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“मेरे गाँव में किसी को सुकन्या समृद्धि योजना की जानकारी ही नहीं है”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

आज 24 जनवरी के दिन पूरे भारत में ‘गर्ल चाइल्ड डे’ मनाया जा रहा है। देश के विभिन्न राज्यों में सरकारी दफ्तरों, स्कूलों, कॉलेजों, हर जगह पोस्टर बनाकर लोग लड़कियों की उन्नति के बारे में चिंतित दिखाई पड़ रहे हैं।

केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने भी लड़कियों के लिए विभिन्न योजनाएं बनाई हैं। केंद्र द्वारा तमाम योजनाएं जैंसे “सुकन्या समृद्धि योजना”, “बालिका समृद्धि योजना”, “सीबीएसई छात्रवृत्ति योजना” संचालित की जाती हैं। वहीं, राजस्थान में “मुख्यमंत्री राजश्री योजना”, मध्यप्रदेश में “लाडली योजना”, महाराष्ट्र में “कन्या भाग्य योजना” और ना जाने कौन-कौन सी योजनाएं चालई जा रही हैं।

इन योजनाओं के ज़रिये लड़कियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना की जाती है। अगर हम बात करें “सुकन्या समृद्धि योजना” की, तो हर गरीब परिवार के लिए वरदान होते हुए भी लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है।

गरीब परिवार की बच्चियों की शादी की चिंता उनके माँ-बाप की सबसे बड़ी चिंता होती है। बेटी के जन्म लेते ही माँ-बाप यहां तक कि पूरा परिवार गहन शोक में डूब जाता है। कैसे होगा इनका पालन पोषण? कैसे होगी शादी? कैसे होगी पढ़ाई? ऐसी अनेक समस्याओं से परिवार को दो-चार होना पड़ता है।

क्या है सुकन्या समृद्धि योजना?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

सुकन्या समृद्धि योजना के तहत हर बेटी के जन्म से लेकर उसकी शादी की उम्र तक 1.50 लाख की राशी देने का प्रावधान किया गया है। हर परिवार 250 रुपए की धनराशि से पोस्ट ऑफिस या बैंक में खाता खुलवा सकता है। वहीं राशी उसकी शादी में मददगार साबित होती है।

सोचने वाली बात यह है कि आज भारत 5 ट्रिलियन की इकोनोमीमी बनने की तरफ अग्रसर है। वहीं, विकास के पथ को पाने के लिए देश में चल रही योजनाओं का क्या सही तरीके से मूल्यांकन हो रहा है?

ज़मीनी स्तर पर हमको एक ही सफल योजना नज़र आती है, वो है महिलाओं के लिए चलाई गई उज्जवला योजना। सुकन्या समृद्धि योजना के अन्तर्गत आज भी लाखों परिवार हैं, जिन लोगों ने अपनी बेटियों के खाते इसलिए नहीं खुलवाए क्योंकि उनके पास 250 रुपए ही नहीं होते हैं। ये बातें मैं किसी आंकड़े का सहारा लेकर नहीं कर रही हूं, बल्कि मैंने अपने गाँव और आस-पड़ोस में चीज़ें देखी हैं।

लड़कियों को मिलने वाली स्कॉलरशिप दूसरे कामों में खर्च होती हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज हर ग्रामीण परिवार में अभी भी 3 से 4 बच्चे हैं, जिनमें किसी परिवार में 4 बेटियां, चार बेटे या 4 में से 3 या 2 बेटियां हैं, जिनका सारा पैसा अपने बच्चों पर ही खर्च हो जाता है। स्कूल की फीस देने में उनका निवेश भी खर्च हो जाता है।

लड़कियों को सरकार से मिलने वाला वजीफा भी उनकी पढ़ाई में नहीं, बल्कि घर के खर्च में चला जाता है। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं आज भी ग्रामीण स्तर के नज़रिए से देखने पर मुझे 100 में से 20 प्रतिशत ही सफल मालूम होता है।

बहुत लोगों के खाते तो बैंक में खुल गए मगर आज भी उनमें पैसे नहीं जमा हुए, क्योंकि आम आदमी के पास इतना पैसा ही नहीं है कि वे इस योजना में अपनी बेटियों के जीवन सुधार के लिए पैसे जमा कर पाएं। आज भी ग्रामीण लोगों को सरकार द्वारा चल रही योजनाओं के बारे में सही से ज्ञान ही नहीं है।

ग्रामीणों में जानकारी की कमी

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

योजनाओं के बारे में लिखा तो हर जगह मिल जाता है मगर ग्रामीण परिवारों में इसकी सही जानकारी किसी को हो, इसकी संभावना बहुत कम ही होती है। आज भी ग्रामीण परिवारों की बेटियां इसलिए पीछे हैं, क्योंकि उनको गरीबों के लिए बनी योजनाओं का सही से लाभ नहीं मिलता है। योजनाएं चला तो दी जाती हैं मगर उनका क्रियान्वयन सही से नहीं होता है।

जागरूकता अभियान आज भी बहुत कम स्तर पर ही काम कर रहे हैं। हर गाँव तक पहुंच आज भी बहुत कम है। अमुमन लड़कियों को उनकी उन्नति के लिए चलाई गई योजनाओं के बारे में पता ही नहीं नहीं है और अगर पता भी है, तो डर या संकोच की वजह से वे उनका लाभ पाने से पीछे हो जाती हैं।

ऐसे में हर सरकार को योजनाएं लागू करने के बाद तक जागरूकता अभियान चलाने की ज़रूरत है। इनमें महिलाओं की भागदारी बढ़ाई जानी चाहिए। उनको उनके जीवन से जुड़े हर एक पहलू से जागरूक करना चाहिए। आज लड़कियों में बहुत अधिक मात्रा में एनीमिया के लक्षण देखे जा रहे हैं। सरकार इसके लिए आयरन की गोलियां खाने की सलाह दे रही है।

हर अस्पतालों में ये दवाईयां उपलब्ध तो हैं मगर सिर्फ कुछ ही घरों में नज़र आती हैं। कुछ ही लड़कियां हैं, जिनको पता है और आधी से ज़्यादा लड़कियां यह जानती ही नहीं कि उनके स्वास्थ्य के लिए सरकार प्रयासरत है। ऐसे में सरकार को महिलाओं की ही टीम तैयार करनी होगी, जिन्हें गाँव-गाँव जाकर जागरूकता अभियान चलाना होगा।

कोई ऐसी योजना, जो अमीर-गरीब का फर्क मिटा सके?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

भारत में अमीर-गरीब के लिए ऐसी कोई योजना नहीं है, जो सरकार ने लागू नहीं की हो। मगर उनको सही तरीके से यदि लॉन्च ही नहीं किया जाएगा, तो कोई फायदा नहीं होगा। विकास तभी होगा जब हर गाँव और बस्ती में जन-जन को पता हो कि ये योजनाएं उनके लिए हैं।

सिर्फ गलियों में नगाड़े पीटने से कुछ नहीं होता है।आज भी आम इंसान सुनकर अनदेखा कर देता है, क्योंकि कहीं ना कहीं वे भाषाओं की जटिलताएं नहीं समझ पाते हैं। इस में अधिकतर महिलाएं भी शामिल हैं, जिनका सरकारी कामकाज और जानकारी से दूर-दूर देना तक लेना-देना ही नहीं है।

वे आज भी पुरुषों पर निर्भर हैं कि ये उनका काम है। महिलाओं का नहीं। मेरी समझ से महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को आज समाज की महिलाओं के सामने दिखाना ही होगा ताकि वे अपने अधिकारों के बारे में जान सकें। उनको हर छोटे बड़े कामों में भागीदार बनाने की ज़रूरत है, जिसके लिए शिक्षा की बहुत बड़ी भूमिका है।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि उस दिन मुझे बहुत खुशी होगी, जब मेरे गाँव में लोगों को सुकन्या समृद्धि योनजा के साथ-साथ अन्य योजनाओं के बारे में ना सिर्फ जानकारी हो, बल्कि जागरूकता भी बढ़े। मेरे गाँव के लोगों को सुकन्या समृद्धि जैसी योजनाओं की जानकारी ना होना मुझे परेशान करती है।

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