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सिर्फ ‘बाला’ नहीं ‘गॉन केश’ में भी है गिरते बालों और खोते हुए आत्मविश्वास की कहानी

सामाजिक मुद्दों पर बनी मधुर भंडारकर की फिल्म फैशन, जिसमें फैशन जगत की चकाचौंध में मानवीय मूल्यों के अस्तित्व पतन को दिखाया गया है। आर बाल्की की फिल्म पैडमैन, जिसमें महिलाओं के पीरियड्स के बारे में बताया गया है, जिसे आज तक हमारे समाज में एक टैबू की तरह देखा जाता है। मूवी में बताया गया है कि पीरियड्स कोई सामाजिक कुरीति नहीं है, बल्कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो हर महिला की ज़िंदगी का हिस्सा है।

श्री नारायण सिंह की फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा जो की स्वयं की स्वच्छता और ओपन डिफेक्शन जैसे सामाजिक मुद्दों से रूबरू करवाती है। ऐसी  मूवीज़ की फेहहिस्त में अब एक और नाम जुड़ गया है। वह है कासिम खवालो की ‘गॉन केश’ जो एक मेडिकल डिसऑर्डर एलोपीसिया पर आधारित है।

इस मेडिकल डिसऑर्डर में अचानक हमारे सिर के बाल झड़ने लगते हैं। इस मूवी में बताया गया है कि हमें ज़िंदगी की चुनौतियों से डरना नहीं चाहिए बल्कि उनसे हमें सबक लेना चाहिए।

फिल्म गॉन केश का पोस्टर , फोटो साभार – सोशल मीडिया

एलोपीसिया से ग्रस्त इनाक्षी की कहानी

दुनिया में सबको कुछ ना कुछ कमी है, मगर कमियों को मिलाकर ही ज़िंदगी बनती है। “मैं जैसी हूं वैसी ही हूं”, निर्देशक कासिम खालो की फिल्म गॉन केश में यह डायलॉग फिल्म की नायिका बोलती है। यही इस फिल्म की जान है। इसमें बताया गया है कि आप जैसे हैं, वैसे ही खूबसूरत हैं। उसके लिए आप को बाहरी दुनिया के दिखावे की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ज़िंदगी की खुशियां आप से है, बालों से नहीं।

एक दिन फिल्म की नायिका ( इनाक्षी) को पता लगता है कि वो मेडिकल डिसऑर्डर एलोपीसिया से ग्रस्त है। जिसमें रोगी के सिर के बाल अचानक झड़ने लग जाते हैं और इतने झड़ जाते हैं कि इनाक्षी गंजी हो जाती है। आखिर में इनाक्षी खुद को अपनी एवं समाज की नज़रों में स्वीकार करवाती है।

ये फिल्म पश्चिम बंगाल के एक छोटे से कस्बे सिलीगुड़ी की इनाक्षी दासगुप्ता (श्वेता त्रिपाठी) की कहानी है। जो की अपने माता-पिता के साथ रहती है। जिनका सपना है कि वह अपनी लाडली बेटी की शादी धूमधाम से करे। समस्या तब शुरू होती है, जब इनाक्षी के बाल धीरे-धीरे झड़ने लगते हैं और धीरे-धीरे करते हुए इतने बाल झड़ जाते हैं कि इनाक्षी गंजी हो जाती है।

फिल्म का टर्निंग प्वाइंट

इनाक्षी के माता-पिता उसके बालों के इलाज के लिए शहर भर के डॉक्टर्स को दिखाते हैं लेकिन कोई फायदा नहीं मिलता है। अपने स्कूल कॉलेज में तानों-उलाहनों एवं डॉक्टर्स के ट्रीटमेंट के बीच इनाक्षी एवं उसके माता-पिता को पता चलता है कि वह मेडिकल डिसऑर्डर एलोपीसिया से ग्रस्त है। जिसमें रोगी के सिर के बाल अचानक झड़ने लग जाते हैं।

इसी बीच एक डॉक्टर की सलाह पर स्ट्राइड उपयोग करने की सलाह दी जाती है। जिससे उसके सिर के बाल तो आ जाते हैं लेकिन साथ में ढाढ़ी मूंछ भी आने शुरू हो जाते हैं। इसलिए इनाक्षी अपने गंजे होने के डर को छुपाने के लिए एक हेयर विग का उपयोग करती है।

इनाक्षी की ज़िंदगी में उसके स्कूल के क्रश सुजॉय (जितेंद्र कुमार ) का आना और उस का डांसर बनने का सपना उसकी ज़िंदगी को बदलने में एक महत्वपूर्ण टर्निग पॉइंट होता है। इस टर्निग पॉइंट के बाद इनाक्षी एवं उस के माता पिता की ज़िंदगी में क्या बदलाव आते हैं, इसके लिए आप को यह फिल्म देखनी होगी।

कासिम खालो की यह फिल्म डर पर अपने आत्मविश्वास से विजय प्राप्त करने,समाज के अवास्तविक सौंदर्यता के मानकों को मिटाने, समाज को बाहरी चकाचौंध से इतर वास्तविकता का आइना दिखाने एवं माता पिता एवं बच्चों के खूबसूरत बंधन की दिल को जीतने वाली कहानी है।

मूवी देती है एक खूबसूरत संदेश

मूवी यहां यह कहती हुई खत्म होती है कि ज़िंदगी सिर के बालों  के लिए नहीं है, ये आप के लिए है। ज़िंदगी की खुशियां आपसे है, बालों से नहीं। इस मूवी के साथ इस बीमारी से पीड़ित हज़ारों उन लोगों की जीत है तथा उनके लिए एक प्यार भरा सन्देश है।

श्वेता ने इनाक्षी के किरदार को बिलकुल अच्छी तरह निभाया है। श्वेता एकदम किरदार में फिट बैठी हैं, उन्होंने अपना मानसिक अवसाद, गुस्से का चित्रण बखूबी किया है। सुजॉय के रूप में जितेंद्र कुमार सक्षम और आकर्षक हैं। वह एक यथार्थवादी प्रदर्शन के साथ श्वेता का समर्थन करते हैं।

माता-पिता के रूप में विपिन शर्मा और दीपिका अमीन ने सहज अभिनय किया है। रेयर बीमारी से पीड़ित माता-पिता के रूप में उन्होंने अपने किरदार की परतों को खूब जिया है। जितेंद्र कुमार (टीवीएफ वाले) ये और श्वेता त्रिपाठी की ऑन स्क्रीन केमिस्ट्री और इस बीमारी से पीड़ित लोगों के साहस के लिए मूवी देख सकते हैं ।

बैनर  -धीरेन्द्र नाथ घोष फिल्म्स

निर्माता   -कासिम खवालो

कलाकार- श्वेता त्रिपाठी ,जितेन्द्र कुमार ,विपिन शर्मा ,दीपिका अमीन ,बिजेंद्र काला

सेंसर सर्टिफिकेट -यूए * 1 घंटा 60 मिनट

रेटिंग – 3 */5

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