भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने अपने दफ्तर में सोमवार को एक बैठक रखी थी, जिसमें CAA और NRC के खिलाफ विचार-विमर्श किया गया। इस बैठक में काँग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी, वाम मोर्चा, शिवसेना और दूसरे दल भी शामिल थे मगर दिल्ली की आम आदमी पार्टी, बंगाल की तृणमूल काँग्रेस और बहुजन समाजवादी पार्टी के अलावा कई क्षेत्रीय दल उपस्थित नहीं थे।
जिन पार्टियों ने विपक्षी दल की बैठक में अपनी उपस्थिति दर्ज़ नहीं कराई, उनके द्वारा भी लगातार CAA और NRC का विरोध किया जा रहा है। हालांकि हर कोई इसमें हिन्दू-मुस्लिम का तर्क दे रहा है या कोई नॉर्थ ईस्ट के ट्राइबल लोगों के अधिकारों की बात कर रहा है मगर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसके विरोध में अलग तर्क दिया।
केजरीवाल ने जिस तरह से विरोध किया है, कई लोग उसकी सरहाना भी कर रहे हैं। हुआ यूं था कि केजरीवाल अपने कार्यकाल के दौरान किए गए कामों का रिपोर्ट कार्ड लिए एबीपी न्यूज़ के कार्यक्रम में पहुंचे थे। वहां उन्होंने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही कि अगर कोई ISI का जासूस हिन्दू बनकर भारत में घुस गया, तो क्या होगा?
हालांकि इससे पहले नेटवर्क 18 के चौपाल कार्यक्रम में भी अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि इतने सारे लोग अगर भारत में आ जाएंगे, तो उनके लिए रहने की जगह और रोज़गार कहा से आएगा? इसका सरकार को इंतज़ाम करना होगा।
क्यों नाराज़ हैं ममता बनर्जी?
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा में गुरुवार को साफ शब्दों में कहा था, “अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं अकेले लड़ूंगी।” सदन में ही उन्होंने विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा और सीएए के खिलाफ काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी द्वारा 13 जनवरी को बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक के बहिष्कार की घोषणा भी की थी।
गौरतलब है कि ममता बनर्जी बुधवार को ट्रेड यूनियनों के बंद के दौरान राज्य में वामपंथी और काँग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा की गई कथित हिंसा से भी नाराज़ हैं। बंद केन्द्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, संशोधित नागरिकता कानून और पूरे देश में प्रस्तावित एनआरसी के विरोध में किया गया था।
मायावती ने क्या कहा?
मायावती ने सोमवार को ट्वीट करते हुए लिखा , ‘जैसा कि राजस्थान में काँग्रेसी सरकार को बीएसपी का बाहर से समर्थन दिए जाने पर भी इन्होंने दूसरी बार वहां बीएसपी के विधायकों को तोड़कर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करा लिया, जो विश्वासघाती है।” उन्होंने यह भी कहा,
ऐसे में काँग्रेस के नेतृत्व में आज विपक्ष की बुलाई गई बैठक में बीएसपी का शामिल होना, राजस्थान में पार्टी के लोगों का मनोबल गिराने वाला होगा। इसलिए बीएसपी इनकी इस बैठक में शामिल नहीं होगी।
हालांकि बाकी दलों को CAA का विरोध करते हुए देख हैरानी नहीं होती मगर काँग्रेस को देखकर ज़रूर होती है। आज भले ही भाजपा कितना भी इल्ज़ाम लगा ले कि काँग्रेस हिन्दू विरोधी है मगर सच यही है कि वह काँग्रेस ही थी जिसने सबसे पहले बंटवारे के वक्त और बंटवारे के बाद पकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले हिन्दुओं को भारत आने के लिए कहा था। यह सिलसिला महात्मा गाँधी और पंडित नेहरू से शुरू होकर डॉ. मनमोहन सिंह और अशोक गहलोत पर खत्म हुई।
काँग्रेसी नेताओं के वे बयान जो कभी CAA के पक्ष में थे
कहा जाता है कि देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने प्रार्थना सभा में खुले तौर पर घोषणा की थी कि पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू और सिख अगर वहां रहना नहीं चाहते हैं, तो हर तरह से भारत आ सकते हैं। उस स्थिति में उन्हें रोज़गार प्रदान करना और उनके जीवन को सामान्य बनाना भारत सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है।
इसके अलावा देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भी कुछ ऐसे ही विचार सामने रखे थे। हालांकि 1951 में नेहरू लियाकत समझौते के बाद ऐसे कोई बयान नहीं हैं।
इसके अलावा अपने अखबार हरिजन में महात्मा गाँधी ने एक लेख भी लिखा था, जिसमें उन्होंने यह कहा था कि अगर पाकिस्तान अपने यहां होने वाले ज़ुल्मो को बंद नहीं करेगा, तो भारत और पाकिस्तान के बीच में जंग होना तय है।
सन् 2003 की बात है, जब दिल्ली में राज्यसभा की कार्यवाही हो रही थी। बोलने के लिए खड़े हुए थे तब राज्यसभा में विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह। सामने उनके भारत के उस वक्त के उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, जिनके सामने डॉ. सिंह ने बताया,
बांगलादेश में जो गैर-मुस्लिम आबादी हैं, उन पर ज़ुल्म हो रहे हैं। इसलिए उनको नागरिकता देने पर विचार किया जाए।
मनमोहन सिंह का यह बयान तब सुर्खियों में आया था, जब काँग्रेस ने CAA के खिलाफ मोर्चाबंदी कर दी थी। हालांकि उसी साल कुछ और भी हुआ था, जिसका ज़िक्र करना ज़रूरी है।
साल 2003 में संसद की होम मिनिस्ट्री द्वारा बनाई गई एक कमिटी ने एक रिपॉर्ट संसद में पेश की थी, जो 107वीं रिपोर्ट थी। वह CAA कानून 2003 के लिए बनी थी जिसमें यह सुझाया गया था कि बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाए, जिसके तहत नैशनल कार्ड भी इनके लिए जारी किए जाएं।
गौरतलब है कि उस कमिटी के सदस्यों में प्रणब मुखर्जी, कपिल सिब्बल, मोतीलाल वोहरा, अंबिका सोनी, हंसराज चौधरी और बी.पी. सिंघल जैसे दिग्गज काँग्रेसी नेता शामिल थे। शायद बताने की ज़रूरत नहीं है कि जो बात 2003 में कही गई, आज उनसे पीछे क्यों हट रही है काँग्रेस पार्टी?
अशोक गहलोत ने CAA को लेकर क्या कहा था?
2009 में राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र की यूपीए सरकार में ग्रह मंत्री पी. चिदंबरम को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान से आने वाले सिख ओर हिन्दूओं के लिए नागरिकता की मांग की थी।
अगर काँग्रेस का यह सोचना है कि हम करे तो सही और भाजपा करे तो संघी और हिंदुत्ववादी, फिर तो काँग्रेस को यह जानना ज़रूरी है कि इस हरकत से जनता के मन में जो उनके खिलाफ विचार हैं, वे ज़हर की तरह फैलेंगे।
कैसा रहा है लेफ्ट का रव्वैया?
हालांकि लेफ्ट के रव्वैये से मुझे कोई हैरानगी होती नहीं है, क्योंकि उनका तो विचार ही यही है। जो भी भाजपा करे वो गलत है, क्योंकि भाजपा एक हिंदुत्वादी संगठन है और लेफ्ट एक वामपंथियों का संगठन जिसकी दुश्मनी जगजाहिर है।
हालांकि सीपीआई जो इसी लेफ्ट मोर्चा में से एक संगठन है, उस पर कई विचारकों द्वारा 1947 में पाकिस्तान की मांग पर मोहम्मद अली जिन्नाह का साथ देने का इल्ज़ाम लगता आया है।
मगर मेरा मानना है कि काँग्रेस पार्टी को अपना इतिहास देखकर यह तय करना चाहिए कि क्या वह सिर्फ इसलिए इस कानून का विरोध कर रही है, क्योंकि इसे भाजपा सरकार में लाया जा रहा है?