“मैंने पूछा चांद से…”
सबकी देखा देखी, एक दिन मैंने भी चांद से पूछ ही लिया, “देखा है कहीं, मेरे यार सा हंसी?” बस, चांद तो ना जाने कब से भरा पड़ा था, मुझपर भड़कते हुए बोला,
चांदनी की कसम, मुझे तुम्हारे यार का तो पता नहीं लेकिन मैंने तुम धरतीवासियों जैसा मूर्ख इंसान कहीं नहीं देखा है, जो अपने महबूब की खूबसूरती के कसीदे पढ़ते-पढ़ते इतने निर्दयी हो गएं कि मेरी महबूबा, मेरी प्यार, मेरी प्यारी खूबसूरत सी पृथ्वी को बदसूरत बनाकर रख दिया।
चांद ने गुस्से में आगे जो कुछ मुझसे कहा वो मैं आपको यहां बताता हूं
तुम्हारी हरकतों की वजह से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से पर्यावरण में अंसतुलन बढ़ रहा है, जिसकी वजह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और तुम्हारी स्वयं की पूरी मानव जाति के कदम विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।
लेकिन तुम, तुम्हें तो यार प्यार से फुर्सत मिले तो कुछ करो ना। अरे, तुम्हें तो खुद पर गर्व होना चाहिए कि तुम ईश्वर के बनाए एकमात्र एक ऐसे ग्रह (पृथ्वी) पर रहते हो जहां हवा है, पानी है और जीव जंतुओं का वास है। तुम भूल गए कि ईश्वर ने तुम्हें इस खूबसूरत धरती पर इसका ध्यान रखने के लिए भेजा था लेकिन तुम अपने स्वार्थ के चलते उसके भक्षक बन बैठे।
रहने की जगह नहीं है तो तुम पेड़ काट रहे हो। कुल मिलाकर कहा जाए तो तुम लोग संसाधनों का ज़रूरत से ज़्यादा दुरुपयोग कर रहे हो। लेकिन तुम्हें तो बस महबूब की कहानियां और कविताओं में ही आनंद आता है। तुम खूबसूरती की बात करते हो?
पर्यावरण असंतुलन के चलते जंगलों में एक अरब से अधिक बेज़ुबान जानवर जल कर मारे गएं, उस भयानक मंज़र को देखकर भी क्या तुम्हारी आत्मा कभी जागेगी?
दूसरी तरफ तुम्हारी दुनिया में खुद को समूची मानव जाति का सबसे बड़ा खैरख्वाह बताने वाली महाशक्तियां दो ताकतवर खेमों में बंट चुकी हैं, जो हर बीतते दिन के साथ पूरी दुनिया को अपनी परमाणु शक्तियों की धौंस दिखाकर तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर तैयार खड़ी हैं। कभी सोचा है कि मेरी प्यारी धरती हर पल परमाणु के ढेर पर बैठी अपने जीवन के आखिरी दिन गिन रही है।
उधर मंदी के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर होती नहीं दिख रही है, बेरोज़गारी, गरीबी, महंगाई, जनसंख्या विस्फोट आदि समस्याओं ने वीभत्स रूप धारण कर लिया है। विश्व के बड़े-बड़े नेता भी इन समस्याओं का कोई हल निकालते नज़र नहीं आ रहे हैं। जात-पात, नक्सलवाद, आतंकवाद जैसे राक्षस धरती पर नासूर की तरह फैलते जा रहे हैं। ना जाने कितनी ही भयानक बीमारियां ऐसी हैं, जिनके कारण हर पल लाखों लोग मर रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनियों के बावजूद इनकी रोकथाम के लिए अभी तक किसी बड़े प्रयास की शुरुआत नहीं हुई है। वर्तमान परिस्थितियों में कोई एक देश या नेता विश्व को नेतृत्व देने में सक्षम नहीं है। विश्व के सभी देशों को आपसी प्रेम और विश्वास में रखते हुए इन समस्याओं को समाप्त करने के प्रति कटिबद्ध होना चाहिए।
लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोई भी यह कदम उठाने की पहल करेगा, क्योंकि सच तो यह है कि मानव जाति को कभी धर्म, कभी जाति, कभी देश के नाम पर लड़वाकर अपना वर्चस्व कायम रखना ही स्थानीय नेताओं से लेकर विश्व के बड़े नेताओं का एकमात्र मकसद बन गया है।
तुम्हें तो बस अपने महबूब की ही पड़ी है। मेरी प्यारी पृथ्वी को इस बदहाली से निकालने के लिए क्या तुम लोगों को कोई सामूहिक प्रयत्न नहीं करना चाहिए? सामूहिक प्रयत्नों से मेरी पृथ्वी को बचाने की मुहिम चलाने वाली यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना ही श्रेयस्कर होगा।
शायद मैं भी अब तभी ढूंढ कर बता पाऊंगा कि तुम्हारे महबूब सा हसीन मैंने कहीं देखा है कि नहीं। वरना मुझसे तो कम-से-कम दोबारा यह पूछने की हिम्मत मत करना। इन दिनों मैं अपनी प्रेयसी पृथ्वी को लेकर बहुत चिंतित हूं।