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झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी 17 फरवरी को भाजपा में शामिल होंगे

बाबूलाल मरांडी

बाबूलाल मरांडी

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के 14 साल बाद भाजपा में घर वापसी का रास्ता साफ हाे गया है। मरांडी खुद तो भाजपा में जा ही रहे हैं और साथ ही साथ झाविमाे केंद्रीय कार्यसमिति ने JVM के भाजपा में विलय हेतु प्रस्ताव पास कर दिया है।

उस बैठक के बाद बाबूलाल ने कहा कि 17 फरवरी काे जगन्नाथ मैदान धुर्वा में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, पूर्व अध्यक्ष अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर की माैजूदगी में झाविमाे की पंचायत इकाई से लेकर केंद्रीय कार्यसमिति तक के सदस्य भाजपा में शामिल हाेंगे।

पार्टी की संपत्ति के निष्पादन के लिए झाविमाे केंद्रीय कार्यसमिति ने बाबूलाल मरांडी काे अधिकृत कर दिया है। बाबूलाल ने भाजपा के सभी सांसदाें, विधायकाें और पार्टी पदाधिकारियाें से इस माैके पर उपस्थित रहने के लिए कहा है।

बैठक में झाविमाे केंद्रीय कार्यसमिति द्वारा पारित 5 राजनीतिक प्रस्ताव

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

झाविमाे विधायक दल और पार्टी के भाजपा में विलय का प्रस्ताव पास हाेते ही बाबूलाल मरांडी ने मंगलवार काे भाजपा काे विलय हेतु आग्रह पत्र भेजा। इस पर भाजपा ने स्वीकृति दे दी। अब भाजपा और  झाविमाे संयुक्त रूप से केंद्रीय निर्वाचन आयोग काे विलय की सूचना देकरअनुमति मांगेंगे।

जेवीएम का सफर

जेवीएम समर्थक। फोटो साभार- सोशल मीडिया

2 मई 2006 को बाबूलाल ने भाजपा को छोड़कर 8 जनवरी 2007 को अपने राजनीतिक दल “झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक” का रजिस्ट्रेशन करवाया। निर्वाचन आयोग ने 11 जून 2009 को राज्यस्तरीय दल के रूप में “झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक” को मान्यता दी। चुनाव आयोग ने 24 जुलाई 2009 को कंघी चुनाव चिह्न आंवटित किया।

2009 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में JVM ने 9% मत हासिल कर 11 विधानसभा सीटें जीतीं। 2014 विधानसभा चुनाव में ये वोट % बढ़कर 10% पर पहुंचा लेकिन सीटें घटीं और 8 की संख्या पर खिसक गईं।

इस दौरान मरांडी ने अपने विधायकों के बागी तेवर भी खूब देखे। कमाल यह रहा कि आज बाबूलाल जिस भाजपा को अपना घर बता रहे हैं, वही भाजपा JVM से बागी हुए विधायकों का लाभ उठती रही है। बहरहाल, 11 फरवरी 2020 को झाविमाे की केंद्रीय कार्यसमिति ने भाजपा में विलय का प्रस्ताव पास किया।

क्या मरांडी बनाए जाएंगे बीजेपी विधायक दल के नेता?

गृहमंत्री अमित शाह। फोटो साभार- सोशल मीडिया

“कुतुब मीनार से कूद जाऊंगा भाजपा में नहीं जाऊंगा” कहने वाले मरांडी आज भाजपा को अपना स्वाभाविक घर मानते हैं। मरांडी के सुर तो फिलहाल इतने बदल गए हैं कि अब वह कहने लगे हैं कि उन्हें भाजपा में झाड़ू मारने का भी काम मिला ताे सहर्ष स्वीकार करेंगे।

बहरहाल, खबर यह है कि बाबूलाल को झारखंड विधानसभा में बीजेपी विधायक दल का नेता बनाया जाएगा। ज्ञात हो कि बीजेपी ने विधानसभा में अब तक किसी को विधायक दल का नेता नहीं बनाया है। मरांडी विधानसभा सदस्य हैं और  गिरिडीह ज़िले के धनवार विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए हैं। 

मरांडी ने 8 फरवरी को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथूर से मुलाकात कर बीजेपी में शामिल होने के प्लान को अंतिम रूप दिया। इसके अगले दिन मरांडी ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलकर प्लान विचार-विमर्श किया।

14 साल बाद खत्म होगा बाबूलाल का वनवास

 बाबूलाल के घर वापसी की ज़मीन दिल्ली में तैयार हो चुकी है। 17 फरवरी को रांची में आयोजित मिलन समारोह में श्री मरांडी भाजपा में अपनी पार्टी झाविमो का विलय करेंगे । इस मौके पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और ओम माथुर सहित अन्य वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहेंगे।

भाजपा की आलाकमान ने झारखंड भाजपा को मिलन समारोह की तैयारी का निर्देश भी दे दिया है। भाजपा भी भव्य आयोजन की तैयारी में है। आलाकमान की तरफ से सभी सांसदाें-विधायकों, पदाधिकारियों को रहने का निर्देश दिया गया है।

स्थानीय नीति, जिसके कारण बाबूलाल मरांडी को भाजपा छोड़नी पड़ी थी

झारखंड राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के कार्यकाल के दौरान अगस्त 2002 में “डोमिसाइल नीति” यानि झारखण्ड के निवासियों के लिए रोज़गार के अवसर सुनिश्चित करने के लिए एक नीति बनाई।

इस नीति के अनुसार तीसरी और चौथी श्रेणी की सरकारी नौकरियां और तकनीकी संस्थाओं में एडमिशन लेने के लिए सिर्फ उन्हीं लोगों को योग्य ठहराने की बात कही गई, जिनके पूर्वज 1932 से पहले झारखंड क्षेत्र में बसे थे।

मरांडी विवादों में घिर गए 

स्थानीय नीति लागू होने के साथ ही विवाद बढ़ गया और इसके समर्थन और विरोध में बढ़ते प्रदर्शन के बाद मरांडी भी विवादों में घिरने लगे। इसके साथ ही झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने राज्य में आरक्षण नीति की घोषणा भी कर दी, जिसके तहत सरकारी नौकरियों में 73 प्रतिशत आरक्षण रखा गया। 

इस 73 प्रतिशत आरक्षण में आदिवासियों के लिए 32 प्रतिशत, दलित वर्ग के लिए 14 प्रतिशत और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई। इस नीति के समर्थक यह भी कहते हैं कि जो लोग झारखंड के निवासी नहीं हैं।

उन्हें वहां  ज़मीन खरीदने या फिर विधानसभा, संसद और पंचायत चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। रांची उच्च न्यायालय की एक संविधान खंडपीठ ने इस नीति को असंवैधानिक बताया।

न्यायालय ने सवाल उठाया कि केवल ज़मीन के सर्वेक्षण से और वह भी 70 साल पहले बनाए गए रिकॉर्ड के आधार पर यह कैसे पता चलेगा कि किस व्यक्ति के पूर्वज इस क्षेत्र में रहते थे? बढ़ते विवाद को देखते हुए राजनीतिक अखाड़े में घटते अविश्वास के बीच मरांडी ने मई 2006 में भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टी बनायी JVM बनाई। मरांडी ने  झाविमो का गठन कर राज्य की राजनीति में अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज करायी थी। 

अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या जिस नीति के कारण मरांडी को वनवास जाना पड़ा अब उसी नीति के तहत भाजपा झारखण्ड में अपनी वापसी का रास्ता बनाएगी, जिसके सिपहसालार मरांडी होंगे?


संदर्भ- बीबीसी हिन्दी, हिन्दुस्तान, News 18, प्रभात खबर, भास्कर, 

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