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“CAA और NRC आदिवासियों के खिलाफ एक षड्यंत्र है”

भारत की संसद ने 12 दिसंबर को बीजेपी सरकार द्वारा लाए गए सीएए कानून को पारित कर दिया। जहां विधेयक पर बहस के दौरान गृह मंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि सरकार राष्ट्रव्यापी एनआरसी भी लाएगी।

संसद द्वारा विधेयक पारित किए जाने के बाद से देश भर में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में लगातार सीएए का विरोध प्रदर्शन चल रहा है। सभी वर्गों और धर्मों के लोग विरोध प्रदर्शन में भाग ले रहे हैं।

सीएए और एनआरसी के विभिन्न पहलुओं पर मीडिया और आम जनता में चर्चा की जा रही है जैसे कि यह संवैधानिक मूल्यों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। लेकिन कानून का सबसे कम चर्चा वाला पहलू आदिवासियों पर इसका असर है।

ना तो मुख्यधारा की मीडिया और ना ही सरकार ने इस पर चर्चा की है, लेकिन आदिवासियों पर इसके हानिकारक प्रभाव दूरगामी होने वाले हैं। आदिवासियों के बीच कानून के बारे में जागरूकता के रूप में, विशेष रूप से उन लोगों के बीच भी जो जंगलों में रह रहे हैं। बहुत कम हैं, इसलिए कानून पर विस्तार से चर्चा करना महत्वपूर्ण है।

इस बहस के लिए उपयुक्त प्रारूप अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न हैं, जो उनके प्रश्नों और चिंताओं को संबोधित करेंगे।

CAB एवं CAA क्या हैं?

CAB  या Citizenship Amendment Bill, 2019 एक विधेयक है जो संसद में पारित होने के बाद एवं 12 दिसंबर 2019 को राष्ट्रपति द्वारा अपनी सहमति देने के बाद CAA या नागरिकता संशोधन कानून, 2019 बन गया है।

CAA का मुख्य उद्देश्य क्या हैं?

नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मो के प्रवासियों के लिए नागरिकता के लिए नियम को आसान बनाया गया हैं। आसान शब्दों में यह कानून गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाता है।

अवैध प्रवासी कौन हैं?

इस कानून के तहत उन लोगो को अवैध प्रवासी माना गया हैं जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीज़ा के बगैर घुस आये हो या फिर दस्तावेज के साथ आये हो लेकिन उसमे उल्लिखित अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक जाए।

NRC क्या है?

NRC (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) एक रजिस्टर हैं जिसमे विभिन्न दस्तावेजों के आधार पर भारत में रह रहे सभी वैध नागरिको का रिकॉर्ड रखा जायेगा। अभी तक सिर्फ असम में NRC हुआ है जिसमे 19 लाख लोगो को अवैध घोषित किया गया है।

NRC में शामिल न होने वाले लोगो का क्या होगा?

अगर कोई व्यक्ति कागज़ो की कमी से एनआरसी में शामिल नहीं हो पाता है, तो उसे डिटेंशन सेंटर में ले जाया जाएगा जैसा कि असम में किया गया है। ऐसे डिटेंशन केंद्र देश भर में बनाये जा रहे हैं। इसके बाद सरकार उन देशो से संपर्क करेगी जहां के वे नागरिक हैं।

अगर सरकार द्वारा उपलब्ध कराये साक्ष्यों को दूसरे देशो की सरकार मान लेती है, तो ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा अन्यथा उन लोगों को अपनी ज़िंदगी इन डिटेंशन केन्द्रों में काटनी पड़ सकती है।

आदिवासी समुदाय,

NRC में आदिवासीओ से क्या कागज़ मांगे जायेंगे?

भारत का वैध नागरिक साबित होने के लिए एक व्यक्ति के पास पासपोर्ट, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, शरणार्थी पंजीकरण, एलआईसी पॉलिसी या सरकार जारी अन्य कोई दस्तावेज़ में से एक होना चाहिए।

NPR एवं NRC में क्या सम्बन्ध हैं?

NPR को साल 2003 में वाजपेयी सरकार ने नागरिकता अधिनियम में बदलाव करके लाया गया। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2003 के नियमो में ये साफ लिखा है कि एनपीआर के तहत हर एक परिवार और व्यक्ति के बारे में जानकारी एकत्र की जाएगी।

इस जानकारी की जांच एक सरकारी अधिकारी (लोकल रजिस्ट्रार) द्वारा की जाएगी। दिए गए नियमों के अनुसार एनपीआर (एनपीआर) जांच का उपयोग एनआरसी (एनआरसी) करवाने के लिए किया जाएगा।

क्या आदिवासी ये कागज़ प्रस्तुत करने में सक्षम हैं?

भारत में लगभग 645 आदिवासी समुदाय  हैं जिनमे से 75 विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (PVTG) हैं। आदिवासियों में शिक्षा का स्तर बहुत कम हैं।

कई आदिवासी समूह जैसे अंडमान और निकोबार में जारवा, ओंग, सेंटिनल और शोम पेन; लदाख में गुर्जर, बकरवाल, बॉट्, चांगपा, बाल्टि और पुरीगपास; मध्य प्रदेश में बैगा; ओडिशा में बिरहोर, डोंगरिया-खोंड; राजस्थान में सेहरिया; मणिपुर में मैराम नागा; तमिलनाडु में कट्टू नायकन, कोटा, कुरुम्बास और इरुलेस; और गुजरात में भील, गरासिया के पास NRC के लिए दस्तावेज मिलना बहुत ही मुश्किल हैं।

क्या पहले कभी आदिवासियों से कागज़ मांगे गये थे जिनको वे प्रस्तुत नहीं कर पाए

हां। वन अधिकार अधिनियम 2006 में आदिवासियों को अपने अधिकार पाने के लिए कागज़ प्रस्तुत करने थे, जिनमें सरकार द्वारा प्रदत मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड, पासपोर्ट, घर कर प्राप्तियां, अधिवास प्रमाण पत्र; भौतिक विशेषताएं जैसे घर, झोपड़ियां और भूमि पर किए गए स्थायी सुधार, लेवलिंग, बन्स, चेक डैम और जैसे दस्तावेजों को अधिकृत किया एवं अपने दावों के लिए वैध साक्ष्य के रूप में मौखिक बयान (लेखन में कमी) की अनुमति भी थी।

आदिवासी समुदाय

इन दस्तावेज़ों के होने पर भी आदिवासियों के द्वारा किये गए 44 लाख दावों में से 19 लाख दावे ख़ारिज कर दिए गए थे। इस आधार पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 13 फरवरी 2019 को इन आदिवासियों को जंगल से बाहर निकालने के आदेश दिए थे, जिस पर बाद में स्टे-आर्डर लिया गया पर अभी भी अधिकार नहीं दिए गए हैं।

उसका आदिवासियों पर क्या असर पड़ा?

इन दावों के ख़ारिज किये जाने से इन आदिवासियों के जल, जंगल और ज़मीन पर अधिकार छीन लिए जाने का खतरा हैं। इन आदिवासियों के आजीविका और स्थानीय सांस्कृतिक अधिकार भी नहीं रहेंगे।

अगर आदिवासी NRC में कागज़ नहीं दिखा पाएंगे तो सरकार इस देश के आदिवासियों से नागरिकता छीन सकती है। इसके कारण इस देश के मूलनिवासी अपनी ही जन्मभूमि में अवैध प्रवासी या घुसपैठिया घोषित कर दिए जायेंगे।

यदि आदिवासी अपनी नागरिकता चाहते हैं तो उनको खुद को अपने ही देश में घुसपैठिया घोषित करना पड़ेगा। अवैध प्रवासी घोषित किये गए आदिवासी CAA के माध्यम से द्वितीय श्रेणी की नागरिकता पा सकेंगे।

इस देश के मूलनिवासीयो  को यह कभी मंजूर नहीं होगा की वह अपनी मातृभूमि में खुद को घुसपैठिया घोषित करें। इस देश के मूलनिवासी किसी भी हालत में नागरिकता साबित करने के लिए अपने कागज़ नहीं दिखाएंगे।

अगर आदिवासी नागरिकता पाने के लिए अपने आप को घुसपैठिया घोषित भी करता हैं तो फिर उनको नागरिकता पाने के लिए ये दिखाना पड़ेगा कि वह CAA में उल्लिखित छः धर्मों में से किसी एक का अनुयायी है। यह आदिवासियों को धर्म परिवर्तन करने केलिए मजबूर करेगा।

इस देश के आदिवासियों की अपनी अलग धार्मिक आस्था एवं विश्वास हैं तथा अलग अलग जगह पर आदिवासी अनेक धर्म को मानने वाले हैं।
इस देश में आदिवासी किसी एक विशेष धर्म का पालन नहीं करते हैं, बल्कि अनेक धर्म जैसे हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध आदि का पालन करते हैं।

साथ ही आज अधिकतर आदिवासियों का यह भी मानना हैं कि वे किसी भी धर्म को नहीं मानते बल्कि उनकी स्थानीय आदिवासी धार्मिक आस्था हैं  जिसको वे “आदिवासी धर्म” के नाम से भी जानते हैं। अतः CAA आदिवासियों को नागरिकता देने के लालच में उनका धर्म परिवर्तन करने के लिए भी मजबूर करेगा।

क्या आदिवासी कभी अपना धर्म परिवर्तन स्वीकार करेगा?

आदिवासियों की धार्मिक आस्था के अधिकार संविधान के द्वारा सुरक्षित किये गए हैं। आदिवासी अपनी धार्मिक आस्था पर किसी प्रकार का हमला बर्दाश्त नहीं करेंगे। कोई भी सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन पर किसी भी धर्म को नहीं थोप सकती हैं।

अगर आदिवासी नागरिकता पाने के लिए अपना धर्म परिवर्तन स्वीकार कर लेते हैं, तो उनको मिले विशेष अधिकारों से वंचित कर दिया जायेगा। इससे आदिवासियों के स्थानीय संसाधन पर अधिकार, सांस्कृतिक अधिकारों और आरक्षण के अधिकारों को खतरे में डाला जाएगा।

भारत का संविधान इस देश के मूल जनजातियों को आरक्षण का अधिकार देता है, जो किसी घुसपैठिये के साथ सांझा नहीं किया जा सकता क्योंकि वह इस देश में अवैध प्रवासी के रूप में आये हैं। अतः जो आदिवासी नागरिकता लेने के लिए अपने आप को घुसपैठिया घोषित करेगा उनको आरक्षण से हाथ धोना पड़ सकता है।

इससे संविधान में दिए गए किन किन अधिकारों का हनन होगा?

इनके साथ ही आदिवासी अपने जल, जंगल और ज़मीन के अधिकार भी खो देंगे और यह उनकी आजीविका एवं अस्तित्व पर हमला होगा। आदिवासी सिर्फ बेघर ही नहीं होंगे बल्कि उनके संसाधनों पर सरकार एवं खनन कंपनियां कब्ज़ा कर लेंगी।

आज पांचवीं और छठी अनुसूची क्षेत्रों में आदिवासी ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार दिए गए हैं, जो की CAA और NRC लागू होने के बाद नज़रअंदाज़ कर दिये जाएंगे।

आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ेंगे और उनको हीन भावना से देखा जायेगा। अतः CAA और NRC आदिवासियों के अधिकारों को छीनने के लिए लाये गए उपकरण हैं।

यह पूरी तरह से सच नहीं है कि आदिवासियों को CAA और NRC से बाहर रखा गया है। सीएए इन चिंताओं को संबोधित नहीं करता है और केवल घोषणा करता है कि यह कानून छठी अनुसूची क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। धारा 6B (4) में लिखा है,

इस खंड में कुछ भी असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्र पर लागू नहीं होगा, क्योंकि संविधान की छठी अनुसूची में शामिल है और बंगाल पूर्वी सीमा क्षेत्र नियमन, 1873 के तहत अधिसूचित ” इनर लाइन “के तहत आने वाला क्षेत्र शामिल है। CAA कानून उत्तर पूर्व के शेष भाग के साथ भारत के बाकी हिस्सों में आदिवासियों की चिंताओं को दूर नहीं करता है, जिसमें  पांचवीं अनुसूची, अन्य राज्य और केंद्र शासित प्रदेशो जैसे लद्दाख, अंडमान और निकोबार आदि शामिल हैं।

यह कानून मात्र 10 प्रतिशत आदिवासी जो उत्तर पूर्व के विशेष क्षेत्रों में रहते हैं को बाहर रखा गया है। परन्तु शेष 90 प्रतिशत आदिवासी जो उत्तर पूर्व से गुजरात एवं लदाख से अंडमान और निकोबार तक रहते हैं, को बाहर नहीं रखा गया है।

अतः यह कानून अन्य राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों जैसे मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओड़िसा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिल नाडू, लद्दाख, अंडमान और निकोबार आदि में रह रहे आदिवासियों के अस्तित्व और अधिकारों खतरे में डालने वाला कानून है।

भारत का संविधान इस देश के सभी नागरिकों को अधिकार देने एवं उनको सुरक्षित करने का एकमात्र दस्तावेज़ है।  CAA और NRC कानून भारत के संविधान पर एक हमला है, जिसका विरोध करना हर नागरिक का मूलभूत कर्तव्य है। चूंकि CAA और NRC कानून मुख्य रूप से आदिवासियों को प्रभावित करता है, इसलिए इस अधिनियम को रद्द करवाना उनकी प्रमुख ज़िम्मेदारी है। अतः स्पष्ट शब्दों में आदिवासियों को इस कानून का हर संभव तरीके से विरोध करना चाहिए।

आदिवासी हमेशा अन्याय और अत्याचार से लड़ते रहे हैं और अपनी लड़ाई की मिसाल कायम की है। भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई भी सिडो और कान्हू मुरमू भाइयो के नेतृत्व में सन 1855 में संथाल हूल (विद्रोह) का आगाज़ करके शुरू की गई। इसी श्रेणी में भगवान बिरसा मुंडा के नेतृत्व वाली उलगुलान क्रांति एवं आदिवासियों का त्याग और बलिदान का इस देश के इतिहास में अद्वितीय स्थान है।

आज भी हम सभी आदिवासियों को इन असंवैधानिक कानूनों के खिलाफ घर से बाहर निकल कर विरोध करने की आवश्यकता है। इन के खिलाफ सभी आदिवासियों को अहिंसात्मक रूप से एकजुट होकर विरोध करने की जरूरत हैं।

यह लेख आदिवासियों पर CAA-NRC के प्रभाव से संबंधित अधिकांश पहलुओं को कवर करने का प्रयास करता है हालांकि वास्तविक प्रभाव अधिक जटिल होंगे। इस लेख का उद्देश्य आदिवासियों, भारतीय नागरिकों, गैर-सरकारी संगठन और मीडिया के बीच आदिवासियों पर सीएए-एनआरसी के प्रभावों पर बहस शुरू करना है।

इसके अलावा, सरकार से आधिकारिक प्रतिक्रिया प्राप्त करने की अपेक्षा भी की जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह केवल आदिवासी ही हैं जो अपनी पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।

अतः यह आदिवासियों के बीच जागरूकता पैदा करने और उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में एक कदम है, ताकि वे हर उस समस्या का समाधान पा सकें, जिसका वे सामना कर रहे हैं या भविष्य में सामना करेंगे।

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