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महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझने वाले मर्दों के नाम खत

नाम- प्रियंका
उम्र- 30
पढ़ाई- डबल ग्रैजुएट, डबल मास्टर्स, अनुवाद में डिप्लोमा, विज्ञापन में डिप्लोमा
वर्क एक्सपीरियंस- 8 साल
हाइट- 5’6
वजन- 59 किलो
रंग- गेहुआं

इतनी जानकारी काफी है ना किसी इंसान की पहचान के लिए। या और कोई विशेष जानकारी मुहैया कराने की ज़रूरत है? हां, एक विशेष जानकारी यह भी है कि मैं एक औरत हूं और औरत होने की वजह से एक ऐसी शारीरिक संरचना में हूं, जो बार-बार किसी शरीफ मर्द की गंदी नियत, बुरी नज़र और झूठे अहंकार का कारण बन जाती है।

फोटो प्रतीकात्मक है।

कई उपाय किए इस गलत शारीरिक संरचना को छुपाने के लिए, कभी दुपट्टा ओढ़ लिया, कभी तीन गुना ज़्यादा बड़े कपड़े पहनें, हमेशा ऐसे बैठने और खड़े रहने की कोशिश की जिससे कि किसी शरीफ मर्द का चरित्र ना डगमगा जाए लेकिन कोई उपाय काम नहीं आया। हमेशा शक्ल और शरीर से ज़्यादा, अक्ल और मेहनत पर भरोसा किया, फिर भी पता नहीं क्यों हर बार अक्ल पर शक्ल और सारी मेहनत, सारी डिग्रियों पर शरीर की बनावट भारी पड़ जाती है।

बस इतना बताना और महसूस करवाना चाहती हूं कि मैं भी आपकी ही तरह एक इंसान हूं, जो बिल्कुल आपकी ही तरह दिनरात मेहनत करती है, जिसे आपकी ही तरह अच्छा-बुरा भी लगता है, जिसे आपकी ही तरह तकलीफ भी होती है और दर्द भी।

तो आपसे हाथ-पैर सब जोड़कर विनती है कि मुझे अपनी बुरी नियत, गंदी नज़रों और झूठे अभिमान का शिकार ना बनाएं। अगर आपकी शारीरिक अवस्था (ठरक) आपसे ना संभल पा रही हो, तो मैं आपकी इसमें कोई मदद नहीं कर पाऊंगी।

और हां, आखिर में एक और बात, अगर मुझे आपमें ज़रा सी भी रुचि होगी, तो मैं आपको सीधे-सीधे बता दूंगी, बिना कोई इशारे किए। इशारे सिर्फ हिंदी सिनेमा में चला करते हैं (अब तो वहां भी आउटडेटेड हो गए हैं)।

विनम्र निवेदन है कि मेरी बातों, हंसी, मुस्कुराहट, मेरे झुकने, गलती से आपको छू जाने और किसी काम के चलते बार-बार आपके पास आने की स्थिति में मेरे छुपे इशारे ढूंढने में अपना कीमती वक्त ज़ाया ना करें। मैं या मेरे जैसी कोई भी औरत ज़ुबान रखती है और अगर नहीं भी रखती तो वह आपको अपनी बात अच्छे से समझाने में समर्थ है। कृपया अंदाज़ों-इशारों पर ज़िन्दगी ना बिताएं।

विशेष सूचना, “बाबू समझो इशारे”, यहां लागू नहीं होता बल्कि बाबू ज़्यादा इशारे समझेंगे तो पीटे जाएंगे।

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