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महाराष्ट्र कैबिनेट के 43 में से 21 सदस्य हैं नेताओं के रिश्तेदार

उधव ठाकरे और आदित्य ठाकरे

उधव ठाकरे और आदित्य ठाकरे

भारतीय राजनीति में परिवारवाद पर हमेशा चर्चा होती रही है, परिवारवाद को लेकर नेहरू गॉंधी फैमिली को हमेशा ही कठघरे में खड़ा किया जाता रहा है। नेहरू गॉंधी परिवार से बाहर ठाकरे, पवार, बादल, वाईएसआर रेड्डी आदि को परिवारवाद के उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है।

अब एक बार फिर राजनीति में परिवारवाद का मुद्दा चर्चा में आया है, क्योंकि महाराष्ट्र में शिवसेना, NCP और कॉंग्रेस गठबंधन वाली सरकार में 43 मंत्रियों में से 21 मंत्री परिवारवाद से ताल्लुक रखते हैं या फिर वह राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं।

परिवारवाद को लेकर कोई भी राजनीतिक दल अलग नहीं है। ठाकरे परिवार में पहली बार चुनाव लड़ने वाले आदित्य अपने ही पिता के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री होंगे। देश में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, इसके पहले तमिलनाडु में करुणानिधि-स्टालिन, आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू-नारा लोकेश, पंजाब में प्रकाश सिंह बादल-सुखबीर सिंह बादल, हरियाणा में देवीलाल और रंजीत सिंह चौटाला आदि बाप-बेटे साथ में काम कर चुके हैं।

उप मुख्यमंत्री बनकर अजित पवार फिर लौट आएं

अजित पवार। फोटो साभार- सोशल मीडिया

अजित पवार शरद पवार के भतीजे हैं। डेढ़ महीने बाद उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। अजित पवार इस बार बारामती से लगातार सातवीं बार जीतकर आए हैं। बारामती पवार परिवार का गढ़ माना जाता है। अजित पवार इससे पहले अशोक चौहान, पृथ्वीराज चौहान, देवेंद्र फडणवीस और अब उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री होंगे।

हालांकि फडणवीस के साथ अजित पवार सिर्फ 3 दिन के लिए ही उप मुख्यमंत्री बने रहें। भ्रष्टाचार के आरोप से लेकर नाराज़गी तक की गलतियों पर पर्दा डालने वाले शरद पवार जैसे चाचा अजीत पवार को मिलें।

पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे से लेकर राज्यपाल के बेटे तक

विलासराव देशमुख के बेटे अमित देशमुख। फोटो साभार- सोशल मीडिया

कॉंग्रेस नेता अशोक चौहान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। ठाकरे मंत्रिमंडल में अब वह कैबिनेट मंत्री होंगे। उनके पिताजी शंकर राव चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, यानी अशोक चौहान भी परिवारवाद से ही ताल्लुक रखते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बेटे अमित देशमुख अब कैबिनेट का हिस्सा होंगे, पहले वह राज्य मंत्री रह चुके हैं। उनके छोटे भाई धीरज भाई पहली बार विधायक चुने गए हैं। आपको बता दें कि जाने-माने अभिनेता रितेश देशमुख भी इनके भाई ही लगते हैं।

प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री और बीजेपी के जाने-माने नेता रहे गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय मुंडे कैबिनेट मंत्री होंगे। पहले वह विधान परिषद में नेता विपक्ष रह चुके हैं, उन्होंने अपनी बहन पंकजा मुंडे के खिलाफ परली से चुनाव लड़ा था। पूरे देशभर में यह चर्चा का विषय था।

राजेश टोपे पहले भी मंत्री रह चुके हैं, अब वह कैबिनेट का हिस्सा होंगे। राजेश टोपे पांचवी बार विधायक बने हैं, उनके पिताजी अंकुशराव सांसद थे, जालना ज़िले की राजनीति पर टोपे परिवार का प्रभाव देखा जा सकता है।

कॉंग्रेस के पूर्व विधायक और राज्यपाल रहे डी वाई पाटिल के बेटे सतेज पाटिल मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री होंगे। NCP के सांसद सुनील तटकरे की बेटी अदिति पहली बार चुनाव लड़ी थीं, राज्य मंत्री के तौर पर उन्हें शपथ दिलाई गई है।

ऐसे और भी नाम बताए जा सकते हैं। सवाल यह है कि अगर परिवारवाद से निकले हुए राजनेता अलग-अलग पार्टियों में रहते हुए राजनीति करेंगे तो फिर आम जनता से नेतृत्व कैसे बाहर आएगा? पहली बार विधायक बने आदित्य ठाकरे, अदिती तटकरे आदि को मंत्री बनाया जाना कितना सही था?

परिवारवाद को छोड़ दें तो ऐसी अन्य क्या चीज़ इनके पास है कि वह पहले ही बार विधायक बनते हुए सीधा मंत्री बन जाते हैं? क्या यह कहा जाना चाहिए कि परिवारवाद पर अब राजनीति नहीं होगी? परिवारवाद भारतीय राजनीति की सच्चाई बन गया है? इन सवालों पर पाठक विचार करें।

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