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देश के कुपोषित बच्चों के साथ हम कैसे देश की कल्पना कर रहे हैं?

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आप और हम जिस समाज में रहते हैं, वहां पर हर एक मुद्दे पर राजनीति होती ही रहती है। राजनीति में सियासतदान नए- नए मुद्दे लाते रहते हैं लेकिन यह उन्हीं का कमाल है कि जो मुद्दा आ गया समझो कि वह इतनी आसानी से खत्म होने वाला नहीं है और ना ही वह उसको कभी पुराना ही होने देते हैं।

मंहगाई, बेरोज़गारी, बाल अधिकार, अशिक्षा, भिक्षावृत्ति और ना जाने कितने मुद्दे हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि यह कल की बात है लेकिन ऐसा नहीं है। हमारे राजनेता लोग वर्षों से इन्हीं मुद्दों पर चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- pixabay

स्कूल की बजाय बच्चे सड़क पर

आज सुबह की ही बात है। गाँव में भीख मांगने आए युवक को देखकर इतना आश्चर्य नहीं हुआ, जितना की उसके साथ उसके बच्चे को देखकर हुआ।

सवाल उठता है क्यों? सवाल लाज़िमी भी है क्योंकि, उसके साथ जो उसका बच्चा था। वह तथाकथित रामराज (उत्तर प्रदेश) के सरकारी स्कूल की ड्रेस में था। जिस समय उसे स्कूल में होना चाहिए था। उस वक्त वह क्या कर रहा है? हाथ में पॉलिथीन पकड़े जिसमें किसी के द्वारा दिए पुराने कपड़े, जूते, कुछेक रोटियां थी और वह भीख मांग रहा है।

बेहतर शिक्षा के लिए लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं, जिससे कि उनके बच्चों का भविष्य बेहतर बन सके लेकिन ना जाने कितने बच्चे ऐसे हैं जो गली, मोहल्लों, सड़कों और गांवो में भीख मांगकर जीवनयापन करने को मजबूर हैं।

सूबे की सरकार का दावा है कि सूबे में रामराज है। जबकि सरकार एक लोककल्याण कारी सरकार होने के दायित्व का निर्वहन भी ठीक ढंग से नहीं कर पा रही है, जिसमें स्वयं की न्यूनतम ज़रूरतों को पूरा करने में अक्षम लोगों की मदद करना आदि कार्य शामिल होते हैं। जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके।

बच्चों में कुपोषण की समस्या

इसके अलावा प्रदेश भर में आंगनवाड़ी केंद्र है, जहां पर छोटे बच्चो को कुपोषण से बचाने के लिए तरह तरह के प्रोगाम चलाए जा रहे हैं। बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था के बावजूद कुपोषण के मामले में बिहार के बाद दूसरे नम्बर पर  अपना उत्तर प्रदेश काबिज़ हैं।

बिहार में 48.3 प्रतिशत बच्चे कुपोषित है जो देश में सबसे ज़्यादा है, तो उत्तर प्रदेश में 46.3 फ़ीसदी बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं।
मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि यदि इन संस्थाओं (आंगनबाड़ी, सरकारी स्कूलों) की गुणवत्ता मौजूदा समय में भी नहीं सुधरी, तो ये आंकड़ा और भी बढ़ सकता है।  जिसके लिए शासन और प्रशासन का उदासीन रवैया ज़िम्मेदार है और आगे भी होगा।

समय रहते यदि नहीं चेते तो कहीं ना कहीं स्थिति और बिगडे़गी। यदि देश का बचपन यानी कि नौनिहाल ही स्वस्थ और शिक्षित नहीं होंगें तो आप ही अनुमान लगा लीजिए आने वाले वर्षों में  देश का भविष्य क्या होने वाला है।

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