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“मणिपुर की मेरी फ्रेंड को दिल्ली मेट्रो में एक महिला ने कोरोना वायरस कहा”

फोटो साभार- Flickr

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कोरोना वायरस को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने और सर्त्तक रहने की कोशिशें समाज और सरकार दोनों ही तरफ से हो रही हैं।

भारत में जिस तरह से कोरोना से संक्रिमित लोगों की संख्या बढ़ रही हैं उस हिसाब से कम-से-कम ही सही मगर संक्रिमित लोगों में सुधार भी हुआ है। वैसे उम्मीद है कि अगर हम थोड़ा सर्त्तक रहें तो स्थिति में सुधार हो सकती है।

कोरोना की तमाम उठा-पटक, सर्त्तकता और जागरूकता के उहापोह की स्थिति में पढ़े-लिखे शिक्षित सभ्य समाज के लोगों के बीच कुछ हरकतें ज़रूर दिखीं।

मुझे पता है कि पूर्वोत्तर समाज के लोगों के प्रति या जिनकी आंखें छोटी होती हैं उनके प्रति एक पूर्वाग्रही नज़रिया रहता है। पूरी दिल्ली में उनके लिए चिंकी, नेपाली और कई तरह के उपनाम प्रचलित हैं जिस पर अब वे ध्यान भी नहीं देते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

शायद उन्होंने ट्रकों पर लिखे पंच लाइन को अपना सूत्र बना लिया है कि ‘बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला’। मैं अपनी महिला साथी जो जेएनयू में पीएचडी रिसर्चर हैं, उनके साथ मंडी हाउस मेट्रो से हौज़ खास की तरफ जा रहा था। वो मणिपुर से हैं।

हम दोनों ने ही कोरोना वायरस पर जारी किए गए जागरूकता निर्देश के अनुसार सैनिटाइज़र रखा हुआ था और मेट्रो में कार्ड स्कैन करने के बाद हाथ सैनिटाइजर से साफ कर रहे थे और मुंह-नाक को ढक रखा था।

जब मेट्रो में दाखिल हुए तो भीड़ थोड़ी कम थी और हौज़ खास जाने लिए हमको राजीव चौक पर ब्लू लाईन से येलो लाइन मेट्रो बदलना भी था जो दो स्टेशन बाद ही आता है, तो हमलोग गेट पर ही खड़े थे।

मेट्रो में देखा नस्लभेद

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मेट्रों चलने के कुछ सेकेंड पहले एक पढ़ी-लिखी संभ्रात घर की महिला मेट्रो में प्रवेश करने के साथ ही महिला साथी की तरफ देखते हुए कहा, “करोना वायरस।”

ये कुछ इस तरह था जिसकी उम्मीद मैंने नहीं की थी। महिला साथी ने शायद इन चीज़ों का सामना पहले भी किया हो मगर मैंने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “माफ करें क्या कहा आपने?” तो मुझसे दूर हटने की कोशिश करने लगी और आगे की तरफ बढ़ने लगी।

मैं इस प्रतिक्रिया से बुरी तरह हिल गया था। इसलिए उनको कुछ सुनाने के लिए उनके पीछे हो लिया। महिला साथी ने मुझे रोकने की कोशिश की मगर मैं नहीं माना।

बारहखंभा मेट्रो स्टेशन आने पर महिला एक जगह रूकी और मुझे अपने पीछे देख चौंकी और मेरी तरफ घूरते हुए कहा, “शर्म आनी चाहिए तुम इन लोगों के साथ घूमते हो।”

अब मेरा संयम मेरा साथ खो चुका था और मैंने कहा,

शर्म है आप जैसे तथाकथित शिक्षितों पर जिन्हें सिर्फ इस बात से मतलब है कि कौन भारतीय है और कौन नहीं। रेसिज़्म बंद करिए और कोराना संक्रमण पर जागरुक होकर नॉर्थ ईस्ट के बारे में अपनी जानकारी को बढ़ाइए। नॉर्थ ईस्ट में अभी तक कोरोना वायरस से इंफेक्टेड एक भी मरीज़ की पहचान नहीं हुई है।

वह महिला कोई प्रतिक्रिया देती तब तक राजीव चौक मेट्रो आ चुका था और हमलोगों को येलो लाइन मेट्रो लेने के लिए उरतना पड़ा।

मेरी दोस्त ने कहा कि समय बदलने में वक्त लगेगा

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

येलो लाइन मेट्रों में घुसते समय मैंने महिला साथी से पूछा कि तुमने प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी? तुमको बोलना चाहिए था। तब उसने फोन पर एक वीडियो मुझे देखने के लिए बढ़ा दिया जिसमें करोना वायरस के माहौल में उनके जैसे लोगों के साथ हो रहे भेदभाव की बातें थीं।

वीडियों खत्म होने के बाद मेरी महिला साथी ने कहा, “कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगर इसके बारे में एक-दो लाइन भी कहते तो बहुत अच्छा लगता मगर कभी कोई कुछ कहता नहीं है। अब उम्मीद भी नहीं होती है। तुम तनाव मत लो और पानी पीलो। यह सब बदलने में समय लगेगा, वक्त बदला है तभी तो तुम आज उस महिला से भिड़ गए और इतना कुछ बोल दिया।”

उसके बोले गए शब्दों में क्षोभ और विश्वास दोनों था। मैं पानी की घूंट ले रहा था और मेरा गुस्सा भी शांत हो रहा था। हौज़ खास मेट्रो आने वाला था और मैं मन ही मन सोच रहा था, “प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में कहा था कि इस वैश्विक समस्या से हमको जागरूकता और सर्त्तकता से लड़ना है। हम सबों को मिलकर इससे लड़ना है।”

हम इतने तरह के पूर्वाग्रह रखते हुए इस वैश्विक समस्या से कैसे लड़ सकते है? कोरोना वायरस के खौफ ने जानकारी और सर्त्तकता के अभाव में लोगों को और अधिक नस्लभेदी बना दिया है।

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