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“केजरीवाल का तीसरी बार दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतना नई किस्म की राजनीति है”

अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल

दिल्ली देश का दिल है और आज यह दिल ‘आप’ के साथ है। आप पार्टी जिस तरीके से तीसरी बार बहुमत के साथ सत्ता में आई है, इसे महज़ जीत या हार तक सीमित होकर देखना गलत होगा। देश की राष्ट्रीय एवं स्थानीय पार्टियों के साथ ही देश की जनता को भी इस जीत से सबक लेने की ज़रूरत है।

सबक इस बात की कि चुनाव लड़ने के मुद्दे क्या हों? सबक इस बात की कि टिकट देने का आधार क्या हो? सबक इस बात की भी कि जनता को किसके साथ खड़ा होना चाहिए?

देश की नज़रें इस चुनाव पर थी

पूरे चुनाव प्रचार को देखने पर हम पाएंगे कि दिल्ली विधानसभा चुनाव केवल आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच ही हो रही थी। इसलिए समस्त देशवासियों की नज़रें इन्हीं पार्टियों के मुद्दों पर टिकी रही।

इस चुनाव में किसी भी पार्टी की जीत स्पष्ट तौर पर जनता के लिए पार्टी की छवि से बढ़कर मुद्दों और प्रचार के तरीकों की जीत समझी जा रही थी। दिल्ली चुनाव प्रचार में एक तरफ जहां बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा और काम को वोटिंग का आधार बनाया गया, वहीं दूसरी तरफ अन्य पार्टियों द्वारा मैनिफेस्टो में बड़ी-बड़ी बातें की गईं।

आम आदमी के लिए अहम थे बुनियादी मुद्दे

अरविंद केजरीवाल। फोटो साभार- सोशल मीडिया

भाषणों एवं मीडिया के ज़रिये साम्प्रदायिकता, सर्जिकल स्ट्राइक, अनुच्छेद 370, एन.आर.सी, सी.ए.ए और शाहीन बाग जैसे मुद्दों को भुनाने की कोशिश की जाती रही है। जिस तरीके से आम आदमी के हिस्से में 62 सीटें गईं, इससे स्पष्ट है कि दिल्ली के लिए पिछले दो बार की तरह ही इस बार भी आम आदमी के लिए बुनियादी मुद्दे अहम थे।

इस जीत को देश की राजनीति में एक नई किस्म की राजनीति के उभार के रूप में भी माना जा रहा है, जिसे लोगों ने ‘काम की राजनीति’ के रूप में स्वीकार किया है। इस नई किस्म की राजनीति की पाठशाला के गुरू का श्रेय जनता द्वारा अरविंद केजरीवाल को जाता है।

उन्होंने ना केवल अपने काम को चुनावी जीत का आधार बनाया, बल्कि पार्टी के विधायकों के क्षेत्रों में सर्वे द्वारा यह जानने की भी कोशिश की कि कौन-कौन ऐसे विधायक हैं, जो अपने क्षेत्रों में जनता से मिलने के लिए उपलब्ध नहीं हो पाते हैं।

उसी आधार पर उनके द्वारा 15 विधायकों के टिकट भी काट दिए गए। साथ ही टिकट के बंटवारे को लेकर महिला अनुपात का भी विशेष ध्यान रखा गया है। इस बार आप पार्टी से 8 महिलाओं को टिकट दिया गया। इस प्रकार के निर्णय ने ना केवल उनकी ईमानदार नेता की छवि को बरकरार रखा, बल्कि काम के प्रति समर्पण की भावना को भी जनता के बीच पहुंचाने में मदद की। उन्होंने खुद को कोई फकीर नहीं, बल्कि दिल्ली का बेटा घोषित कर रखा है।

इस जीत का पूरा श्रेय किसको?

इस जीत का पूरा का पूरा श्रेय केवल केजरीवाल जी को दे देना, दिल्ली की जनता के साथ अन्याय होगा। बेशक स्थानीय मुद्दे और आप पार्टी के काम ने बीजेपी के तमाम हथकंडों को अपनी जीत से धराशाई कर दिया हो, लेकिन शुरू से अंत तक जनता के इरादों और अपनी ज़रूरतों को लेकर उनकी जागरूकता एवं स्पष्टता ने इस चुनाव में अहम भूमिका निभाई है।

यदि आप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उन तमाम कवरेज को देखेंगे, जो झुग्गियों, मलिन बस्तियों में की गई हैं, तो आप पाएंगे कि अशिक्षित एवं आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के बावजूद वे अपने मुद्दों को लेकर कितने स्पष्ट हैं।

वे किसी जातिवाद, परिवारवाद या जुमलों की बात नहीं करते दिखते, बल्कि वे केवल अपने मुद्दों पर बने रहते हैं। शायद इसी स्पष्टता और इरादों ने फेक न्यूज़ और बेवजह के मुद्दों के ताबूत में आखिरी कील का काम किया है। इसी प्रकार के संदेश के साथ देशवासियों को आगामी चुनावो में खुद के और देश के विकास के लिए सोचना होगा।

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