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“मेरे गणतंत्र भारत में महिलाओं के लिए बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा हो”

26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वह दिन है, जिसने आज़ाद भारत की एक नींव में पहली ईंट का काम किया है। इसी दिन 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) 1935 को हटाकर, भारत का संविधान लागू किया गया था।

26 जनवरी के दिन को इसलिए चुना गया था, क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस  ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। 26 जनवरी 2020, भारत अपना 71वां गणतंत्र दिवस मनायेगा।

क्या है गणतंत्र का मतलब

गणतंत्र का मतलब है एक ऐसी व्यवस्था, जिसमें लोगों का शासन हो यानि जनता अपना प्रतिनिधि खुद चुने। शासन व्यवस्था को संचालित करने के एक कानूनी व्यवस्था हो।

मगर क्या सच में हम उन सब मापदंड को पा सके हैं, जो हमने 71 साल पहले तय किए थे? बेहतर देश, अच्छी राज्य व्यवस्था, अच्छा कानून, शिक्षा के बेहतर इंतज़ाम, बेहतर रोज़गार व्यवस्था, महिलाओं के लिए बेहतर सुरक्षा व्यवस्था?

आजकल देश के हालात बता रहे हैं कि इस व्यवस्था के हालात क्या हैं। JNU के, जामिया के हालात भी बता चुके हैं कि कानून व्यवस्था कैसी है। पिछले वर्ष के आकंडें बता रहे हैं, कि बेरोज़गारों ने सबसे ज़्यादा आत्महत्या की है।

महिलाओं की देश में स्थिति

शाहीन बाग की औरतें, जो अपने हक के लिए बैठी हैं वे बताती हैं कि महिलाओं के क्या हालात हैं देश इस में। पिछले दिनों उन्हीं औरतों को  सोशल मीडिया ने यह कहकर बदनाम किया है कि ये महिलाएं 500 रुपये देकर भीड़ में इकट्ठी की गई हैं। ये हालात हैं देश में औरतों के।

भारत वह देश है, जहां औरतें सुरक्षित नहीं हैं

मैं जबसे चीज़ें समझने लायक हुई हूं, तबसे मैंने बेहतरीन देश और बेहतरीन हालात की उम्मीद की है। ऐसा देश, जिसमें औरत सांस ले सके? क्या सच में भारत वह गणतंत्र है? नहीं, भारत वह देश है, जहां औरतें सुरक्षित नहीं हैं।

उन्नाव रेप केस याद है? कठुआ रेप केस? निर्भया रेप केस? हमें मेक इन इंडिया के ख्वाब दिखाए थे, याद हैं आपको चंद साल पहले विज़न 2020 के ख्वाब दिखाए गए थे, देखिए हम 2020 में हम कहां खड़े हैं?

जिस 26 जनवरी पर हम गीता और संजय चौपड़ा बहादुरी पुरस्कार देते हैं, उस 26 जनवरी पर हम निर्भया को इंसाफ भी नहीं दिला पाएं। देश अब भी रंगा बिल्ला और सेंगर जैसों के आतंक में गिरफ्तार है। क्या यह तन्त्र चाहा था हमने?

एक औरत होने के नाते अगर बात करूं तो देश को महज़ महिला दिवस पर इकट्ठा करके भाषण देने की बजाय उन तक पहुंचिए, जिन्हें ज़रूरत है आपकी। सोचिये जो आपका भाषण सुनने आ गईं, कहीं-ना-कहीं वे जागरूकता के पहले पायदान पर खड़ी हैं।

आपकी ज़रूरत उनको है, जो घर से निकलने की हिम्मत भी नहीं कर पार ही हैं या यूं कह लीजिए कि देश ने उनको ऐसा महौल दिया ही नहीं कि वे हिम्मत करके निकल सकें।

महिलाओं के अधिकारों की दिशा में किस पायदान पर हैं हम?

कहां हैं हम? देश में खुले में बच्चे को स्तनपान कराने पर उसकी तौहीन है, पीरियड्स के मुद्दे पर बात करने की आज़ादी नहीं, आज भी देश के अधिकांश सरकारी अस्पताल बिना सही व्यवस्था के लचर हालात में हैं, डिलवरी के लिए सारी सुविधा उपलब्ध नहीं हैं, मेरे आस-पास कितने ही केस ऐसे हैं, जिनमें जच्चा या बच्चा अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।

कितनी ही महिलाएं आज भी माहवरी से होने वाले रोग, बीमारीयों से जूझती नज़र आती हैं, जिनके लिए हम कुछ नहीं कर रहे हैं। पब्लिक टॉयलेट में पैड बदलने जाने पर या तो वे बंद होते हैं या फिर बिना सफाई के गंदे, बदहाल स्थिति में होते हैं।

विज़न 2020 में आर्थिक रूप से विकसित और सामाजिक रूप से खुशहाल देश की कल्पना रखी गई थी हमारे सामने। क्या हम सामाजिक रूप से खुशहाल हैं? बीते साल का हैदराबाद केस हमें बता कर गया है कि हम कितने सशक्त और खुशहाल हैं।

आने वाले इस गणतंत्र दिवस से बस  इतनी उम्मीद है कि सरकार हमें एक बेहतरीन भारत दें। बड़ी शर्म आती है जब बहन कि 7 साल की बेटी पूछती है कि मौसी लोग रेप क्यों करते हैं?

सांस लेने की, जीने की आज़ादी दीजिए। शासन बेशक जनता का ना चलाए मगर उज्जवल और सुरक्षित भारत का सपना हकीकत में बदलिए, क्योंकि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।

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