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संताली भाषा को बच्चों और युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने वाले श्याम सी टुडू

साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय युवा लेखक सम्मेलन (30-31 जुलाई 2018) के उद्घाटन सत्र में अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवास राव ने एक युवा संताली लेखक का छोटा सा परिचय दिया था।

उन्होंने आपने भाषण में कहा था कि संताली का एक ऐसा प्रतिभाशाली युवा लेखक भी है, जिसने अपनी ही कविता पढ़कर इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी।

श्री राव यह प्रसंग अन्य कार्यक्रमों में भी लेखकों को उत्साहित करने के लिए देते रहते हैं पर राव सर ने उस सत्र में लेखक का नाम नहीं लिया। मैं यहां उसी प्रतिभाशाली युवा लेखक से आप सबका परिचय कराता हूं।

साहित्य अकादमी के सचिव जिस लेखक का ज़िक्र आप अपने भाषण में करते हैं, वह और अन्य कोई नहीं, संताली साहित्य के विश्वकोश, युवा लेखक, कवि, संपादक, अध्यापक और प्रकाशक श्री श्याम सी टुडू हैं।

बीच में ही छोड़ दी थी इंटरमीडिएट की पढ़ाई

सरकारी कागज़ात के अनुसार श्री टुडू का जन्म 3 अप्रैल 1983 को अपने नानीहाल केंदाडीह (बुरसा घुटु) में हुआ था, हालांकि वह दाबांकी, पोटका के स्थायी निवासी हैं। पिता का नाम कोंदा टुडू और माँ का नाम सागेन टुडू है।

श्री टुडू का परिवार बहुत ही गरीब था, उनके माता-पिता मिट्टी काटकर पैसा और खाद्यान्न का उपार्जन करते थे। श्याम सी टुडू की आरंभिक पढ़ाई अपने गाँव के स्कूल और आगे चलकर सिकिद के स्कूल में हुई है।

आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें भारत सेवाश्रम विद्यालय, सोनारी, जमशेदपुर भेज दिया गया, जहां से 1999 में मैट्रिक की परीक्षा में वह द्वितीय श्रेणी से उतीर्ण हुए। फिर वह जमशेदपुर के ही एमपीएम स्कूल में इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए भर्ती हुए पर पैसे की कमी और पढ़ाई में मन ना लगने पर पढ़ाई बीच में ही छोड़ दिया।

बाद में दोस्तों के कहने पर जमशेदपुर के ही ऑल कबीर पॉलिटेक्निक से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के साथ डिप्लोमा की पढ़ाई की। यह पढ़ाई भी उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर पूरी की।

वर्षा की बूंदों को देखकर लिखी थी पहली कविता

श्री टुडू एक बार स्कूल की पढ़ाई के दौरान बीमार पड़ गए थे और विस्तर पर पड़े-पड़े ही वर्षा की बूंदों को देखकर अपनी कविता रच डाली थी। ऐसा विश्वकवि रबिन्द्र नाथ टैगोर के साथ भी हुआ था। इस तरह श्री टुडू ने पर्यावरण से प्रेरणा लेकर साहित्य रचना आरंभ की थी, उसके बाद वह आगे ही बढ़ते गए। कवि की पहली कविता संग्रह ‘तारास’ 2003 ई. में प्रकाशित हुई थी।

संताली भाषा के लिए काम

संताली वर्णमाला के प्रचार-प्रसार और लोगों को सिखाने के उद्देश्य से ऑल चिकि लर्निंग पुस्तक की रचना की, जो 2003 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। गैर संथालों को संताली सिखाने के उद्देश्य से उन्होंने “संताली भाषा शिक्षा” नामक पुस्तक की रचना 2004 में की थी। यह पुस्तक गैर-संथालों  में काफी लोकप्रिय और चर्चित रही।

श्री टुडू ने संताली शायरी पर भी हाथ आज़माया है, जो कि संताली भाषा और साहित्य के लिए बिलकुल नई विधा है। लेखक की 2004 में “सिंगाड़ बिजली” और 2006 में “ओकाते” नाम से दो शायरी पुस्तक प्रकाशित हुई है।

बच्चों के लिए रचना

कहते हैं कि लेखक तभी पूर्णता को प्राप्त करते हैं, जब वह बच्चों के लिए कोई रचना लिखते हैं। बच्चों के लिए लिखना काफी चनौतीपूर्ण और मेहनत का काम है। “बूढ़ी पारकोम” नाम से एक पुस्तक 2010 में प्रकाशित हुई जो कि बच्चों के उद्देश्य से लिखी गई थी। यह एक कविता संग्रह है, जो काफी चर्चित भी रही है।

साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार

2010 में ही उनकी काफी अरसे के बाद एक कविता संग्रह प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था “जाला दाग”। यह कविता संग्रह संताली साहित्य की दुनिया में काफी चर्चित रही। कवि को इसी कविता संग्रह के लिए ही 2012 की साहित्य अकादमी के युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुस्तक का हिंदी अनुवाद रवीना प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशनाधीन है।

कवि के तीसरे कविता संग्रह का नाम “ऊनि सेन तायोम” है जो कि 2012 में प्रकाशित हुई है। यह भी संताली साहित्य जगत में बहुत चर्चित रही है और रवीना प्रकाशन, दिल्ली से इसका हिंदी संस्करण भी आ चुका है।

विद्यार्थियों के लिए संताली भाषा में परीक्षा सहायिका

श्री टुडू ने कविता के अलावा स्कूल, कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों के लिए परीक्षा सहायिका की भी रचना की है। “बिनिड गाते” नामक परीक्षा सहायिका संताली विद्यार्थी जगत में बहुत लोकप्रिय है।

लेख, कविता और परीक्षा सहायिका के साथ श्री टुडू उपन्यास लेखन में भी बराबर काम करना चाहते हैं। पवित्र प्रेम पर आधारित उनका पहला उपन्यास “शिशिर पोरायणि” 2015 में प्रकाशित हुआ है। यह ना केवल भारत में बल्कि बांग्लादेश में भी लोकप्रिय हुआ है।

“आर मीद टेन उजाड़” नामक उपन्यास में उन्होंने स्त्री जीवन की त्रासदी और विस्थापन की बहुत सुंदर और सटीक व्याख्या की है। यह उपन्यास सन् 2018 में प्रकाशित होते ही विख्यात हो गया। फिर उन्होंने संताली साहित्य के विख्यात लेखक श्री इनोसेंट सोरेन द्वारा रचित नाटक “होपोनेरा” का उपन्यास रूपांतरित किया। यह उपन्यास भी चर्चित रहा।

संथाल हूल के नायक सिदो-कान्हू के जीवन और संथाल हूल पर तो हिंदी, बांग्ला, अंग्रेज़ी और संताली में तो अनेक पुस्तकों की रचना हुई है पर संथाल हूल के ही एक और नायक बजाल सोरेन के ऊपर तो बहुत कम लिखा गया है।

श्री टुडू संथाल हूल के इस साहसी नायक की वीरता और जेलर की बेटी मार्गरेट के साथ की प्रेम कहानी पर आधारित उपन्यास “वीर बाजल दो बाको पासी लेदेया” लिखकर इतिहास में दबी पड़ी बाजल सोरेन की वीरता और प्रेम कहानी को लोगों के सामने लाने का साहसिक कार्य किया।

यह पुस्तक भी बहुत लोकप्रिय हुई और प्रकाशित होने के बाद अभी तक कई संस्करण आ चुके हैं। संताली साहित्यकार सलीम चंद्र सोरेन ने इसका हिंदी रूपांतरण किया है।

संताली की पहली ऑनलाइन पत्रिका

केवल कविता, आलेख और उपन्यास लिखकर श्री टुडू को आराम नहीं मिला। उन्होंने हिंदी के अति लोकप्रिय पाक्षिक पत्रिका सरस सलिल से प्रेरणा लेकर और नए साहित्यकारों को प्लैटफॉर्म उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 2005 से “पाँजा” नामक द्विमासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया।

यह संताली की एकमात्र और पहली पत्रिका है, जिसका डिजिटल संस्करण प्रकाशित होता है। टुडू जी को यह हमेशा अखरता था कि पूरे देश में संथालों की एक करोड़ के लगभग आबादी के बावजूद उनकी भाषा में एक भी अखबार नहीं निकलता है। यह कलंक मिटाने के उद्देश्य से उन्होंने 2008 से एक मासिक अखबार “सेताग” का प्रकाशन आरंभ किया।

श्री टुडू ने केवल इंटरमीडिएट में ही नहीं, पीजी और नेट में भी अपनी रचना पढ़कर परीक्षा पास की है। यह आपने आप में रिकॉर्ड है। संताली साहित्य की सेवा के लिए इसे दिशोम जाहेरथान कमेटी, करनडीह, जमशेदपुर की ओर से 2009 में गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू लिटरेचर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। सन् 2012 में कविता पुस्तक “जालादाग” के लिए साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ओर से युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वर्त्तमान में श्याम सी टुडू जी पश्चिम बंगाल में सरकार के डिग्री कॉलेज सालबोनी में संताली के सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं और साहित्य लेखन में लगातार लेखनी कर रहे हैं।

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लेखक चंद्र मोहन किस्कू संताली के युवा कवि हैं।

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