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GST से रेवेन्यू नहीं जेनरेट कर पाई सरकार

Nirmala sitharaman

केन्द्र सरकार ने पहली बार कर संग्रह में गिरावट की बात स्वीकार की है। जीएसटी काउंसिल ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर पिछले कुछ महीनों में जीएसटी कर संग्रह पर चिंता ज़ाहिर की है और संकेत दिए हैं कि राज्यों को मिलने वाली जीएसटी क्षतिपूर्ति रोकी जा सकती है। जीएसटी काउंसिल केन्द्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में गठित संवैधानिक संस्था है, जिसके सदस्य सभी राज्यों के वित्त मंत्री होते हैं।

विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्य पहले ही लगा चुके हैं आरोप

इससे पहले विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्य जीएसटी क्षतिपूर्ति में देरी पर सार्वजनिक बयान देकर केन्द्र पर पक्षपात का आरोप लगा चुके हैं। पीटीआई के मुताबिक मामले में कई राज्यों के वित्त मंत्रियों और प्रतिनिधियों ने जीएसटी के तहत राज्यों को मिलने वाली राजस्व क्षतिपूर्ति के भुगतान में हो रही देरी को लेकर केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात में चिंता ज़ाहिर की है। बैठक में दिल्ली, पंजाब, पुडुचेरी और मध्य प्रदेश के वित्तमंत्री तथा केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधि शामिल रहें।

पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने मुलाकात के बाद कहा है,

राज्यों को अगस्त और सितंबर की क्षतिपूर्ति नहीं दी गई है।

विपक्षी पार्टी के नेता दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा,

क्षतिपूर्ति कोष में पर्याप्त राशि नहीं होने जैसी भी स्थिति नहीं है, क्योंकि उपकर से करीब 50 हज़ार करोड़ रुपये जमा हुए हैं।

जीएसटी क्षतिपूर्ति राज्यों को नहीं हुई है जारी

इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक केन्द्र सरकार ने अगस्त-सितंबर की जीएसटी क्षतिपूर्ति राज्यों को जारी नहीं की है। जीएसटी एक्ट में राज्यों को जीएसटी की वजह से होने वाले राजस्व घाटे की क्षतिपूर्ति का भुगतान दो महीने के अंतराल पर करने का प्रावधान है।

आंकडों के मुताबिक,

क्या हो सकते हैं आगे के कदम

घटते राजस्व से निपटने के लिए केन्द्र सरकार जीएसटी से मुक्त सेवा और उत्पाद को कर के दायरे में ला सकती है और कुछ अन्य प्रोडक्ट को उच्च कर के दायरे में डाल सकती है। जीएसटी काउंसिल ने इस मामले में राज्यों से सुझाव मांगा है, इसमें जीएसटी से पहले की व्यवस्था की तरह कुछ लग्ज़री आइटम को 28 फीसदी से ऊपर के टैक्स स्लैब में भी रखा जा सकता है।

देश में आर्थिक सुस्ती के मद्देनज़र अप्रत्यक्ष कर के साथ-साथ अप्रत्यक्ष कर संग्रह भी निराशाजनक रहा है। अप्रैल-नवंबर के बीच कुल कर संग्रह में केवल पांच फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई और यह केवल सात लाख करोड़ रुपये पर सिमट गया। रिफंड को घटाने के बाद यह केवल 5.5 लाख करोड़ रह जाता है, यानी रिफंड के बाद कर संग्रह में केवल 0.7 फीसदी की वृद्धि हुई।

पिछले साल कुल कर वृद्धि दर 14 फीसदी थी और आम बजट में इसे 17.3 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन बिगड़े हालात में यह लक्ष्य दूर का चांद नज़र आता है।

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