहीं पता होता कि आखिर माहवारी किस चिड़िया का नाम है?

माहवारी की शुरुआत होने के बाद अधिकतर लड़कियां स्कूल जाना बंद कर देती हैं और कुछ तो पढ़ाई भी बंद कर देती हैं। इन चीज़ों को देखते हुए ही सरकार ने स्कूलों में फ्री सैनिटरी पैड का वितरण शुरू किया ताकि माहवारी के दौरान लड़कियां कम-से-कम स्कूल ना छोड़ें।

कई महिलाओं के पास सैनिटरी पैड खरीदने के लिए पैसे तक नहीं होते हैं। यही वजह है कि माहवारी के दौरान महिलाएं एक ही कपड़े को बार-बार यूज़ करती हैं, जिससे इंफेक्शन होने का खतरा होता है।

महिलाओं को इस बात से अवगत कराना बेहद ज़रूरी है कि माहवारी के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखते हुए वे खुद को बीमारियों से बचा सकती हैं। स्वस्थ एवं खुश रहने के लिए उनको इस बात को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। माहवारी के दौरान की गई लापरवाही ही कई दफा महिलाओं में गंभीर रोगों का कारण बनती है।

हर महिला को माहवारी के लिए जागरूक करना आवश्यक है। अधिकांश गाँव की महिलाओं को जानकारी नहीं होती है और वे शर्म की वजह से इस विषय पर बात नहीं करती हैं। इस झिझक और डर को ही खत्म करने की आवश्यकता है। जब तक खुलकर बात नहीं होगी, तब तक समस्या का समाधान कैसे होगा?

यह बात मत भूलिए कि यह जीवन एक बार मिलता है इसलिए इसको अपनी छोटी-छोटी भूल से मत गवाइए। खुद जागरूक रहिए और अपने आस-पास के लोगों को भी जागरूक रखिए। कुछ महिलाएं आज भी इसे अपवित्रता की संज्ञा मानती हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि माहवारी उनके जीवन को एक नई दिशा देती है, जिससे वे अपने जीवन में नए-नए मुकाम हासिल करती हैं।

Exit mobile version