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क्या 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य को हम पूरा कर पाएंगे?

फोटो साभार- सरताज आलम

फोटो साभार- सरताज आलम

भारत में कोयला सबसे महत्वपूर्ण और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने वाला जीवाश्म ईंधन है। भारत में ऊर्जा का 55% हिस्सा कोयला से ही पूरा होता है और भारत की इंडस्ट्री का इतिहास इसी कोयले पर टिका हुआ है। तो सबसे पहले यह जान लेते हैं कि कोयला क्या है और यह किन-किन रूपों में पाया जाता है?

आमतौर पर कोयले को लेकर कहा जाता है कि लकड़ी जलाने के बाद उनके अंगारों को बुझाने से जो काला-काला हिस्सा बचता है, उसे ही कोयला कहा जाता है। हालांकि, कोयले की परिभाषा सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। कोयला एक खनिज पदार्थ है, जिसमें मुख्यत: कार्बन तत्व होता है और यह दुनियाभर में मौजूद खदानों से निकाला जाता है। औद्योगिक ईंधन का एक महत्वपूर्ण साधन होने के साथ-साथ कोयला विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्रोत भी है।

कोयले की विभिन्न किस्में

फोटो साभार- Flickr

कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला चार प्रकार का होता है, जो निम्नलिखित हैं

1. पीट कोयला: इसमें कार्बन की मात्रा 25-40% तक होती है और इसे जलाने पर अधिक राख व धुआं निकलता है। इसे सबसे निम्न कोटि का कोयला माना जाता है और यह कोयला स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक हानिकारक माना जाता है।

2. लिग्नाइट कोयला: इसमें कार्बन 40-55% तक होता है। भूरे रंग के इस कोयले में जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है। इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। राजस्थान, लखीमपुर (असम) और तमिलनाडु में इसके भंडार हैं।

3. बिटुमिनस कोयला: इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है, जिसमें कार्बन की मात्रा 60-80% तक होती है। इस कोयले का इस्तेमाल अधिकतर घरेलू कार्यों में होता है। इस प्रकार के कोयले का उपयोग भाप तथा विद्युत संचालित ऊर्जा के इंजनों में होता है।

इस कोयले से कोक का निर्माण भी किया जाता है। इस तरह के कोयले के भंडार झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हैं।

4. एंथ्रासाइट कोयला: यह कोयले की सबसे उत्तम कोटि का कोल होता है, जिसमें कार्बन की मात्र 80-95% होती है। इसे जलाने पर नीली लौ निकलती है और इस तरह का कोयला जम्मू-कश्मीर में बहुत कम मात्रा में पाया जाता है।

भारत में वाणिज्यिक कोयला खनन का इतिहास

कोल माइनिंग। फोटो साभार- Flickr

कोयला मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में वाणिज्यिक कोयला खनन का इतिहास लगभग 220 वर्ष पुराना है और इसकी शुरुआत दामोदर नदी के पश्चिमी तट पर स्थित रानीगंज कोलफील्ड में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1774 को की गई थी। हालांकि, 1853 में वाष्पचालित ट्रेन के आने से पहले तकरीबन एक दशक तक कोयला खनन का विकास काफी धीमा रहा।

ट्रेन के आने से इसका औसतन उत्पादन बढ़कर 1 मीट्रिक टन हो गया, जो 1900 में 6.12 मीट्रिक टन प्रति वर्ष और 1946 में 30 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष पहुंच गया। Statista.com के रिकॉर्ड के मुताबिक, भारत में वित्त वर्ष 2019 में 606.89 मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन हुआ जबकि वित्त वर्ष 2009 में यह आंकड़ा 403.73 मीट्रिक टन था।

गोंडवाना युगीन चट्टानों में मिलता है कोयला उत्पादन का सर्वाधिक हिस्सा

गोंडवाना कोयला उच्च श्रेणी का होता है जबकि टर्शियर कोयला घटिया श्रेणी का होता है। गोंडवाना युगीन चट्टानों के कोयले में कार्बन की मात्रा 70-85% तक होती है जबकि टर्शियर कोयले (ब्राउन कोल) में गंधक की प्रचुरता होने के कारण इसका इस्तेमाल उद्योगों में नहीं किया जा सकता है।

देश में कुल कोयले के उत्पादन में टर्शरी कोल की मात्रा सिर्फ 2% ही है। गोंडवाना कोयला कार्बनीफरस पीरियड या कार्बन युग (57 करोड़ से 24.5 करोड़ साल पहले) का है जबकि टर्शियर कोयला ऑलेगेसीन पीरियड या आदिनूतन युग (1.5 से 6 लाख साल पहले) का है। इस तरह का कोयला सर्वाधिक राजस्थान, गुजरात और असम में पाया जाता है।

प्रभात खबर में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक,

बिजली उत्पादन और कोयले का संबंध

कोल पावर प्लांट। फोटो साभार- Flickr

बीबीसी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अभी 1,70,000 मेगावाट से अधिक बिजली का उत्पादन होता है। जबकि 1947 में आज़ादी के वक्त यह आंकड़ा 1362 मेगावाट था। हम बिजली उत्पादन के लिए किस कदर कोयले पर निर्भर हैं, यह इस बात से चलता है कि बिजली उत्पादन का अधिकांश हिस्सा (60% से भी ज़्यादा) कोयला और भूरा कोयला (लिग्नाइट) से पैदा होता है।

वहीं, देश में जल विद्युत परियोजनाओं से तकरीबन 22% बिजली का उत्पादन होता है। भारत में कोयले का उत्पादन भी लगातार बढ़ रहा है। भारत में हर साल प्रति व्यक्ति बिजली की खपत में 7% की बढ़ोतरी हो रही है। हमारी ऊर्जा की ज़रूरतें कोयले पर बहुत अधिक निर्भर हैं।

कोयले के बढ़ते इस्तेमाल का परिणाम है कि भारत में वित्त वर्ष 2019 में 606.89 मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन हुआ। जबकि 1946 में 30 मीट्रिक टन था। Statista के आंकड़ों के मुताबिक, 2015 में भारत ने कोयला खपत के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया था।

वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो दुनियाभर में सबसे ज़्यादा कोयले की खपत चीन में होती है। वहीं, इस मामले में भारत दूसरे और अमेरिका तीसरे नंबर पर है।

द कार्बन ब्रीफ प्रोफाइल: भारत के मुताबिक, साल 2000 के बाद से कोयला उत्पादन में 3 गुना तक वृद्धि हुई है और 2017 में भारत में 80% बिजली का उत्पादन कोयले के इस्तेमाल से हुआ।

आकड़ों की बात करें तो भारत में जनवरी 2019 तक 221 गीगा वाट्स के कोयला प्लांट्स थे, जो सुचारू रूप से चल रहे हैं। सरकारी अनुमान में बताया गया है कि 2027 तक यह क्षमता बढ़कर 238 GW हो जाएगी। हालांकि, अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि भारत में कोयला प्लांट किस हद तक जाएंगे।

एक तरफ चीन कोयले के इस्तेमाल की सीमा को पार कर चुका है, तो क्या भारत भी उसी राह की ओर बढ़ रहा है? भारत की बढ़ती कोयले की मांग से संबंधित अनुमानों को बार-बार बदला गया है। यहां यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि झारखंड, छत्तीसगढ़ समेत भारत के कुछ राज्यों को कुल राजस्व का आधा हिस्सा कोयले से ही प्राप्त होता है।

विदेश से भी कोयले का आयात करता है भारत

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कोयले के निर्माण और आयात के मामले में भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पास 98 अरब टन का कोयला रिज़र्व है, जो दुनिया के पास मौजूद कोयले का 9.5% है। कोयला रिज़र्व के मामले में भी भारत, चीन के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत कोयले का आयात इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से करता है। अभी ऑस्ट्रेलिया में कोयले के लिए अडाणी ग्रुप की खदान खोली जानी है जिसका वहां काफी विरोध हो रहा है।

कोयला उत्पादन का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव

इस बात से कोई नहीं नकार सकता कि कोयला उत्पादन ने राष्ट्र के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कोयले के कारण ही आज देश के कई उद्योग और विद्युत आपूर्ति हो रही है। अगर देश में कोयला ना हो तो हम सबको बिजली ही नहीं मिलेगी।

बॉलीवुड में भी कोयले को लेकर काला पत्थर, कोयलांचल, गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी कई फिल्में बनी हैं। देश की कई खदानों में कोयले के अत्यधिक खनन से एक गोफ क्षेत्र तैयार हो गया है, जो वहां काम कर रहे मज़दूरों के लिए कब्रगाह बनता जा रहा है। पिछले साल ही मेघालय में कई मज़दूर खदान में फंस गए थे।

कोयला खनन के परिणामस्वरूप कोलकर्मियों में न्यूमोकोनिओसिस, उच्च रक्तचाप, हृदय/फेफड़ों के रोग, गुर्दे की बीमारी जैसे कई रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अगर न्यूमोकोनिओसिस की बात करें तो यह मुख्यतया फेफड़ों में कोल डस्ट के जमा होने के कारण होता है।

आज भी कोयला खदानों में होने वाले विस्फोटों के कारण उनके आसपास रहने वाली आबादी को भी काफी खतरा होता है। इन धमाकों से लोगों के घरों की दीवारों में दरार तक आ जाती है। काला पत्थर फिल्म में भी यह दिखाया गया है कि किस तरह कोयले के खनन के लिए सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर खुदाई की जाती है और उसके कारण नदी का पानी खदान में भर जाता है जिससे कई मज़दूरों की जान चली जाती है।

चीन और अमेरिका के बाद भारत ग्रीन हाउस गैस (GHGs) का उत्सर्जन करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है और इसमें सबसे बड़ा योगदान कोयले से संचालित पावर प्लांट्स और उद्योगों का है। हालांकि, अगर कार्बन उत्सर्जन के मामले में विश्व के औसत से तुलना‌‌ की जाए तो भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन औसत काफी कम है।

2015 में भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन की मात्रा 2.7tCO2e थी, जो अमेरिका से 7 गुना कम और दुनिया के औसत (7.0tCO2e) से आधी थी। ऊर्जा के लिए कोयले का इस्तेमाल करते वक्त हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि पेरिस जलवायु समझौते पर भारत ने हस्ताक्षर किया है। समझौते में भारत ने इस बात के लिए हामी भरी है कि वह 2005 के मुकाबले 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 33 से 35% कमी लाएगा।

भारत सरकार इसके लिए प्रयासरत भी है और उसका लक्ष्य है कि वह 2030 तक इंस्टॉल की गई 40% बिजली क्षमता को अक्षय ऊर्जा अथवा परमाणु ऊर्जा में तब्दील कर देगा। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के मुताबिक, 2030 में भारत की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता 2005 के‌ मुकाबले 50% कम होगी जो तय लक्ष्य (33-35%) से काफी आगे होगी।

कोयले के ऊपर निर्भरता घटाने के लिए भारत लो-कार्बन एनर्जी की तरफ बढ़ रहा है। 2017 में 11% बिजली नवीकरणीय स्रोतों से मिली जिसमें हाइड्रोपावर की 9.5 % बिजली भी शामिल है। इंटरनैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबल डेवलेपमेंट (आईआईएसडी) के मुताबिक, अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने ‌के लिए 2014 में $43.1 करोड़ की सब्सिडी दी गई थी जो 2016 में बढ़ाकर $1.4 अरब हो गई।

वहीं, दुनियाभर में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भारत इंटरनैशनल सोलर अलायंस का भी नेतृत्व कर रहा है। आशा है कि भारत में परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की अपेक्षा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली बनेगी और प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन कम होगा।

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