Site icon Youth Ki Awaaz

“हैदराबाद रेप केस के बाद हमारा इतना जल्दी नॉर्मल होना अजीब है”

28 नवंबर की सुबह खबर आई कि हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक  की जली हुई लाश मिली है। वह लड़की पास ही के एक गाँव में कार्यरत थी। स्कूटी से ही आना जाना करती थी। हुआ यूं उस रात स्कूटी एक सुनसान रास्ते पर पंचर हो गई। आस पास में बस ट्रक ही ट्रक खड़े थे। वह डर गई। छोटी बहन को फोन किया। बहन ने पास के टोल पर जा कर कैब करने को कहा। थोड़ी देर में फोन बंद हो गया और सुबह मिली जली हुई लाश।

क्या हुआ था किसी को नहीं पता सिवाय उस लड़की के। पुलिस ने मामले की जांच की और बताया कि पहले रेप हुआ है और फिर लड़की को ज़िंदा जलाया गया है। पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की मदद से कुछ ट्रक ड्राइवर और क्लीनरों को आरोपीयों के तौर पर पकड़ा। इन आरोपियों में  एक मुस्लिम और तीन हिन्दू शामिल थे।

 हर मामले को हिन्दू बनाम मुस्लिम ना बनाएं

वह दौर अजीब था। उस वक्त एक मुस्लिम आरोपी का नाम आते ही सोशल मीडिया पर कई बातें चलाई जाती हैं, कोई कहता है “भारत अगर हिन्दू राष्ट्र होता तो ये न होता”। कौन समझाए इनको की इस नफरत का चरस बौना बंद करें। हर मामले को हिन्दू बनाम मुस्लिम ना बनाएं। ऐसा करने से मेन मुद्दा कहीं छूट जाता है और बहस कुछ और ही रूप ले लेती है।

इन लोगों को चाहिए कि किसी की मार्मिक मौत की राख पर अपने एजेंडे की रोटी ना सेंके। अपराधियों का कोई धर्म नहीं होता है। उनको बस सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिए।

हम कौनसे समाज में जी रहे हैं, जहां पहले निर्भया कांड होता है, फिर उन्नाव और भी बहुत जो छूट गये हैं और फिर यह हैदराबाद। हर बार बस आरोपी बदलते हैं और कुछ नहीं, हर बार बस लड़की को ही मरना पड़ता है और आरोपी ज़िंदा बच ही जाते हैं।

लोगों को ज़्यादा कुछ फर्क पड़ नहीं रहा है

यह समाज का न्यू नॉर्मल है, जहां यह सब हो रहा है और लोगों को ज़्यादा कुछ फर्क पड़ नहीं रहा है। हमने एक निष्क्रिय समाज का निर्माण कर दिया है, जहां लोगों को इतना घिनौना मामला सामने आने पर भी अतिशयोक्ति नहीं होती हाहाहै। कोई बात तक नहीं करता घरों में इन सब पर। क्यों लोग सरकार से सवाल नहीं करते? क्यों यह कभी चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाता?

सरकार से सवाल करना चाहिए कि पहले वाले आरोपियों पर क्यों सख्त कार्रवाई नहीं हुई की कोई इतना घिनौना काम करने से पहले सोचे। हमें समाज के तौर पर ऐसे हैवानों को पहचान कर उन्हें मानवीय संवेदवाओं से अवगत कराया जाना चाहिए।

एक संवेदनशील समाज का निर्माण करे, जो फोन से इतर भी देंख पाएं। हमारे टीवी चैनल महाराष्ट्र के राजनीतिक नाटक के इतर कुछ दिखा नहीं पा रहे हैं। यह नाटक खत्म होते ही टीआरपी के लिए एक इमोशनल न्यूज़ लोगों के लिए परोस देंगे।

Exit mobile version