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हमारी पंतगबाज़ी का शौक मासूम पक्षियों की मौत की वजह बन रहा है

पहले के टाइम में लोग चिड़ियों की आवाज़ से उठते थे, चिड़ियों की आवाज़ को नवीन ऊर्जा का स्रोत माना जाता था। पक्षियों का मनुष्य के जीवन में अहम योगदान होता है। यदि धरा पर पक्षी ना हो तो जग सूना-सूना लागेगा लेकिन आज ऐसी स्थितियां पैदा हो रही हैं, जहां लोग पक्षियों की उड़ान में बाधा बन रहे हैं।

सन् 1956 में जब “पंछी बनू उड़ती फिरूं, मस्त गगन में” गीत आया था, तो क्या इसके गीतकार ने सोचा होगा कि एक दशक ऐसा भी आएगा जब मानवीय हस्तक्षेप के कारण इन ‘पंक्षियों’ की उड़ान संकट में होगी।

जब गीत आया “कबूतर जा जा जा”, वह वो दौर था जब कबूतर सही सलामत संदेश सही जगह पर पहुंचा दिया करते थे लेकिन आज डर यह है कि यदि एक बार कबूतर उड़ गया तो सही से अपने गंतव्य तक शायद ही पहुंच पाएगा। वजह, बीच में चाइनीज मांझे का जाल जो होता है। डर इस बात का होता है कि कहीं वह उस मांझे में वस काल के ग्रास में ना समा जाए।

क्या है चाइनीज़ मांझा

डोर से बने मांझे की जगह बाज़ार में चाइनीज मांझे ने धड़ल्ले से ले ली है। यह काफी धारदार होता है। डोर से बने मांझे से मज़बूत होने के साथ-साथ सस्ता भी होता। यह मांझा प्लास्टिक से बना होता है और इस पर लोहे का बुरादा लगा होता। लोहे का बुरादा लगा होने की वजह से बिजली के तार से टकराने पर करंट का भी खतरा होता है।

जी हां, आप सही पढ़ रहे हैं, इस ‘चाइनीज़ मांझे’ से जान भी जा सकती है बल्कि जाने जा रही हैं। पक्षियों के साथ ये चाइनीज़ मांझे आदमियों के लिए मुश्किल बन रहे हैं। उत्तरायण, मकर संक्रांति, वसंत पंचमी के दिनों में यह ज़रूरी नहीं कि यदि आप कहीं अपने दो-पहिया वाहन से या पैदल कहीं जा रहे हैं, तो आप सही अवस्था में अपनी मंज़िल पर पहुंच जाएंगे, क्योंकि बीच में कहीं भी आपकी गर्दन कट सकती है या मांझे में फंसकर आप चोटिल हो सकतें हैं और शायद बड़ी दुर्घटना का शिकार भी।

पत्रिका डॉट कॉम के अनुसार मकर संक्रांति 2020 में गुलाबी नगरी जयपुर में 800 से ज़्यादा पक्षी घायल अवस्था में रेस्क्यू सेंटरों में लाए गएं। इनमें ज़्यादातर चाइनीज़ मांझे की चपेट में आने की वजह से घायल पाए गएं। उनके पंखों में चाइनीज़ मांझा लिपटा दिखा।

इससे प्रशासन द्वारा चाइनीज़ मांझे पर प्रतिबंध के दावे झूठे साबित नज़र आएं। जानकारी के मुताबिक शहर में वैशालीनगर, रामनिवासबाग, जवाहरनगर, पांच बत्ती, टोंक रोड, अशोक विहार नर्सरी, मालवीय नगर, मानसरोवर समेत कई स्थानों पर दर्जनों स्वयंसेवी संस्था, वन विभाग और पशुपालन विभाग की ओर से पक्षी चिकित्सा शिविर लगाए गएं। इनमें सुबह सात बजे से रात आठ बजे तक घायल पक्षियों का लहूलुहान हालत में लाने का सिलसिला बरकरार रहा।

इस मांझे पर रोक के बावजूद धड़ल्ले से हो रही है बिक्री

ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब एन.जी.टी (नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने ड्रैगन के मांझे पर रोक लगाई हुई है, फिर भी धड़ल्ले से यह कैसे बिक रहा है। दुख इस बात का भी है कि लोकल प्रशासन भी घूसखोरी में लिप्त है। आपसी सांठ-गांठ के चक्कर में बेज़ुबान पक्षियों की जान को बिना विचार किए खतरे में डाला जा रहा है।

कुछ ऐसे ही हालात उत्तर प्रदेश के मेरठ के भी हैं। “एनवायरमेंट क्लब” (मेरठ में युवाओं का संगठन) जैसे कई अन्य एनजीओ चाइनीज़ मांझे पर जागरूकता व रोक लगाने का कार्य करते हैं लेकिन प्रशासन स्तर पर लापरवाही बरतने की वजह से सब पर पानी फिर जाता है।

एनवायरमेंट क्लब की सचिव ऋचा शर्मा से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा,

हर वर्ष पतंग महोत्सव के दौरान ही ये बातें सामने आती हैं कि “से नो टू चाइनीज़ मांझा”, लेकिन अन्य दिनों में क्या हो रहा होता है, जब ये मांझे बड़े बड़े पैकटों में बाहर से मंगवाए जाते हैं, तभी उनपर रोक लगनी चाहिए।

वहीं मेरठ की ही एक शिक्षिका, पायल शर्मा से जब चाइनीज़ मांझे पर बात की गई तो उन्होंने सीधे तौर पर प्रशासन पर तंज कसते हुए कहा,

जब प्रशासन स्तर से ही मिलीभगत है तो क्या किया जा सकता है। बैन के बावजूद आज भी शहर में धड़ल्ले से ये जानलेवा मांझे बिक रहे हैं, ज़रूरत है इस बैन का सख्ती से पालन कराएं जाने की।

कहीं-ना-कहीं दोनों महिलाओं की बात लाख रुपए की है, जब बाहर से मंगवा कर होलसेलर अपने गोदाम भर रहे होते हैं, तब लोकल पुलिस और संबंधित अधिकारी कहां होते हैं? निगम क्यों आंखें मूंद कर बैठा होता है, क्यों बेजुबानों की जान से खिलवाड़ होता है? क्यों इंसान का दुश्मन बनते चाइनीज़ मांझे पर कोई बैन का फायदा नहीं होता है?

निश्चित ही इस वर्ष भी बसंत पर कई पक्षियों की और इंसानों की बातों से अखबारों का बाज़ार गर्म होगा और कुछ ही दिनों बाद यह मुद्दा भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा या स्वत: ही चला जाएगा। मांझे की ही वजह से पिछले साल मकर संक्रांति के दिन अहमदाबाद के जीवदया चैरिटेबल अस्पताल में पतंग के शिकार करीब 472 पक्षी आए थे।

2017 में बैन हो चुके ‘चाइनीज़ मांझे’ के प्रयोग से आज पक्षियों की उड़ान खतरे में है। वे अपने घोंसलों में कैद होने को मजबूर हैं। आपसे भी इस लेख के माध्यम से इतनी विनती है कि आप चाइनीज़ मांझे का इस्तेमाल कतई ना करें और कोशिश करें अपने बच्चों को समझाने की। यदि बालपन में ही अच्छे संस्कार देंगे तो ही उनका भविष्य उज्जवल होगा।

बसंत पंचमी के दौरान आपको यदि कहीं कोई पक्षी घायल दिखता है तो तुरंत वन विभाग को सूचित करें और नज़दीकी पक्षी चिकित्सालय संपर्क करें। पक्षियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लें, मानवता दिखाएं।

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