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“मोदी जी, सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण विरोधी जजमेंट पर आप चुप क्यों हैं?”

नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी

सुप्रीम कोर्ट ने जिस जजमेंट में आरक्षण को फंडामेंटल राइट नहीं बताया है, उस जजमेंट में भाजपा के उत्तराखंड सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट के समक्ष तर्क रखा था, जिसे कोर्ट ने मानते हुए कहा,

आरक्षण फंडामेंटल राइट नहीं है और यह राज्य के विवेक पर निर्भर करता है कि वह आरक्षण दे या नहीं।

उत्तराखंड भाजपा सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि आरक्षण फंडामेंटल राइट नहीं है और यह कंपलसरी नहीं है कि राज्य किसी वर्ग को आरक्षण दे। आर्टिकल 16 का क्लॉज़ 4 आरक्षित वर्गों को आरक्षण देने की अनुमति राज्यों को देती है कि राज्य यदि चाहे तो आरक्षण दे सकती है और यदि नहीं चाहे, तो नहीं दे सकती है।

एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण नहीं देना सही कदम: उत्तराखंड की भाजपा सरकार

मुकुल रोहतगी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

उत्तराखंड भाजपा सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने भाजपा सरकार के एससी-एसटी प्रमोशन रिज़र्वेशन के खिलाफ आदेश का बचाव करते हुए कहा कि हमारी सरकार ने पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए एससी-एसटी के लिए प्रमोशन इन रिज़र्वेशन के प्रावधान को खत्म किया है। इसमें कोई भी बात गैर-कानूनी और असंवैधानिक नहीं है।

दोनों पक्षों को सुनकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरक्षण फंडामेंटल राइट नहीं है और यह राज्य के विवेक पर निर्भर करता है कि वह किसी पिछड़े हुए वर्ग को आरक्षण का लाभ दे या नहीं।

इस जजमेंट के आने के बाद देशभर में बवाल मच गया। संसद में मुख्य विपक्षी दल काँग्रेस के साथ-साथ सत्ताधारी दल, लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया।

आरक्षण खैरात नहीं, बल्कि वंचित वर्ग का अधिकार है: चिराग पासवान

चिराग पासवान। फोटो साभार- सोशल मीडिया

संसद में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट की आलोचना करते हुए सत्ताधारी  राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान ने कहा कि देश में आरक्षण, संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के बीच में हुए पूना पैक्ट का ही परिणाम है।

उन्होंने कहा,

अनुसूचित जाति व जनजाति के वर्गों से आने वाले लोगों का संवैधानिक अधिकार है। आरक्षण दलित व वंचित समुदाय को मिलने वाली कोई खैरात या दया नहीं है।

चिराग ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 7 फरवरी 2020 को दिए गए इस फैसले को लोजपा पूरी तरह से खारिज करती है और इससे सहमत नहीं है। उन्होंने अविलंब केन्द्र सरकार से इस फैसले पर हस्तक्षेप करने की मांग की और आरक्षण से जुड़े सारे एक्ट को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने की मांग की। उन्होंने कहा कि समय-समय पर लोग आरक्षण के विरोध में न्यायालय चले जाते हैं, जिससे बार-बार आरक्षण को लेकर दुविधा और संशय की स्थिति बनती है।

मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को गुमराह किया

सुप्रीम कोर्ट। फोटो साभार- सोशल मीडिया

भाजपा सरकार के वकील मुकुल रोहतगी का यह तर्क कि आरक्षण राज्य के विवेक पर निर्भर करता है, निश्चित तौर पर सही है लेकिन संविधान ने एससी-एसटी और ओबीसी के प्रतिनिधित्व की कमी के आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान किया है, जो कि भारतीय संविधान में दर्ज़ राइट टू इक्विटी के तहत दिया गया है।

लेकिन मुकुल रोहतगी ने यह कहकर कोर्ट को गुमराह किया कि आरक्षण फंडामेंटल राइट नहीं है। यदि आरक्षण फंडामेंटल राइट नहीं है, तो इसका मतलब है कि आरक्षण गैर-संवैधानिक है, क्योंकि आज की तारीख में संविधान के अनुच्छेद 16 के क्लॉज़ 4 के तहत राज्य के पिछड़े वर्गों को शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन  हेतु आरक्षण दिया जाता है।

फिर से उभरा भाजपा का आरक्षण विरोधी चेहरा

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

एक बात इस जजमेंट से साफ हो गई है कि भाजपा अब खुलेआम कोर्ट के माध्यम से एससी-एसटी और ओबीसी का संवैधानिक आरक्षण खत्म कराना चाहती है और इसी के क्षेत्र में उत्तराखंड भाजपा सरकार द्वारा एससी-एसटी के पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करना और आरक्षण के खिलाफ उत्तराखंड सरकार का सुप्रीम कोर्ट में अपने वकील मुकुल रोहतगी द्वारा बहस करवाना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरक्षण को भारत में एक नया नज़रिया दिया है। यह नरेंद्र मोदी की सरकार थी जिसने देश के आर्थिक रूप से पिछड़े हुए वर्ग के ऊंची जाति के लोगों को आरक्षण का लाभ दिया।

यह नरेंद्र मोदी की सरकार थी जिसने देश के सैकड़ों वर्षों से संवैधानिक दर्ज़ा के लिए संघर्ष करने वाले ओबीसी समाज को संवैधानिक दर्ज़ा दिया। इसलिए आरक्षण का विस्तार करने वालों में नरेंद्र मोदी से बेहतर इस देश में दूसरा केई नहीं है।

सरकार संविधान संशोधन द्वारा बदले सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट

मेरा माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से निवेदन है कि सुप्रीम कोर्ट के जिस जजमेंट में आरक्षण को फंडामेंटल राइट से अलग बताया गया है और आरक्षण के खिलाफ बात कही गई है, उले बदलने के लिए तत्काल संविधान संशोधन लाया जाए।

सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को बदलने के लिए भारत सरकार तत्काल रिव्यू पिटिशन दाखिल करे, ताकि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट पर तत्काल रोक लग सके। अन्यथा यह जजमेंट भारत के करोड़ों दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों के संवैधानिक आरक्षण के खिलाफ बहुत बड़े टूल के रूप में उपयोग किया जाएगा।

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