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“चाय लेने के बहाने मेरी फ्रेंड के बाबा जी उसका यौन शोषण करते थे”

फोटो साभार- Flickr

फोटो साभार- Flickr

गुगगुन थानवी इस वक्त चर्चा में हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्होंने महान कवि बाबा नागार्जुन पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। इस खबर पर मेरे कई मित्रों ने सोशल मीडिया के ज़रिये गुनगुन का समर्थन किया। खैर, जब सोशल मीडिया पर इतना कुछ चल रहा था, तो मेरा ध्यान भी उस ओर आकर्षित हुआ।

गुनगुन थानवी के माँ और पापा जेएनयू में प्रोफेसर रहे थे। नागार्जुन बाबा से उनके काफी अच्छे रिश्ते थे, जिस कारण कई बार वे उनको अपने घर पर भी रुकने के लिए आमंत्रित करते थे।

गुनगुन थानवी के अनुसार, वह सब उनके लिए एक डरावने सपने के जैसा रहा है, जिसका ज़िक्र उन्होंने अब तक किसी से नहीं किया था। उन्होंने फेसुबक पर बहुत सारी बातें लिखीं मगर जो अहम बात उन्होंने शेयर की है, वह मैं आपको बताती हूं।

वह लिखती हैं,

लोग कहते हैं कि बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले लोग बीमार होते हैं। क्या देश के इतने बड़े कवि नागार्जुन भी बीमार थे? बाबा को मेरे पापा घर ले आए थे। उस व्यक्ति ने हमारे घर में कर्फ्यू लगा दिया था। रेप करने वाले लोग तो शायद बहुत मामूली होते हैं लेकिन देखिए कि ‘बड़े लोग’ आपके घर में घुसकर आपकी ही बेटियों को खा जाते हैं।

कुछ इसी तरह से मेरी फ्रेंड का भी यौन शोषण हुआ था

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मैं यहां अपनी कोई राय नहीं बना रही कि गुनगुन थानवी सही हैं या नागार्जुन बाबा? मगर उनके गुज़र जाने के 25 साल बाद इन चीज़ों को सुनकर मुझे मेरी एक दोस्त की कहानी याद आती है, जो उसने बेहद उदास होकर मेरी गोद में सर रखकर सुनाई थी।

उसके दादा के भाई जिनकी शादी नहीं हुई थी, वह उनके घर मे रहते थे। सब लोग उनको बाबा कहते थे और सम्मान देते थे। सुबह उनकी चाय लेकर उनकी बैठक में जाना होता था। 3 घंटे बाद खाना लेकर अपने दादा जी का भी यही रुटीन था। ऐसे में आदत सी थी कि सुबह चाय फिर खाना फिर दोपहर का खाना फिर शाम की चाय के बाद आता था रात का खाना। न सबमें मेरी दोस्त को जाना होता था दादा और बाबा के पास।

मेरी दोस्त बताती है,

हमें दादा जी ने बड़े लाड़ से पाला था। बाबा जी भी ऐसे ही दुलाड़ करते थे। एक दिन जब मैं उनके लिए चाय लेकर गई, तो बाबा अलमारी में कुछ तलाश रहे थे।

मेरी दोस्त, चाय रखकर वहां से जाने लगे गई। बाबा जी ने उसे बुलाया और 2-4 रुपये दिए। बाबा जी अकसर उसे कुछ पैसे दिया करते थे और जाते-जाते सीने से लगाते थे।  उसे गले से लगाने में कई दफे गुड टच और बैड टच वाला “बैड टच” महसूस भी हुआ।

दोस्त ने उसे अपने दिल का वहम मानकर इग्नोर किया। उस दिन उन्होंने सीने से लगाकर उसके होठों को चूमने की कोशिश की। वो पीछे हटती रही फिर उसे बिस्तर पर गिराकर कपड़ों के ऊपर से योनि को टच किया।

उस दौरान मेरी दोस्त की उम्र वही कुछ 9-10 साल रही होगी। वह वहां से निकलकर भागी और जाते-जाते वो 2-4 रुपये फेंककर चली गई। उस दिन वह काफी रोई और आगे से किसी को खाना या चाय देने नहीं गई। माँ को जब जानकारी मिली कि वह नहीं जा रही है, तो उसे काफी मारा-पीटा गया। यह बेहद शर्मनाक ही है कि चाय लेने के बहाने मेरी फ्रेंड का यौन शोषण होता था।

हमें अपने बच्चों को स्पेस देने की ज़रूरत है

मेरे आगोश में भी वह सिसक सिसककर रोई थी। वह कहती थी कि उसके बाद तो मुझे दादा से भी डर लगता था। जब बाबा की मौत हुई थी, तो उसके मुंह से बस यही निकला कि अच्छा हुआ मर गए।

समस्या यह नहीं है कि इतना कुछ हुआ और इस पर बात अब हो रही है, बल्कि मुद्दा यह है कि पहले के वक्त में हमारे अपने माँ-बाप इतना स्पेस ही नहीं देते थे कि हम उन्हें ये बातें कह सकते।

मुझे खुद याद है जब पहली दफा पीरियड्स की समस्या आई, तो मुझे कुछ मालूम नहीं था। उस दौरान चार-पांच दिन मछली के जैसे तड़प तड़पकर निकाले थे। कोई समझ कुछ नहीं थी।

क्या पैड या कपड़ा, कोई आईडिया तक नहीं था। टैम्पून और बाकी चीज़ें तो अब पता लगी है। हम अपने बच्चों को इतना तो फ्रैंक रखें कि वे अपने दिमाग की ज़हनी उलझन बता सकें। मेरी बहन की बेटी मेरे साथ सबसे ज़्यादा खुली हुई है।

अच्छा लगता है जब वह सब कुछ कह देती है। मैंने उसे सिखाया है कि गुड टच और बैड टच में फर्क होता क्या है। अंत में यही कहूंगी कि अपने बच्चे का साथ दीजिए, जिस दिन ये पौधा मुरझा गया, ज़िंदगी में बस सांस रहेगी, सारा बचपन धरा का धरा रह जाएगा।

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