आपने रोमन साम्राज्य में दास प्रथा के बारे में सुना होगा, आपने एक समय में अमेरिका में अश्वेत लोगों को दास बनाने के बारे में पढ़ा होगा, आपने आज की लीबिया में चल रही दास प्रथा की खबर न्यूज़ चैनलों पर ज़रूर देखी होगी।
लेकिन क्या आपने सुना है कि आज के पंजाब में भी दास प्रथा चल रही है? पंजाब में हज़ारों लोग दास बनाए हुए हैं?
पंजाब में आज भी चल रही है गुलामी प्रथा
“हम नहीं रहेंगे यहां, हम नहीं रहेगा यहां”, “ बाबू जी, अगर आपकी पहुंच है तो आप हमें यहां से निकलवा लीजिए”, ये शब्द जेल में बंद किसी कैदी के नहीं हैं, बल्कि ये शब्द पंजाब में मुस्लिमों गुर्जरों द्वारा गुलाम बनाए गए एक शख्स के हैं। उस शख्स के, जो मानसिक रूप से अक्षम है, जिससे जबर्दस्ती 50 के करीब पशुओं की देख-रेख का काम करवाया जाता था, जिसे पीटा जाता था।
एक हफ्ते पहले ‘अपना फर्ज़’ संस्था के कार्यकर्ताओं ने पंजाब के रूपनगर ज़िले के जगतपुर गाँव में एक किसान के यहां छापा मारा। किसान के साथ एक मज़दूर सर पर चारा उठाकर आ रहा था। जब कार्यकर्ताओं ने मज़दूर से नाम पूछा तो उसने पहले मेघनाथ बताया, फिर कमलेश। उसने अपना पता झाँसी के करीब ललितपुर बताया।
जब उससे और पूछताछ की गई तो मज़दूर फूट-फूटकर रोने लगा और कहने लगा कि मुझे हर रोज़ मारा जाता है। धीरे-धीरे मज़दूर की बातों से साफ हो गया कि वह मानसिक रूप से अक्षम था और उसे मज़दूर नहीं, गुलाम बनाकर रखा गया था।
जब उससे पूछा गया कि क्या वह किसान के साथ रहना चाहता है, तो मज़दूर ने ना में सर हिला दिया। फिर गुलाम कहता है,
मैं इसको जान से मारने के बाद यहां रहूंगा।
जब गुलाम से पूछा गया कि वह कितने साल से किसान के साथ काम कर रहा है, तो उसका जवाब था कि मैं तो सबकुछ भूल चुका हूं, मुझे कुछ पता नहीं है।
किसान ने गुलाम बनाने वाली बात से किया इनकार
किसान का जवाब था कि मैंने इसे गुलाम नहीं बनाया, ये खुद ही घूमता फिरता आ गया। किसान की माँ जवाब देती है,
खाली घूमने से अच्छा है, हमारे साथ काम कर रहा है, हम उसे खाना भी दे रहे हैं।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि मुस्लिम गुर्जर ने एक और मानसिक रूप से अक्षम गुलाम को पीट-पीटकर मार दिया। गुलाम रखने वाला किसान मुस्लिम गुर्जर है, जो पशु-पालन का धंधा करता है।
इस बीच गुलाम को आज़ाद कराने के लिए कुछ सिखों की मुस्लिम गुर्जर का पक्ष लेने वाले सिख के साथ झड़प हो गई। बाद में पता चला कि गुर्जर के पक्षधर सिख को मुफ्त में भैसों का गोबर खेत में खाद के रूप में डालने के लिए मिलता था। (ज़मीर गोबर के बदले में भी बिक जाती है) इसलिये उसने मानवता की जगह मुस्लिम गुर्जर का पक्ष लिया। फिर मुस्लिम गुर्जरों को सिख किसान ने अपने घर छुपा लिया, जिसको बाकी सिखों ने मानवता का विरोधी बता दिया।
पुलिस का भी निराशाजनक रवैया
लेकिन गुलाम चिल्लाता रहा कि मुझे एक महीने के लिये जाने दीजिये। फिर एक पुलिस अधिकारी को मौके पर बुलाया गया। पुलिस अधिकारी का जवाब चौंकाने वाला था,
ये मंदबुद्धि आदमी है, अपना सही अड्रेस भी नहीं बता सकता है।
एक दूसरे पुलिस ने बताया,
इसे कम-से-कम यहां खाना तो मिल रहा है। आजकल कौन किसको खाना देता है?
“व्यक्ति को बांध कर नहीं रखा गया, इसलिए वह गुलाम नहीं”
जब सामाजिक कार्यकर्ता ने गुलाम प्रथा का विरोध किया तो जवाब मिला कि आप गुलाम को ले जाइए। कार्यकर्ता के सवाल उठाने पर जवाब मिला कि अगर व्यक्ति ने किसी को बांधकर रखा हो या कमरे में बंद कर रखा हो तभी उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है लेकिन जो व्यक्ति खुलेआम घूम रहा था, उसे हम गुलाम नहीं कह सकते हैं।
पुलिसकर्मी का कहना था कि व्यक्ति को गुलाम नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि उसको बांधकर नहीं रखा गया था।
अपना फर्ज़ संस्था के अध्यक्ष पाल खरोड़ ने गुलाम को गुलामी की जंज़ीरों से आज़ाद करवाया और उसे अपने संस्था में देखभाल के लिए ले गए।
पाल ने दावा किया,
उनके पास पंजाब में गुलाम बनाए गए 200 लोगों की सूची है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर सरकार एक्ट करे तो पंजाब में 5 हज़ार के करीब गुलामों को छुड़वाया जा सकता है।
गुलामी का यह पहला केस नहीं
पाल की बात काफी हद तक सच भी है और ताज़ा केस पंजाब में गुलामी प्रथा का कोई पहला केस नहीं था। इससे पहले भी पंजाब से ऐसी घटनाएं सोशल मीडिया पर वायरल होती रही हैं, जिनमें सामने आता रहा है कि कैसे यूपी, बिहार, असम और तमिलनाडु के मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति को गुलाम बनाया गया, गुलामों से मार-पीटकर काम करवाया गया।
उन्हें पूरा भोजन, कपड़े और रहने के लिए अच्छी जगह तक नहीं दी गई। यहां तक कि कीटनाशक वाली बोतल में चाय पीने को मजबूर किया गया। एक गुलाम से यहां तक वादा किया गया कि उसकी शादी एक विदेशी औरत से की जाएगी।
लुधियाना के करीब गाँव हसनपुर में मानवता की सेवा सबसे बड़ी सेवा का दफ्तर है, यहां बेसहारों और गरीब लोगों को रखा जाता है। उनका इलाज करवाया जाता है। संस्था के अध्यक्ष मिंटू मालवा ने अपनी टीम के साथ मुस्लिम गुर्जरों के घर में छापा मारा। उस जगह से दो गुलाम पकड़े गएं।
दोनों गुलाम बिना किसी पैसे से काम कर रहे थे। दोनों मानसिक रूप से अक्षम थे। एक गुलाम, गुर्जरों के 100 के करीब पशुओं का गोबर उठाता था। उसके हाथ-पांव और कपड़े गोबर से गंदे थे। दूसरा पशुओं की देख-रेख का काम करता था।
गुर्जरों ने बताया कि वे एक मज़दूर को मज़दूरी देते हैं लेकिन मज़दूर के पास से ना कोई दस्तावेज़ निकला, ना ही उसके पास से मज़दूरी की कोई राशी मिली। एक मज़दूर की जेब में केवल 30 रुपये थे।
जब गुर्जरों के परिवार से गुलाम के बारे में पूछा गया तो महिला का जवाब था कि गुलाम खुद ही उनके घर आ गया, जबकि उसी महिला के बेटे का कहना था कि गुलाम को रेलवे स्टेशन से लाया गया था।
दोनों मज़दूरों को ना सिर्फ मुक्त करवाया गया, बल्कि उनके परिवार भी ढूंढ लिए गए हैं। रमेश बिहार के बलिया से था, उसे उसके परिवार के पास भेज दिया गया है, जबकि तंगालिन तमिलनाडु से है, उसके परिवार के साथ संस्था संपर्क में है।
यूपी, बिहार, असम जैसे राज्यों से लाये जाते हैं गुलाम
मिंटू बताते हैं कि मानसिक रूप से असक्षम लोग जो अपने घरों से गायब हो जाते हैं, उन्हें यूपी, बिहार और असम से लाकर पंजाब में बेचा खरीदा जाता है। उन्हें पंजाब में कुछ लोग 10 हज़ार के करीब राशी में खरीद लेते हैं, फिर गुलामों से पूरी ज़िन्दगी काम करवाया जाता है।
ज्ञात हो कि देश में 2 करोड़ के करीब मानसिक रूप से अक्षम लोग हैं। वाक फ्री फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक,
भारत में 1.83 करोड़ लोग गुलाम हैं। कहीं-ना-कहीं मानसिक रूप से अक्षम लोगों को कुछ लोगों निशाना बनाते हैं।
इससे पहले कि आप मुझे और संस्था को मुस्लिम विरोधी कहें, आगे इस स्टोरी में कुछ और भी है-
मिंटू की टीम ने एक और छापा सिख किसान के यहां मारा। उस किसान के घर जिसका तीन मंजिला घर था और वहां से करीब 40 के साल से गुलाम रमेश चंद शर्मा को आज़ाद करवाया।
शर्मा मानसिक रूप से अक्षम था। उसके कपड़े गोबर के साथ गंदे हुए थे। वह किसान के पशुओं की देखभाल करता था, उसे पूरी ज़िन्दगी यही कहा जाता रहा कि उसकी शादी विदेशी गोरे रंग की महिला से करवाई जाएगी, उसे विदेश भेजा जाएगा।
शर्मा गुलाम रखने वाली महिला को बहन बताता है और कहता है कि बहन मेरी शादी का खर्च वहन करेगी। वह आगे कहता है कि मेरी शादी के लिए सोने का कड़ा और मुंदरी जैसे गहने तैयार हैं।
मिंटू कहते हैं कि रमेश को गुलाम बनाना दर्शाता है कि लोग गुलामों को अपने साथ बनाए रखने के लिए किस हद तक जा सकते हैं। वह आगे कहते हैं कि हम सिखों ने हमेशा अन्याय के खिलाड़ लड़ाइयां लड़ी हैं, सिख शहीद हुए लेकिन अब सिख ही लोगों को गुलाम बनाकर रखने लगे हैं।
रमेश शर्मा को आज़ाद करवा लिया गया है। वह आजकल संस्था में अच्छी ज़िन्दगी बिता रहे हैं। वह साफ कपड़े पहनते हैं, फोटोज़ में उनकी ज़िन्दगी में आया बदलाव देखा जा सकता है।
मिंटू ने अपनी टीम के साथ फिरोज़पुर ज़िले के फिरोजशाह गाँव में भी रेड़ की और वहां से जमातू नाम के 40 सालों से गुलाम व्यक्ति को आज़ाद करवाया। जमातू को भी मुख्तियार सिंह गिल नाम के किसान ने गुलाम बनाया था।
हैरानी की बात है कि गुलाम बनाने वाला व्यक्ति गाँव का सरपंच रह चुका था। गुलाम जमातू पशुओं के सूखे चारे के कमरे में अपने कंबल में सोया करता था।
दयनीय हालत में रखा जाता है इन गुलामों को
जमातू को कीटनाशक की खाली बोतल में चाय पीने को मिलती थी। उसके कपड़े भी बहुत खराब थे। मिंटू कहते हैं कि जट्ट किसान कीटनाशक पीकर आत्महत्या करते हैं, उनके गुलाम कीटनाशक की बोतलों मे चाय पीते हैं।
एक बड़ी कोठी और महंगी कार के मालिक परिवार ने जमातू को गुलाम बनाकर रखा लेकिन जब मिंटू और उनकी टीम ने उसे छुड़वाने की कोशिश की तो परिवार की बुज़ुर्ग महिला भड़क गई। महिला ने तीन बार गुलाम को ले जाने से रोका लेकिन आखिरकार गुलाम को आज़ाद करवा दिया गया।
26 जनवरी 2020 को भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर पाल की संस्था ने वज़ीर मोहम्मद खां के घर में छापा मारा। पूछने पर वज़ीर मोहम्मद ने गुलाम को पागल बताया। वज़ीर मोहम्मद खुद पक्के घर में रहता था लेकिन उसके पशुओं की देखभाल करने वाला गुलाम झोपड़ी में सोता था, जिसका कोई दरवाज़ा भी नहीं था।
गुलाम को सोने के लिए बिस्तर नहीं, बल्कि थैलों को सिलकर बनाई गई दरी दी जाती थी। खाट भी बहुत खराब था, सिर पर पहनने के लिए जो टोप मिला था, वह गोबर के साथ गंदा पड़ा था।
वज़ीर मोहम्मद कहते हैं कि उन्होंने गाँव बसी गुजरा के सरपंच की सहमति के साथ गुलाम व्यक्ति को घर पर रखा है। सरपंच का जबाव था कि मंदबुद्धी व्यक्ति को अगर खाना खिलाकर काम करवा रहा है, उसमें कुछ गलत नहीं है।
35 साल से गुलाम है भगत सिंह
भगत सिंह ने देश को आज़ाद करवाया था लेकिन पंजाब के दाखा में भगत सिंह को भी गुलाम बनाया गया था। गुलाम करने वालों के पास 3 एकड़ ज़मीन थी, एक एकड़ ज़मीन की कीमत 1.5 करोड़ रुपये है।
भगत सिंह ने 35 साल गुलामी की ज़िन्दगी बिताई, जिस वक्त मिंटू मालवा की टीम ने रेड़ की, उस वक्त भगत सिंह खेत में पशुओं का काम कर रहा था। काम करने और बुढ़ापे के कारण भगत का कूबड़ निकला हुआ था।
भगत सर्दी में वराड़े में सोता था, वहां दरवाज़ा तक नहीं था। सोने के लिए भगत को दिए गए लोहे का खाट भी खराब हालत में था। भगत को नहाने के लिए बर्तन धोने वाला विम साबुन दिया गया था। वह कीटनाशक की खाली बोतल में पानी पीया करता था। दाल-सब्ज़ी वाली कटोरी भी फूटी पड़ी थी।
उसने बताया कि उसे दिन में दो बार खाना मिलता था, गिनकर 4 रोटी। जब उससे पूछा गया कि क्या उससे पेट भर जाता था तो भगत का जवाब था कि मैं सब्र कर लेता था। उसे दोपहर को चाय के साथ दो रोटी खाने को मिलती थी। किसान के परिवार के लिए दूध निकालने वाले भगत को पीने के लिये दूध तक नहीं मिलता था।
2000 गुलामों का दावा
मिंटू दावा करते हैं कि उनके पास पंजाब में 2000 गुलामों की सूची है। पाल ने पटियाला ज़िले में एक मुस्लिम गुर्जर के घर में रेड़ की। मुस्लिम सद्दीक खान ने कहा कि उसके यहां गुलाम नहीं हैं लेकिन उसके पास काम करने के लिए व्यक्ति आता है, 5-7 दिन बाद चला जाता है।
जांच में पता चला कि ईश्वर नाम के गुलाम को पशुओं के पास में सोने को मजबूर किया जाता था। सद्दीक खान ने फिर मुस्लिमों के धार्मिक ग्रंथ कुरान की शपथ ली और कहा कि मैंने कभी कोई गलत काम नहीं किया है।
चार घंटे बाद ईश्वर को लाया गया। पाल बताते हैं कि रेड़ से एक दिन पहले उनकी संस्था से जुड़े लोग ईश्वर की फोटो खींच रहे थे, जिसकी जानकारी मिलने पर सद्दीक खान ने उसे दूर भेज दिया।
ईश्वर जब लाया गया तो उसके सर के बाल ताज़ा कटवाए हुए थे, शेव भी करवाए हुई थी। ईश्वर ने सफेद कुर्ता पजामा पहना हुआ था, जैसे कोई नेता किसी रैली में भाषण देने जाने के लिये तैयार हुआ हो।
ईश्वर ने सर्दी से बचने के लिए नई जैकेट पहनी थी। इस लुक में गुलाम ईश्वर, गुलाम बनाने वालों से बेहतर दिख रहा था।
कुरान की झूठी कसम खाने वाला सद्दीक खान अंत में माफी मांगने लगता है। पाल, ईश्वर को बोलते हैं कि जाने से पहले सद्दीक को कह दो कि आपने मेरे साथ अच्छा नहीं किया। फिर ईश्वर के मुस्लिम सद्दीक की गुलामी से आज़ाद होने की खुशी में वाहेगुरू जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतेह का जयकारा लगाया है और पाल, ईश्वर को गुलामी से दूर आज़ादी की दुनिया में अपनी संस्था ले जाते हैं।