Site icon Youth Ki Awaaz

दिहाड़ी पर मज़दूरी करने वाली महिलाएं वोट करते वक्त क्या सोचती हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

राष्ट्रीय मतदाता दिवस यानी 25 जनवरी, युवा भारत को खुद के भारतीय होने का एहसास दिलाता है। तात्पर्य यह है कि प्रतिवर्ष इस दिन से पहले, जो भी युवा 18 वर्ष की आयु के होते हैं, उन्हें मतदान देने हेतु मतदाता पहचान पत्र देने की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। 

राष्ट्रीय मतदाता दिवस का उद्देश्य

विश्व में भारत को बड़े लोकतंत्र के रूप में पहचान हासिल है लेकिन चुनाव में मतदान का प्रतिशत शायद ही कभी उम्मीद के अनुसार नज़र आया हो। अत: मतदान को लेकर कम होते रुझान को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस घोषित किया। 

निर्वाचन आयोग का उद्देश्य था कि देशभर के सभी मतदान केद्रों में प्रत्येक वर्ष उन सभी मतदाताओं की पहचान की जाए, जिनकी उम्र 1 जनवरी को 18 वर्ष हो चुकी हो।

इस मुहिम के तहत निर्वाचन आयोग ने 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के नए मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में दर्ज़ किए जाने का प्रावधान रखा। साथ ही इन युवा मतदाताओं को निर्वाचन फोटो पहचान पत्र सौंपे जाने की प्रक्रिया आरम्भ की। गौरतलब है कि 25 जनवरी 2011 को तत्कालीन राष्ट्रपत‌ि प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने “राष्ट्रीय मतदाता दिवस” का शुभारंभ किया था।

कौन बांटेगा निर्वाचन फोटो पहचान पत्र

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

निर्वाचन फोटो पहचान पत्र बनाने से लेकर बांटने की ज़िम्मेदारी BLO को मिली है। इस काम में उनके सहयोगियों के तौर पर सामाजिक, शैक्षणिक व गैर-राजनीतिक व्यक्त‌ि को भी ज़िम्मेदारी मिली।

BLO यानी बूथ लेवल ऑफिसर, जो कि शिक्षा विभाग से होते हैं।  इस मौके पर मतदाताओं को एक बैज भी दिया जाता है, जिसमें नारा अंकित होता है “मतदाता बनने पर गर्व है, मतदान को तैयार हैं।”

मतदाताओं के मताधिकार में किसी और ने सेंध तो नहीं लगाई?

अकसर यह सुनने में आता था कि लोग अपने मतों का प्रयोग किसी दूसरे की दखल पर करते हैं। ज़िक्र उन मतदाताओं का किया जा रहा है, जिनमें शहरों की झुग्गी-झोपड़ियों से लेकर गाँवों के मज़दूर तबका शामिल हैं।

हालिया विधानसभा चुनाव के दौरान जब मतदाताओं की नब्ज़ टटोलने की कोशिश की, तब चौंकाने वाले नतीजे सामने आए।

क्या कहा महिला मतदाताओं ने?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिम, सरायकेला एवं ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्रों में महिला मज़दूरों से बातचीत के दौरान नाम ना बताने की शर्त पर कुछ महिलाओं ने हमसे बात की।

उपलाडीह की एक महिला ने इमली चौक पर बताया,

हम वोट चाहे जिसे दें, चुनाव बाद कोई हमें पूछने नहीं आता है। असल में वोट तो गाँव के मुखिया ने तय कर दी कि किसे देना है। जब हमने विरोध किया तो कहा कि गया कि जो बात नहीं मानेगा, उसका बहिष्कार होगा। अब बहिष्कार के डर से लोग उनके मन मुताबिक वोट कर आए।

हमने पूछा, “अगर आप उनकी हां में हां मिलाएं और वोट अपने मन से दें तो?” इस पर महिला ने कहा, “एक-एक ग्राम पंचायत कई टोलों में बंटी होती हैं और उन टोलों में 3 या 3 से अधिक घर होते हैं। अब जब इतने कम घर हैं, तो मतदाता भी उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। इस हालत में उन्हें शक हो जाता है कि किसने वोट नहीं किया।”

कुछ ऐसे चेहरे भी मिले, जिन्होंने कहा कि हम अपनी मर्ज़ी से वोट दे देते हैं। हमने कहा, “क्या देखकर वोट करती हैं?” तो कहने लगीं कि जो अच्छा लगता है, बस उसे। जब पूछा गया कि क्या अच्छा लगता है? तो कहने लगीं, “जो बहुत चर्चित रहता है, उसी के चुनाव निशान पर वोट कर देते हैं। अकसर ऐसा हुआ है, जब चुनाव जीतने के बाद वे कुछ काम हीं करते हैं।”

स्वतंत्र होकर वोट देती हैं महिलाएं

जब गाँव में रहने वाली महिलाओं से पूछा गया कि आप के वोट पर किसका नियंत्रण है, आपका, आपके पति का या फिर गाँव के मुखिया का? तो हमें जवाब मिला, “यह निर्भर करता है महिलाओं की मानसिकता पर। कभी-कभी तो पैसे से मज़बूत प्रत्याशी, हर तरह का इंतज़ाम रखता है, जो मतों को सीधे प्रभावित करता है।”

जब यह पूछा गया, “वोट देने के बाद कभी दुख नहीं होता कि गलत प्रत्याशी को चुन लिया?” इस पर वे कहने लगीं, “क्या फर्क पड़ता है, उन्हें ऐसे भी आम जन का कुछ भला करना है नहीं।”

कुछ महिलाओं से हमने पूछा, “आपका वोटर आईडी बना है?” तो कहने लगीं कि आधार है, वोटर कार्ड नहीं है। इसके बाद हमने पूछा कि 25 जनवरी को बनवा रही हैं वोटर कार्ड? तो कहने लगीं, “कैसे बनवाएं, उस दिन कंपनी में काम पर जाना है। जाएंगे नहीं, तो खाएंगे क्या? 

बहरहाल, सरकार को देश के निचले तबके पर अधिक ध्यान देना होगा ताकि वे वोटर आईडी की अहमियत को समझें, वोटर आईडी बनने के क्रम में उनका समय ना बर्बाद हो, ताकि उनकी रोज़ी पर कोई आंच ना आए। वोटर आईडी बन जाए, तो वे अपने वोट की कीमत को समझते हुए ज़िम्मेदारी से सरकार चुन सकें।

Exit mobile version