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“क्यों इतने सालों बाद भी याद आती है फिल्म 3 इडियट्स”

थ्री इडियट्स

थ्री इडियट्स

चेतन भगत के उपन्यास ‘फाइव पाइंट समवन’ से प्रेरित ‘3 इडियट्‌स’ के साथ राजकुमार हिरानी शिक्षा प्रणाली व किताबी ज्ञान की उपयोगिता पर कुछ मौजू सवाल उठाते हैं। कभी ना कभी हर विद्यार्थी ने अवश्य सोचा होगा कि आखिर पढ़ाई कर क्यों रहा है।

यह भी कि उसे किसी की लिखी बातों को रटना है, क्योंकि इम्तिहान में नंबर लाने हैं। जिससे कि नौकरी पाई जा सके। घर के लोग भी इसलिए दबाव डालते हैं, क्योंकि व्यवस्था में योग्यता मापने के अपने पैमाने हैं।

डिग्री इसलिए भी लेने को कहा जाता है ताकि अच्छा रिश्ता मिल सके। इस तरह विद्यार्थियों को ऐसे सिस्टम को मानना पड़ता है, जिसमें वैचारिक आजादी नहीं होती है।

व्यवस्था विशेषकर शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न करती एवं उसके अंतर्विरोधों का मखौल उड़ाती राजकुमार हिरानी की यह फिल्म शिक्षा व जीवन के प्रति व्यवहारिक नज़रिया देती है। राजकुमार हिरानी किसी ना किसी विसंगति को केंद्र में रखते हैं।

फिल्म थ्री इडियट्स का एक दृश्य। फोटो साभार- सोशल मीडिया

उनकी 3 इडियट्स सफलता की होड़ में अपनी ज़िंदगियां तबाह करते छात्रों का मर्म लेकर चली है। फिल्म यह रेखांकित कर रही कि सफलता के पीछे भागने की ज़रूरत नहीं है। यदि काबिल हो जाएं तो कामयाबी खुद-ब-खुद पीछे आ जाती है। शिक्षा के सार्थक मायने बतलाती यह अपने किस्म की फिल्म है।

राजकुमार हिरानी-अभिजात जोशी की यह पटकथा लंबे समय से महत्त्व बनाए हुए है। इसलिए शिक्षा से जुड़े बड़े अहम मसअलों को सतह पर लानी वाली बेहतरीन फिल्म के तौर पर याद रखी गई है। आज भी यह एक सदाबहार फिल्म बनी हुई है। हाल ही में इस बात का सुबूत जापान में इसकी नवीनतम स्क्रीनिंग से मिलता है।

दरअसल. ओसाका में एक थियेटर हमेशा के लिए बंद किया जा रहा था। तो इस पल को यादगार बनाने के लिए उन्होंने अपनी आखिरी फिल्म के रूप में ‘3 इडियट्स’ को दिखाने का फैसला किया। बताया जा रहा कि यह शो हाऊस फुल हाउस रहा। इससे साबित होता है कि यह आज भी प्रभावशाली फिल्मों में से एक है।

याद रखना चाहिए कि ‘3 इडियट्स 25 दिसम्बर 2009 को पहली बार रिलीज़ हुई थी। रिलीज़ के वक्त से ही फिल्म खूब सराहना बटोर रही है। भारतीय सिनेमा के इतिहास में यह फिल्म सबसे बड़ी ओपनिंग करने में सफल रही थी। फिल्म अपने उद्देश्य में सफल होकर स्थापित करती है कि डिग्री और ज्ञान में फर्क होता है। यह इसकी सबसे बड़ी ताक़त थी।

फिल्म थ्री इडियट्स का एक दृष्य। फोटो साभार- सोशल मीडिया

राजू रस्तोगी, फरहान कुरैशी और रणछोड़ दास श्यामल दास चांचड़ उर्फ रैंचो इंजीनियरिंग कॉलेज में आए नए छात्र हैं। संयोग से तीनों रूममेट हैं। रैंचो सामान्य स्टूडेंट नहीं है। सवाल पूछना और व्यवस्था को चुनौती देना उसकी आदत है। अपनी विशेषताओं की वजह से वो जल्द ही अपने दोस्तों का आदर्श बन जाता है। किन्तु प्रिंसिपल वीरू सहस्रबुद्धे उसे फूटी आंखों पसंद नहीं करते।

यहां तक कि वे फरहान और राजू के घरवालों को सचेत करते हैं कि अगर उन्हें अपने बेटों के भविष्य की चिंता है तो वे उन्हें रैंचो से अलग रखें। हम फरहान और राजू के परिवारों से परिचित तो होते हैं मगर हमें रैंचो के परिवार की कोई जानकारी नहीं मिलती। हां. उसके विलक्षण इतिहास का थोड़ा सा हिस्सा ज़रूर पता चलता है।

फरहान वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनना चाहता है लेकिन घरवाले इंजीनियरिंग कराने का फैसला पहले ही ले चुके हैं। राजू रस्तोगी का परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर है। भविष्य का डर उसे सताता रहता है।

विज्ञान का छात्र होने के बावजूद वह तमाम अंधविश्वासों से घिरा हुआ है। रैंचो सामान्य किस्म का छात्र नहीं है। वह ग्रेड, मार्क्स, किताबी ज्ञान पर भरोसा नहीं करता है। कामयाबी व काबिलियत का फर्क खूब जानता है।

सभी कलाकारों ने बेहतरीन काम किया है। आमिर खान के फिल्म में होने के बावजूद शरमन जोशी और माधवन अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं। एनआरआई चतुर के रूप में ओमी ने उम्दा अभिनय किया है।

वहीं, बोमन ईरानी फिर साबित करते हैं कि वह कमाल के अभिनेता हैं। करीना कपूर के रोल की लंबाई कम होने पर भी वह अपनी छाप छोड़ती हैं।

हालांकि देखने में यह रैंचो की फिल्म लगती है मगर राजकुमार हिरानी की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने कहानी के सभी किरदारों को अति महत्वपूर्ण बनाया।

आपने सहयोगी किरदारों पर पर्याप्त ध्यान दिया। फरहान, राजू, चतुर, मिलीमीटर, वीरू, पिया और उनके परिवारों के सदस्य कथा के हिस्से की तरह आते हैं। सभी की कहानियां कथा को अंततः निष्कर्ष तक पहुंचाती है। तीन मित्रों की दोस्ती कॉलेज लाईफ एवं बाद की ज़िंदगी को बखूबी दिखाने वाली ऐसी फिल्में कम बनी हैं।

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